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Showing posts from July, 2007

कुछ बातें सीरियल की....

आज कई दिनों बाद हम टी.वी.पर आने वाले कुछ सीरियल की बात करने जा रहे है। अरे-अरे आप भागिये मत । इतना डरने की जरुरत भी नही है। असल मे वो क्या है ना कि आजकल न्यूज़ देखना भी उतना ही दुखदायी होता जा रहा है जितना कि टी.वी.सीरियल। अब टी.वी.सीरियल की बात हो और बालाजी का नाम ना आये तो ये तो संसार का आठवां आश्चर्य हो जाएगा आख़िर एकता कपूर टी.वी.जगत की पहली सोप क्वीन (अरे साबुन नही सीरियल की)जो मानी जाती है। पर आज हम एकता कपूर के सीरियल की बात नही करेंगे। वो क्या है ना कि बीच मे कुछ दिनों के लिए हमने सीरियल से ब्रेक ले लिया था पर आजकल फिर से हम सीरियल देखने लगे है। ओह्हो आप बड़ी जल्दी घबरा जाते है कि अगर एकता की नही तो फिर आख़िर हम किसकी बात करने जा रहे है। तो जनाब जैसा की हमने एक बार पहले भी कहा था कि सोनी पर आने वाला सीरियल विरूद ्व बहुत अच्छा है और एक बार फिर हम आपसे कहते है कि विरूद्व बहुत अच्छा सीरियल है। कम से कम सास -बहू की तरह उबाऊ और खीचाऊ सीरियल नही है। जितनी दमदार कहानी है उतनी ही दमदार सारे कलाकारों की एक्टिंग भी है। वो चाहे स्मृति इरानी हो या विक्रम गोखले हो या सुशांत सिंह या फि

बिना टिकट यात्रा

आज सुबह - सुबह ज्ञानदत्त जी की पोस्ट पढ़कर हमे अपनी जिंदगी की पहली और आख़िरी बिना टिकट यात्रा याद आ गयी। पहली और आख़िरी इस लिए लिख रहे है क्यूंकि हम लोगों ने कभी भी बिना टिकट यात्रा नही की थी । ना तो उससे पहले और ना ही कभी उसके बाद । यूं तो रेलगाडी के सफ़र के साथ ढेरों यादें है। पर बिना टिकट यात्रा का अपना ही मजा है अगर पकड़े ना जाएँ तो।वरना ...... ये बात तो काफी पुरानी है।गरमी की छुट्टियाँ हुई थी और हम सब भाई- बहन बच्चों सहित इलाहाबाद मे इकट्ठा थे बस हमारी मिर्जापुर वाली दीदी इलाहाबाद नही पहुंची थी क्यूंकि वो कुछ बीमार थी । तो हम सब ने की चलो अगर वो बीमार है और इलाहाबाद नही आ पा रही है तो क्या हम लोग ही मिर्जापुर हो आते है।अब इलाहाबाद से मिर्जापुर है ही कितनी दूर। बस इतना सोचना था कि फ़टाफ़ट मम्मी-पापा को हम लोगों ने अपना मिर्जापुर जाने का प्रोग्राम बताया और इससे पहले कोई कुछ कहे हम बहने और भाभी ं मय बच्चों के चल दिए मिर्जापुर। हम सब छोटे-बडे मिलाकर दस लोग थे. बस भईया अपने किसी काम की वजह से नही जा पाए थे। शायद एक -डेढ़ घंटे मे हम लोग मिर्जापुर पहुंच गए

क्या हिंदी मे बात करना गलत है?

