बारिश और लाल बिलौटी
लाल बिलौटी ( रेड लेडी बर्ड ) नाम तो सुना ही होगा और पकड़ी भी होंगीं । वैसे अब ये दिखती ही नहीं है पर पहले यानि जब हम लोग छोटे थे तब बारिश के बाद लाल बिलौटी खूब निकला करती थीं । ये बहुत ही मख़मली ,सुर्ख़ लाल रंग की और छोटी सी होती थी । जब इनको हाथ से छूते या उठाते थे तो ये अपने पंजे सिकोड़ लेती पर फिर थोड़े सेकेंड के बाद पंजे खोलती और बहुत ही धीरे धीरे चलती ।
जब ये अपने पंजे बंद करती तो हम लोग कुछ ऐसा कहते थे --- लाल बिलौटी पंजा खोल ,तेरी बग्घी आती होगी । 😊
और कई बार वो वाक़ई पंजे खोलकर चलने लगती । वो हमारे कहने पर नहीं पर जब हम उसे थोड़ी देर छूते नहीं थे तब वो चलती थी । ये बाद नें समझ आया । 😀
वैसे पहले हम लोग जब बारिश होती थी तो चाहे घर हो या स्कूल खूब नाव बनाते और चलाते थे । कॉपी में से धडाधड पन्ने फाड़ते और नाव बनाते । और जब कहीं नाव अटक जाती तो डंडी से उसे आगे खिसकाते । एक नाव डूब जाती तो दूसरी नाव बनाते थे । बाक़ायदा हम और हमारी दीदी में कॉमपटीशन भी होता था । और अकसर हमारी नाव डूब जाती थी क्योंकि अगर काग़ज़ की नाव ठीक से नहीं बनी हो तो डूब ही जाती है । कभी कभी घर पर बड़ी नाव बनाने के लिये अखबार का भी इस्तेमाल करते थे ।
रिमझिम होती बारिश में हमने तो अपने बच्चों के साथ भी काग़ज़ की नाव चलाई है है क्योंकि तब काग़ज़ की नाव पानी में आराम से हवा के साथ बहते हुये दूर चली जाती थी । पर जब बारिश तेज़ होती थी तो चूँकि काग़ज़ जल्दी गीला हो जाता था तो नाव भी जल्दी डूब जाया करती थी । 😛
पर आजकल तो बारिश में काग़ज़ की नाव कम असली नाव ज़्यादा चलती है ।
जब ये अपने पंजे बंद करती तो हम लोग कुछ ऐसा कहते थे --- लाल बिलौटी पंजा खोल ,तेरी बग्घी आती होगी । 😊
और कई बार वो वाक़ई पंजे खोलकर चलने लगती । वो हमारे कहने पर नहीं पर जब हम उसे थोड़ी देर छूते नहीं थे तब वो चलती थी । ये बाद नें समझ आया । 😀
वैसे पहले हम लोग जब बारिश होती थी तो चाहे घर हो या स्कूल खूब नाव बनाते और चलाते थे । कॉपी में से धडाधड पन्ने फाड़ते और नाव बनाते । और जब कहीं नाव अटक जाती तो डंडी से उसे आगे खिसकाते । एक नाव डूब जाती तो दूसरी नाव बनाते थे । बाक़ायदा हम और हमारी दीदी में कॉमपटीशन भी होता था । और अकसर हमारी नाव डूब जाती थी क्योंकि अगर काग़ज़ की नाव ठीक से नहीं बनी हो तो डूब ही जाती है । कभी कभी घर पर बड़ी नाव बनाने के लिये अखबार का भी इस्तेमाल करते थे ।
रिमझिम होती बारिश में हमने तो अपने बच्चों के साथ भी काग़ज़ की नाव चलाई है है क्योंकि तब काग़ज़ की नाव पानी में आराम से हवा के साथ बहते हुये दूर चली जाती थी । पर जब बारिश तेज़ होती थी तो चूँकि काग़ज़ जल्दी गीला हो जाता था तो नाव भी जल्दी डूब जाया करती थी । 😛
पर आजकल तो बारिश में काग़ज़ की नाव कम असली नाव ज़्यादा चलती है ।
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