नया दौर नया रंग

अब मुगल-ए-आजम के बाद नया दौर को भी black and white से बदल कर रंगीन मतलब कलर कर दिया गया है। मुगल-ए-आजम को तो लोगों ने black and white मे जितना पसंद किया था उतना ही कलर मे भी पसंद किया । और आज की जेनरेशन को ऐसी क्लासिक फ़िल्में दिखाने के लिए b&w की बजाय उन्हें कलर मे दिखाना जरूरी है क्यूंकि black and white मे तो फिल्म देखना उनके लिए एवरेस्ट की चढ़ाई से कम नही होगा ।


नया दौर जो 1957 मे बनी थी वो उस ज़माने की बहुत बड़ी हिट फिल्म थी । हमने तो ये फिल्म काफी बाद मे देखी अरे भाई उस समय हम पैदा जो नही हुए थे। बी.आर.चोपडा की इस फिल्म ने जो संदेश उस समय दिया था वो आज के समय मे भी उतनी ही वकत रहता है। उस समय की ये एक क्रांतिकारी फिल्म मानी गयी थी जैसा की इसके नाम से ही जाहिर होता है नया दौर ।


फिल्म के कलाकारों की बात करें तो कोई भी किसी से कम नही ,वो चाहे दिलीप कुमार हो या वैजन्तिमाला या अजीत।दिलीप कुमार की तो यही खास बात थी की वो रोल मे बिल्कुल डूब जाते थे । वैजन्तिमाला की सुन्दरता और बड़ी-बड़ी ऑंखें मट्काना ही उनकी खासियत नही थी बल्कि वो एक्टिंग भी बहुत अच्छी करती थी। और गाँव का माहौल बिल्कुल सादगी भरा हाँ जीवन अपनी कारस्तानियों से (मतलब ख़ून चूसने वाले जमींदार ) बाज नही आते थे । जीवन जैसे लोग हर गाँव मे हमेशा मौजूद रहते है पहले भी थे और आज भी है। और शायद हमारे गांवों की हालत आज भी वैसी ही है।

गाने तो इस फिल्म के सदाबहार है। हरेक गीत के बोल सुनने मे जितने सरल है उनका अर्थ उतना ही गूढ़ है। हर गाना एक अलग ही अंदाज मे गाया गया है । ओ .पी .नय्यर का संगीत इस फिल्म मे चार चांद लगा देता है। कोई भी गाना जैसे साथी हाथ बढाना साथी हाथ बढ़ाना साथी रे, या फिर ये गाना ये देश है वीर जवानों का
एक क्या इस फिल्म के तो सारे गाने ही बहुत अधिक लोकप्रिय हुए थे । क्या इन गानों को हम भूल सकते है - उड़ जब-जब जुल्फें तेरी , या माँग के साथ तुम्हारा मैंने माँग लिया संसार । देश भक्ती , शरारत या छेड़-छाड़ या प्यार का इजहार इन गानों मे वो सभी कुछ है और सुनने मे इतने मीठे की बस। वैसे अभी एक दिन उड़े जब-जब जुल्फें का रीमिक्स देखा और देख कर बहुत अफ़सोस हुआ कहॉ दिलीप कुमार और वैजन्तिमाला पर फिल्माया हुआ गाना और कहॉ रीमिक्स।


पर बात वही है की आज की जेनरेशन को पुराना वाला उड़े जब -जब जुल्फें तो पता नही होगा पर ये रीमिक्स वाला उड़े जब-जब जुल्फें जरूर पता होगा। तो इसलिये पुरानी अच्छी क्लासिक फिल्मों को कलर मे करके नयी जेनरेशन को दिखाना बेहतरीन आईडिया है क्यूंकि वो कहते है ना की किसी भी चीज़ का प्रेजेंटेशन अच्छा होना चहिये। और प्रेजेंटेशन का मतलब आज के समय मे शो बाजी हो गया है।

Comments

Yunus Khan said…
मुझे बेसब्री से इस फिल्‍म का इंतज़ार है । आने दीजिये फिर अपने ब्‍लॉग पर इसके रंगीन गीत चढ़ाऊंगा । मुझे लगता है कि ये एक अच्‍छी परंपरा बनती जा रही है । पुरानी फिल्‍में इसी बहाने रिवाईव हो जायेंगी । देव आनंद की फिल्‍म भी तो आ रही है । हम दोनों । कलर बनके ।
सचमुच, ओल्ड इज गोल्ड, साथ ही आपकी प्रस्तुति भी गोल्डी है।
Neeraj Rohilla said…
कम से कम इसी बहाने अच्छी फ़िल्में तो देखने को मिलेंगी । वरना "आप का सुरूर" और "धूम २" जैसी फ़िल्में ही देखनी पडेंगी । आज की फ़िल्मों के पटकथा लेखकों के बारे में कहा जा सकता है कि,
"आज तसव्वुर में कंगाली का दौर है" ।

साभार,
नीरज

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