अब इस शीर्षक देख कर तो हर हिन्दुस्तानी यही कहेगा कि लो जी ये भी कोई पूछने की बात है। अब हम भारत वासी हिंदी नही बोलेंगे तो और क्या बोलेंगे। भाई जब चीनी लोग चीनी भाषा बोलते है और रशिया के लोग रशियन तो भला हम लोग हिंदी क्यूं नही बोल सकते है। अब ये तो हम लोग सोचते है की हिंदी हमारी मातृभाषा है पर शायद दूसरे देश के लोग ऐसा नही सोचते है। वैसे इसमे उनकी गलती भी नही है क्यूंकि हमारे हिंदुस्तान मे आजकल क्या हमेशा से ही अंग्रेजी को ज्यादा महत्त्व दिया जाता रहा है।और अब तो इंग्लिश के बिना गुजारा ही नही होता है। चाहे वो कॉलेज हो या कोई दफ्तर या कोई बड़ा उत्सव हो या चाहे कोई पार्टी हर जगह सिर्फ इंग्लिश का ही बोलबाला है। हमारे बडे-बडे नेता हो या चाहे अभिनेता हो हिंदी बोलने मे उन्हें परेशानी लगती है की पता नही अगला व्यक्ति उनकी बात समझेगा या नही। यूं तो bollywood हिंदी फिल्मों के लिए जाना जाता है पर हमारे अभिनेता और अभिनेत्रियाँ हिंदी बोलने से कतराते है। दर्जनों उदाहरण मिल जायेंगे। हम हिंदुस्तानियों की एक बहुत ही अच्छी आदत है की हम दूसरों का बहुत ख़्याल करते है मसलन अगर कोई हिन्दुस्तानी किसी दूस

तनहा टूटहूँ टूं

क्या आप ने कभी ताश के खेल जैसे कोट पीस या तीन-दो-पांच मे चीटिंग की है। क्या कभी चीटिंग नही की है। वैसे यकीन तो नही आता है पर मान लेते है। तो चलिये इसी बात पर हम आपको एक और अपने बचपन से जुडी बात बताते है। जब हम छोटे थे उस समय आज की तरह ढेरों मनोरंजन के साधन नही होते थे। एक रेडियो होता था जिस पर विविध भारती और सीलोन सुना जाता था । और या तो पिक्चर देखने या किसी होटल मे खाना खाने जाया जाता था। पर छुट्टियों मे या यूं भी कभी -कभी ताश भी खेला जाता था। आम तौर पर तो कोट पीस वगैरा ही खेला जाता था पर दिवाली मे फ्लश अरे वही तीन पत्ती या पपलू खेला जाता था। हमारे बाबूजी (बाबा )को ताश खेलने का बहुत शौक़ था ,बाबूजी को क्या एक तरह से हम सभी को ताश खेलने मे बड़ा मजा आता था। कोट पीस मे चार लोग खेलते है । दो - दो लोग पार्टनर बन कर एक टीम बन जाते थे । और हर टीम जीतने के सारे हथकंडे अपनाती थी।ताश के पत्तों मे spade (हुकुम )heart (पान ) diamond ( ईट ) club(चिड़ी) आप सब तो जानते ही होंगे । जिसमे एक टीम पत्ते बांटती है तो दूसरी टीम trump बोलती है । जो टीम trump बोलती है उसे

दोहरा मापदंड क्यों ?

आज का दिन यानी की पच्चीस जुलाई को दो बिल्कुल विरोधी घटनाएं हुई है और दोनो घटनाएं हमारे देश की दो महिलाओं से जुडी है। एक मे महिला को उच्च सम्मान मिला तो दूसरे मे महिला को वो सम्मान नही मिला जिसकी वो हकदार है। पहली महिला जिन्हे उच्च सम्मान मिला वो प्रतिभा पाटिल है जो शायद भारत की पहली महिला गवर्नर थी और वही प्रतिभा पाटिल आज भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनी और जिन्होंने आज राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की है। ये हमारे देश के लिए गौरव की बात है। और दूसरी महिला है किरण बेदी जो की देश की पहली महिला I.P.S.थी पर आज उन्हें दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नही बनाया गया बल्कि उनकी जगह वाई .एस . ददवाल को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाया गया जबकि किरण बेदी ददवाल से दो साल सीनियर भी है। जो शायद शर्म की बात है। इस तरह का दोहरा मापदंड रखने का क्या कारण है ?

