मायाबंदर

नाम पर मत जाइए क्यूंकि यहां ना तो माया (शोर-शराबा )है और ना ही बन्दर ,ये अंडमान का एक छोटा द्वीप या आप इसे एक बहुत- बहुत ही छोटा सा शहर भी कह सकते है। मायाबंदर पोर्ट ब्लेयर से करीब २३० कि.मी.कि दूरी पर है और वहां सड़क के रास्ते और समुन्दर के रास्ते से जा सकते है सड़क के रास्ते जाने के लिए ए.टी.आर से जाना पड़ता है । यूं तो ढाई सौ किलोमीटर की दूरी आराम से तीन या ज्यादा से ज्यादा चार घंटे मे तै कर सकते है पर अंडमान मे ऐसा नही है । यहां पर हम अपनी मर्जी से बिल्कुल भी नही चल सकते है। ये ढाई सौ किलोमीटर की किलोमीटर की दूरी तै करने मे कम से कम नौ घंटे लगते है और कई बार तो ज्यादा भी लग सकते है। इतना समय इसलिये लगता है क्यूंकि एक तो पहले जंगल को पार करना होता है जैसा की हमने पहले भी बताया है की जंगल पार करने के लिए convoy के साथ चलना पड़ता है और दो क्रीक भी पार करनी पड़ती है। और रास्ता ऊंचा -नीचा माने चढ़ाई पड़ती है और कई बार बारिश मे सड़कें भी खराब होती है।

अगर पोर्ट ब्लेयेर से सुबह पांच बजे चले तो पहले convoy मे जा सकते है और फिर नाम कुछ भूल रहे है शायद सदर्न क्रीक पर vehicle ferry जल्दी मिल जाये । हम लोग तो हमेशा पांच या साढे पांच बजे घर से निकलते थे जिससे पहले convoy मे जंगल पार करें और ferry भी मिल जाये। पहली क्रीक पार करने के बाद करीब पच्चीस या तीस कि.मी.बाद दूसरी क्रीक शायद गाँधी घाट आती है और अगर वहां ferry जल्दी मिल जाती है तो मायाबंदर पहुँचने मे समय थोडा कम लगता है। एक jetty पर दो या तीन ferry ही होती है और चुंकि वहां पर लोकल लोग या तो बस से सफ़र करते है या बोट से। इसलिये वहां के प्रशासन का आदेश है कि ferry पर पहले बस जायेगी उसके बाद गाडियां । इसीलिये अक्सर क्रीक पार करने मे थोडा ज्यादा समय लगता है। हालांकि क्रीक पार करने मे मुश्किल से दस मिनट भी नही लगते है। पर फिर भी मजा आता है और सबसे मजा तब आता है जब दो ferry एक-दूसरे को क्रॉस करती है।

रंगत से जब मायाबंदर जाते है तो थोड़ी दूर तक समुन्दर भी साथ-साथ चलता है बीच-बीच मे पेड़ों के झुरमुट मे से चमकता हुआ पानी (अगर धुप तेज हो )और दूर जहाँ तक नजर जाती है बस समुन्दर ही दिखाई देता है। थोड़ी दूर पर एक काली माँ का मंदिर है और वहां के पुजारी इतने सीधे कि एक बार हम लोग वहां दर्शन के लिए गए तो मंदिर मे ताला लगा देखा । हम लोगों को देखकर पुजारी जी ने बड़ी ही सादगी से कहा कि आज आप लोग बाहर से ही दर्शन कर लीजिये क्यूंकि उन्हें कहीँ जाना था,इसलिये वो मंदिर मे ताला लगा कर जा रहे है। कहने का मतलब है कि वहां के लोग सीधे होते है और जो बात है उसे बिल्कुल बिना हिचक बता देते है।

रास्ते मे पंचवटी पड़ता है जहाँ एक बहुत ही छोटा सा waterfall पड़ता है । ये फोटो वहीँ की है। अंडमान की एक खासियत ये भी है की वहां कुछ नाम मिलते जुलते से होते है। जैसे जब दूसरी क्रीक पार करते है तो पहले कदमतला आता है फिर और ऐसे ही कई नाम जैसे निम्बुतला, फूलतला और फिर शुरू होते है डेरा जैसे निम्बुडेरा वगैरा। मायाबंदर पहुँचने से करीब दस -पन्द्रह कि.मी.पहले से बर्मीज लोग दिखने शुरू हो जाते है। और वहां से गुजरते हुए ये अहसास होता है कि मानो बर्मा का कोई छोटा सा गाँव हो। बर्मीज अभी भी वहां रहते है,उनके कपडे पहनने का ढंग ,बोलचाल बिल्कुल वैसा ही है।गेस्ट हाउस से ही कुछ सीढियाँ नीचे उतरकर ये जगह बनी है जहाँ बैठकर आप विभिन्न प्रकार की मछलियाँ देख सकते है क्यूंकि पानी बहुत ही साफ होता है

यूं तो मायाबंदर मे कुछ खास नही है सिवाय a.p.w.d.के गेस्ट हाउस के जो कि बहुत सुन्दर है और नजारा तो अंडमान मे आप जहाँ खडे हो जाएँ सुन्दर ही दिखता है।चुंकि यहां और कोई अच्छी जगह नही है ठहराने के लिए इसलिये गेस्ट हाउस मे पहले से बुकिंग करनी पड़ती है
वैसे आस-पास छोटे-छोटे island है अगर कोई चाहे तो जा सकता है तो सवाल ये उठता है की फिर हम क्यों नही गए तो वो इसलिये की वहां जो डोंगी (बोट)चलती है जैसी अपने इलाहाबाद मे संगम पर नाव चलती है तो हमे उसमे बहुत डर लगता है क्यूंकि वहां समुन्दर ज्यादातर रफ ही रहता है। यहां का karmateng bay तो कुछ खास नही है है पर वहां की ड्राइव जरूर बहुत अच्छी हैबस गेस्ट हाउस मे बैठे और प्रकृति को enjoy करें

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