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बिलकुल नही बदली दिल्ली

३ साल पहले १६ दिसमबर के दिन जो वीभतस घटना हुई थी जिसमें निरभया (जिसका असली नाम जयोती सिंह है ) की मृत्यु हो गई थी ,पर कया आज ३ साल बाद कुछ भी बदला है । ये लिखते हुये बेहद अफ़सोस हो रहा है कि आज भी हालात में बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं हुआ बल्कि हालात ख़राब ही हुये है । इस वीभतस घटना के बाद ऐसा लग रहा था कि जूवीनाईल क़ानून में कुछ बदलाव किया जायेगा पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । ना तो सरकार ना ही उचच न्यायालय ना ही उच्चतम न्यायालय ने इस के लिये कुछ किया । जबकि देश का क़ानून ऐसा होना चाहिये कि अपराधी भले ही नाबालिग़ क्यों ना हो सजा तो उसे भी वही होनी चाहिये जो एक निर्मम अपराधी की होती है । जब वो अपराध करता है तो सजा का भी हक़दार है । हमारे देश का क़ानून कहता है कि भले ही गुनहगार छूट जाये पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिये पर इस केस में तो गुनहगार सामने था पर सिर्फ़ इसलिये कि वो नाबालिग़ था उसे सिर्फ़ ३ साल की सजा दी गई जो कि ठीक नहीं था । जब अपराध करते हुये उसने सबसे अधिक निर्ममता दिखाई तो फिर उसे जुवीनाईल कहकर कम सजा देना बहुत बड़ी ग़लती है । अब जब वो जेल से छूटने वाला है तो वो किस

Times litfest delhi -2

कुछ दिन पहले लिखी पोस्ट में जैसा कि हमने कहा था कि ३० नवम्बर के टाइम्स लिटफेस्ट के बारे में लिखेंगे तो लीजिये हम अपने वादे के मुताबिक ३० तारीख के सेशन के बारे में लिख रहे है । पर थोड़ी देर से लिख रहे है । :) इस दिन बहुत जल्दी करने के बाद भी हम करीब १२ बजे के आस -पास पहुंचे जिसका हमें काफी अफ़सोस था क्यूंकि सुबह का सेशन जगदीश भगवती का था , और ये सेशन ११.३० बजे ख़त्म होना था और साढ़े ग्यारह बजे से रवीश कुमार और विनीत कुमार की दिल्ली की प्रेम कहानियाँ पर सेशन होना था जो हमें लग रहा था की हमसे छूट जायेगा पर खैर चूँकि शायद जगदीश भगवती जी का सेशन देर से ख़त्म हुआ तो रवीश जी का पूरा सेशन देखने को मिला। इस किताब में रवीश जी और विनीत कुमार ने जो रोज के जीवन में बस और मेट्रो में लड़के-लड़की की बात चीत ,इश्क और प्यार को बखूबी और बहुत ही रोचक अंदाज़ में लिखा है। उन दोनों ने अपनी किताब से कुछ बहुत ही दिलचस्प और छोटी -छोटी सी प्रेम कहानियां पदक कर सुनाई. इस किताब में सभी कहानियों को बड़े ही रोचक कार्टून की मदद से दिखाया गया है।जिसे विक्रम ने बनाया है । संक्षेप में ये एक छोटी,अच्छी,रोचक और दिलचस

Times Litfest Delhi

टाईम्स ऑफ इंडिया  लिटफेस्ट  दिल्ली २८,२९,३० नवंम्बर को मेडन  होटल ,७ शाम नाथ मार्ग  में आयोजित  किया गया था  , २९ और ३० नवम्बर को हम भी गए थे , वहां पांच अलग -अलग  जगहों पर सुबह १० बजे से शाम ८बजे तक सेशन चलते रहते थे नौर हर सेशन के ख़त्म होने के १० मिनट पहले या यूँ कह  ले कि सेशन के आखिर में जनता  गेस्ट  पैनल से सवाल पूछ सकती थी.  आयोजकों की तारीफ़ करनी होगी की वो किसी भी  गेस्ट को निर्धारित समय से ज्यादा नहीं बोलने  थे  और अगर कोई जरा ज्यादा समय लेता था तो पहले तो वो एक स्लिप देते  तब भी सेशन ख़त्म नहीं होता था तो बजर  बजा देते थे।   :) २९ को हमने ३-४ सेशन देखे।  सबसे पहले शोभा डे  और सुनील खिलनानी , पैट्रिक फ़्रेंच  और सिद्धार्थ वरदराजन  का सेशन देखा।   उसके बाद देवदत्त पटनायक और  दिलीप  पडगाओंकर  के बीच का सेशन बहुत ही रोचक और अच्छा था जिसमे  देवदत्त ने माया के ऊपर एक बहुत ही रोचक किस्सा सुनाया  कि एक बार एक गुरु अपने शिष्यों के साथ जंगल से आ रहे थे तभी एक हाथी सामने आ  गया तो गुरु जी  दौड़े तो उनके पीछे उनके शिष्य भी दौड़ने लगे , गुरु जी दौड़कर  सुरक्षित स्थान पर पहुँच  कर रुक