एक बार फिर घूम आये ताज महल

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ताज महल यूं तो हम सभी ताज महल के बारे मे जानते है। पर फिर भी आज हमने सोचा की क्यों ना ताज महल के बारे मे ही कुछ लिखा जाये । वो क्या है ना कि अभी हाल ही हम हमारी दीदी और बच्चे आगरा गए थे ताज महल देखने। ऐसा नही है कि हम पहली बार ताज महल देखने गए थे। इससे पहले भी कई बार हम ताज महल देख चुके है पर हर बार जब भी जाते है कुछ नया ही देखने को मिलता है। जैसे पहले तो कार बिल्कुल ताज महल के गेट तक जाती थी पर अबकी देखा कि सब कार ताज महल से करीब आधा कि.मी.पहले ही रोक दी जाती है और फिर वहां से बैटरी चालित बस से ताज महल के गेट तक जाना पड़ता है। क्यूंकि ये सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है ताज महल को प्रदुषण से बचाने के लिए।बस गेट पर टिकट खरीदिये और चल दीजिए ताज महल देखने। तो हम लोगों ने भी अपनी कार पार्किंग मे छोडी और चल दिए बैटरी चालित बस से ताज महल के गेट पर ,वहां से टिकट लेकर जैसे ही सिक्यूरिटी चेक करा कर आगे बढ़े कि एक गाइड ने पूछा कि गाइड चाहिऐ क्या। यूं तो हम सभी जानते है कि शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल के लिए ताज महल बनवाया था जो उनकी मुहब्बत की निशानी है। ताज महल सफ़ेद मार्बल से बनाया गया है पर क्या आ

टिप्पणियों का महत्त्व

ये चिठ्ठा जगत भी अजीब जगह है ये वो जगह है जहाँ हर कोई अपने मन की बात बेख़ौफ़ होकर लिख सकता है । जहाँ कोई भी अपना ब्लौग बना सकता है और उसपर हर रोज किसी भी विषय पर अपने विचार अपनी पोस्ट के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर सकता है। पर अपने विचार लिखकर पोस्ट कर देने मात्र से ही कुछ नही होता है। अगर कोई भी उसे पढ़ेगा नही तो फिर लिखने का क्या फायदा।और अगर किसे ने पोस्ट पढी और बस चुपचाप बिना कुछ कहे मतलब बिना टिप्पणी किये चला जाता है तो फिर उस पोस्ट को लिखने वाले को ये कैसे पता चलेगा की वो जो कुछ भी लिख रहा है वो लोगों को कैसा लग रहा है। लोग उसके लिखे को पसंद करते है या नही। क्यूंकि टिप्पणी ही एकमात्र ऐसा जरिया है जिसमे आप चिठ्ठा लिखने वाले की तारीफ ( अगर मन हो तो ) कर सकते है और लिखने वाले की बुराई भी कर सकते है । पर यकीन मानिए ये टिप्पणियां ही लिखने वाले का हौसला बनाए रखती है इसका हमने अपनी ब्लॉगिंग के तीन महीने म े जिक्र भी किया था की उन शुरूआती दिनों मे उन्मुक्त जी की पहली टिप्पणी ने हमारी किस तरह से हौस

नारद रेटिंग

अभी हमने जब नारद की साईट खोली तो लो भईया हम तो दंग ही रह गए की अभी तक हमारी तीन पोस्टों मे से एक भी पोस्ट आख़िर क्यों नही नजर आ रही है। पर खैर अब ये हमारे हाथ मे तो है नही। तो बाक़ी लोगों के ब्लॉग पढने के बाद हम यूं ही टहल कदमी करते हुए नारद रेटिंग पर देखने लगे की यहां पर क्या है तो पाया की वहां सभी चिट्ठाकार जो नारद पर रजिस्टर्ड है उन्हें रेटिंग दी गयी है । और चिट्ठों की अलग-अलग श्रेणी बनायी गयी है और उनको अलग-अलग नम्बर देकर रेटिंग की गयी है। जो की काबिले तारीफ है। यूं तो ये बहुत ही अच्छा है पर यही पर आता है एक पेंच वो ये है कि और तो सारे चिट्ठाकारों के नाम काली इंक मे लिखे है पर कुछ चिट्ठाकारों जैसे घुघुती वासूती ,notepad ,और mamta t.v.कुछ नारंगी से लिखा है । पर बहुत सोचने पर भी हमारी समझ मे ये नही आया की आख़िर ऐसा क्यूं है।फिर लगा कि हो सकता है कि महिला होने के नाते हम लोगों को इस तरह से लिखा गया है । पर अगर ऐसा इसलिये है की हम तीनो महिला है तो फिर अन्य महिला चिट्ठाकार के नाम भी नारंगी रंग मे क्यूं नही लिखे गए है। और विनय पत्रिका को नारंगी रंग से क्यूं लिखा है ? हो सकता है

शनि का प्रभाव

आप यही सोच रहे है ना कि भाई हम पर आख़िर शनि महाराज का कैसे प्रभाव पड़ा है। अलग-अलग लोगों ने शनि के बारे मे ख़ूब लिखा है जैसे सुजाता जी ने कई बार शनि की दशा के बारे मे लिखा है तो कल की ब्लॉगर मीट मे हमारे ना पहुँचाने के पीछे कहीँ शनि का तो कुछ प्रभाव नही था। अब पिछले कई दिनों से सभी न्यूज़ चैनल शनि के प्रभाव के बारे मे बता रहे है कि कैसे शनि हमारी राशियों पर असर डाल रहा है। और हमे अपनी शनि की दशा ठीक रखने के लिए क्या-क्या करना चाहिऐ। कौन से stone पहनने चाहिऐ ,वगैरा-वगैरा। पर हमने इन बातों पर ध्यान ही नही दिया और उसका नतीजा की हम कल की ब्लौगर मीट का मीट चखने से रह गए। अब देखिया ना कल हमने सुबह-सुबह अरे मतलब ब्लॉगर मीट मे जाने से पहले एक पोस्ट मायाबंदर नाम से लिखी थी ,अब इतने दिनों मे तो आप जान ही गए है की बिना पोस्ट लिखे तो चैन आता नही है तो सोचा जाने के पहले ही पोस्ट लिख दी जाये। पर हमे क्या पता था की हमारी तो शनि की दशा ही खराब है। क्यूंकि आज सुबह तक वो पोस्ट नारद पर दिखाई नही दे रही है इसलिये आज हमने उसे तारीख बदल कर दूबारा पोस्ट किया है। वैसे कल शायद नारद के ऊपर भी शनि भार

ख़ूब रही दिल्ली की ब्लॉगर मीट

आज सुबह यानी 14.7.07 को दिल्ली मे ब्लॉगर मीट होनी थी और उसमे हमने भी जाने के लिए अपनी सहमति जताई थी और हम पूरी तरह से तैयार भी थे। और चुंकि मिलने की जगह जैसा की अमित ने लिखा था या तो पैट्रोल पम्प या mcdonald पर इकट्ठा होकर सभी लोग ग्यारह बजे सरवना पहुंचेंगे। हमने भी अपनी इस ब्लॉगर मीट का सबसे ख़ूब बखान किया था की इस बार हम दुसरे ब्लॉगर से मिलेंगे। ख़ूब ढिंढोरा पीट रखा था । आज सुबह जब हमने अपना ब्लोग देखा तो उसमे मसिजीवी जी ने टिपण्णी के साथ एक लिंक जो की ब्लॉगर मीट के संबंध मे था हमारी पोस्ट पर छोड़ा था। हमने लिंक खोलने की कोशिश की पर असफल रहे तो हमने मसिजीवी जी को मेल भेजा और उनसे कहा की चुंकि जो लिंक उन्होने पोस्ट पर लगाया था वो खुल नही रहा है इसलिये जो भी बात है वो हमे मेल कर दे क्यूंकि हमे लग रहा था की कहीँ मिलने की जगह ना बदल गयी हो। पर हमे कोई जवाब नही मिला तो हमने सोचा की venue तो वही होगा । आज हमारे छोटे बेटे का जन्मदिन भी है इसलिये हमने सोचा की जब हम सब ब्लॉगर मिल रहे है तो सबको केक खिलाया जाये क्यूंकि ऐसे मौक़े बार-बार कहॉ आते है। तो भाई हम भी सुबह उठकर तैयार होकर सव

मायाबंदर

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नाम पर मत जाइए क्यूंकि यहां ना तो माया (शोर-शराबा )है और ना ही बन्दर ,ये अंडमान का एक छोटा द्वीप या आप इसे एक बहुत- बहुत ही छोटा सा शहर भी कह सकते है। मायाबंदर पोर्ट ब्लेयर से करीब २३० कि.मी.कि दूरी पर है और वहां सड़क के रास्ते और समुन्दर के रास्ते से जा सकते है सड़क के रास्ते जाने के लिए ए.टी.आर से जाना पड़ता है । यूं तो ढाई सौ किलोमीटर की दूरी आराम से तीन या ज्यादा से ज्यादा चार घंटे मे तै कर सकते है पर अंडमान मे ऐसा नही है । यहां पर हम अपनी मर् जी से बिल्कुल भी नही चल सकते है। ये ढाई सौ किलोमीटर की किलोमीटर की दूरी तै करने मे कम से कम नौ घंटे लगते है और कई बार तो ज्यादा भी लग सकते है। इतना समय इसलिये लगता है क्यूंकि एक तो पहले जंगल को पार करना होता है जैसा की हमने पहले भी बताया है की जंगल पार करने के लिए convoy के साथ चलना पड़ता है और दो क्रीक भी पार करनी पड़ती है। और रास्ता ऊंचा -नीचा माने चढ़ाई पड़ती है और कई बार बारिश मे सड़कें भी खराब होती है। अगर पोर्ट ब्लेयेर से सुबह पांच बजे चले तो पहले convoy मे जा सकते है और फिर नाम कुछ भूल रहे है शायद सदर्न क्रीक पर vehicle ferry

कौन ज्यादा जोर से हँसता है.

हँसना एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिससे हम अपने मन के भावों को दर्शाते है। हर व्यक्ति का अपना हंसने का स्टाइल होता है और कई बार लोग अपने हंसने के स्टाइल से ही जाने जाते है। अब आप लोग ये तो जरूर सोच रहे होंगे की लगता है हमने हंसने पर रिसर्च तो नही की है तो अब ये तो आप पर निर्भर करता है ,वैसे अगर आप इसे हमारा शोध कार्य मानते है तो भी कोई बात नही। लो जी अभी तो हमने शुरू भी नही किया और आप हंसने लगे ,ये अच्छी बात नही है । वैसे आपको जानकार थोडा या शायद ज्यादा आश्चर्य होगा की अंडमान और गोवा मे लोग बहुत ज्यादा हँसते नही है मतलब जो लोकल लोग है। अब क्यूं ये तो वो लोग ही जाने। हम कोई बुराई नही कर रहे है पर ऐसा ही है । पर हम जैसे लोगों के लिए क्या गोवा और क्या अंडमान सब जगह हँसते हुए ही समय बिताते है । क्यूंकि कहते है ना की हँसना सेहत के लिए अच्छा होता है। आज की भाग - दौड़ की जिंदगी मे तो लोग जैसे हँसना भूलते ही जा रहे है वो क्या है ना समय नही है । सुबह से रात तक सिर्फ और सिर्फ काम और टेंशन । जो लोग ऑफिस जाते है उन्हें दुनिया भर के टेंशन और जो

नया दौर नया रंग

अब मुगल-ए-आजम के बाद नया दौर को भी black and white से बदल कर रंगीन मतलब कलर कर दिया गया है। मुगल-ए-आजम को तो लोगों ने black and white मे जितना पसंद किया था उतना ही कलर मे भी पसंद किया । और आज की जेनरेशन को ऐसी क्लासिक फ़िल्में दिखाने के लिए b&w की बजाय उन्हें कलर मे दिखाना जरूरी है क्यूंकि black and white मे तो फिल्म देखना उनके लिए एवरेस्ट की चढ़ाई से कम नही होगा । नया दौर जो 1957 मे बनी थी वो उस ज़माने की बहुत बड़ी हिट फिल्म थी । हमने तो ये फिल्म काफी बाद मे देखी अरे भाई उस समय हम पैदा जो नही हुए थे। बी.आर.चोपडा की इस फिल्म ने जो संदेश उस समय दिया था वो आज के समय मे भी उतनी ही वकत रहता है। उस समय की ये एक क्रांतिकारी फिल्म मानी गयी थी जैसा की इसके नाम से ही जाहिर होता है नया दौर । फिल्म के कलाकारों की बात करें तो कोई भी किसी से कम नही ,वो चाहे दिलीप कुमार हो या वैजन्तिमाला या अजीत।दिलीप कुमार की तो यही खास बात थी की वो रोल मे बिल्कुल डूब जाते थे । वैजन्तिमाला की सुन्दरता और बड़ी-बड़ी ऑंखें मट्काना ही उनकी खासियत नही थी बल्कि वो एक्टिंग भी बहुत अच्छी करती थी। और गाँव का माहौ

ननिहाल मे गरमी की छुट्टियाँ

गरमी की छुट्टियाँ जिंदगी मे एक अलग ही मायने रखती है। हम चाहे किसी भी उम्र के हो पर गरमी की छुट्टियों का बड़ी बेसब्री से इन्तजार करते है। जब हम छोटे थे तो गरमी की छुट्टियों का बहुत इन्तजार करते थे क्यूंकि इन्ही छुट्टियों मे हम नानी के घर फ़ैजाबाद जाते थे .और अगर नानी के घर नही गए तो या तो कोई ना कोई मौसी या मामा इलाहाबाद आ जाते थे या फिर हम लोग जाते थे। और जहाँ सारे मौसी-मामा के परिवार इकट्ठा हुए और सबके बच्चे तो किसी और की जरूरत ही नही रहती थी अरे मतलब कम से कम पांच बच्चे तो होते ही थे। और हमारी मम्मी सात भाई-बहन थे तो आप अंदाजा लगा ही सकते है। पर जो भी हो उतने सारे लोगों मे जो मौज-मस्ती और लड़ाई -झगडे होते थे की मम्मी और मौसी लोग कई बार परेशान हो जाती थी और कई बार हम लोग को कहा जाता था की अगर तुम लोग झगड़ा करा करोगे तो हम लोग एक साथ नही आया करेंगे। बस उन के इतना कहते ही हम सब बिल्कुल अच्छे बच्चों की तरह मिल जाते थे.पर ज्यादा देर नही। हमारी और छोटी मौसी की बेटी नंदा जो हमसे दो साल छोटी थी ,हम दोनो का आपस मे ख़ूब युद्घ होता था और दोस्ती भी बहुत रहती थी। अब युद्घ तो नही होता है

होनी-अनहोनी

कल दोपहर से शाम तक सारे न्यूज़ चैनल मे होड़ लगी थी की करनाल मे जो आसमान मे चमकती हुई चीज दिखी थी वो क्या है। करीब दो बजे दिन से स्टार न्यूज ़ ब्रेकिंग न्यूज़ मे आसमान मे अनहोनी देखिए तीन बजे दिखा रहा था तो आज तक भी यही दिखा रहा था। तीन-चार घंटे तक यही नाटक चलता रहा। स्टार न्यूज़ वाले जहाँ करनाल के लोगों से जिन्होंने इस चमकती हुई चीज को देखा था उनसे बात कर रहे थे ,और हर इन्सान अपने-अपने हिसाब से उसका वर्णन कर रहा था साथ ही वैज्ञानिकों से भी बात कर रहे थे। और ये साबित करने मे लगे थे की आसमान मे अनहोनी घटना हुई है। पर वो लोग डी.एम्.की बात को उतना तवज्जोह नही दे रहे थे जो यह कह रहा था की ऐसा कुछ नही है। हालांकि आजतक ये कह जरूर रहा था की अफवाहों पर ध्यान ना दे ऐसा कुछ भी नही है। पर बीच-बीच मे ये कहने से भी नही चुकते थे कि आसमान मे कोई अनहोनी और अदभुत घटना हो गयी है। आज तक पर तो एक वैज्ञानिक ने ये तक कह दिया की मीडिया को ऐसी बातों को बढावा नही देना चाहिऐ पर मीडिया की सेहत पर कहॉ कोई फर्क पड़ता है। जब देखो तब ऐसी ही खबर दिखा देता है। अभी चंद रोज पहले इंडिया टी.वी.ने एक बिना ड्राइवर के
ताज क्या वाकई मे नम्बर वन है ? हमारी इस पोस्ट पर आप लोगों के कमेंट्स पढ़कर हमे लगा कि शायद आप लोग ये सोच रहे है कि हम ताज के नम्बर वन आने पर खुश नही है। अजी ऐसा बिल्कुल नही है हम ताज के दुनिया के सात अजूबों मे नम्बर एक पर आने पर बेहद खुश है और हों भी क्यों ना आख़िर हमने भी तो ताज के लिए एस.एम्.एस किया था और नेट पर वोट भी किया था क्यूंकि हर हिंदुस्तानी की तरह हम भी ताज को दुनिया के सात अजूबों मे देखना चाहते थे। ताज के बारे मे ये सवाल उठा कर हम किसी को दुःख नही पहुँचाना चाहते थे पर अगर किसी को हमारा ये पूछना गलत लगा हो तो हम क्षमा चाहते है । जैसा कि divine india ने लिखा है कि ताज प्यार की एक बेमिसाल निशानी है। और ताज ताज है तो हम भी इस बात से इनकार नही करते है कि ताज ताज है और ताज जैसा ना तो पहले कभी कोई था और ना ही कभी कोई दूसरा होगा। इसके लिए यहां पढ े । B.N.जी हमने ये सवाल यूं ही नही उठाया है । और कल तो कुछ न्यूज़ चैनल भी ऐसी ही कुछ बात कह रहे थे । समीर जी आपने बिल्कुल ठीक कहा है हमे ताज के चुने जाने पर नही बल्कि उसको चुनने की प्रक्रि

क्या ताज वाकई में number १ है?

कल यानी सात जुलाई दो हजार सात को दुनिया के सात अजूबों का ऐलान होना था पर पिछले कुछ दिनों से हर कोई ताज के लिए अपने - अपने तरीके से वोट करने को कह रहा था जिसमे सबसे आगे सारे न्यूज़ चैनल थे । यहां तक की दूरदर्शन भी । और ये तो सभी जानते है की आज कल टी . वी . प्रचार का सबसे अच्छा साधन है । ये तो हम आप सभी जानते है कि किस तरह वोट फ़ॉर ताज की मुहिम चलाई गयी थी । अखबारों मे भी कभी ताज महल मे लोगों की फोटो खीचने वाले फोटोग्राफ़र का तो कभी वहां के गाइड का interview छप रहा था । कई लोग जिन्हे ई - मेल करना नही आता था वो किसी दूसरे की मदद से ताज के लिए वोट कर रहे थे । हर कोई एस . एम् . एस . कर रहा था क्यूंकि ताज को जिताना जो था आखिर देश की शान जो है ताज । और आख़िर कल ताज दुनिया का नम्बर वन अजूबा बन गया । और कल जब ये घोषणा होनी थी उस समय बिपाशा बासु भी लिस्बन मे मौजूद थी क्यूंकि उन्हें ही दुनिया के नम्बर वन अजूबे की घोषणा क

यादोंके झरोखों से...जब हमने खाना बनाया

यूं तो ये बहुत पुरानी बात है पर आज भी इस बात को याद कर हंसी आ जाती है।हम यही कोई छे-सात साल के रहे होंगे। घर मे हमेशा नौकर रहते थे तो इसलिये काम करने की कभी जरूरत ही नही पड़ती थी और जब नौकर छुट्टी जाता था (हर साल गरमी मे कम से कम एक महीने के लिए ) तो मम्मी और जिज्जी लोग किचन संभल लेती थी। देखा छोटे होने का फायदा है ना ,और वैसे भी हम इतने छोटे थे कि किचन मे जाने और खाना बनाने का सवाल ही नही उठता था। हालांकि पापा को हम मे से किसी का भी किचन मे जाना पसंद नही था। यहां तक की मम्मी का भी पर गरमी मे इससे बचने का कोई उपाय भी तो नही था। उन दिनों मम्मी के कान मे बहुत तकलीफ रहती थी तो डाक्टर ने कहा था की ऑपरेशन करना जरूरी है और इसके लिए कुछ दिन मम्मी को हॉस्पिटल मे रहना पड़ेगा। अब जब डाक्टर ने कह दिया कि ऑपरेशन के बिना कान का दर्द ठीक होना मुश्किल है तो पापा भी तैयार हो गए। यूं तो उस समय मेडिकल कालेज के प्राइवेट वार्ड मे ख़ूब अच्छा और बड़ा कमरा जिसमे छोटा सा बरामदा और किचन भी होता था , पापा ने मम्मी के लिए ऐसा ही एक प्राइवेट वार्ड ले लिया था और वो प्राइवेट वार्ड हम लोगों का सेकेंड होम मतलब घर

सन्डे के फंडे

आज सन्डे है तो सोचा की कुछ इस पर ही बात हो जाये। सन्डे मतलब देर से उठना देर से नाश्ता देर से नहाना और कई बार तो नहाना गोल ही कर देना और देर से खाना माने हर काम आराम-आराम से करना क्यूंकि पहले तो सिर्फ सन्डे की ही छुट्टी हुआ करती थी और हर कोई सन्डे का इंतज़ार करता था ।सन्डे यानी funday यानी घूमना ,पिकनिक,मौज-मस्ती । जैसे जब हम लोग छोटे थे और स्कूल जाते थे तो सन्डे का मतलब सिर्फ खेल-कूद होता था क्यूंकि उस दिन तो मम्मी भी नही रोकती थी और उस समय outdoor या घर के बाहर जाकर खेलना अच्छा माना जाता था। और सुबह देर तक सोना भी होता था( पर आठ या नौ बजे से ज्यादा नही ) क्यूंकि स्कूल के दिनों मे तो सुबह-सुबह उठना जो पड़ता था। सोकर उठो ,नाश्ता करो जिसमे हलवा तो जरूर ही होता था और बस पूरे दिन की छुट्टी। और आज के समय मे सन्डे का मतलब सुबह कम से कम ग्यारह बजे तक सोना बहुत से लोग तो दोपहर के दो बजे तक सोते है क्यूंकि शनिवार की रात को ज्यादा देर तक जागते जो है।बहुत् से लोग तो सन्डे को सिर्फ सोकर ही बिताना चाहते है क्यूंकि भाग-दौड़ की जिंदगी मे सोने का समय जो नही मिलता है और अब तो कंप्यूटर भी लोगों को