दास्ताने मोबाइल
ये बात उन दिनों की है जब हिंदुस्तान मे मोबाइल थोडा नया - नया सा था और बहुत महंगा भी होता था। ९६ -९७ मे मोबाइल से की गयी एक कॉल के १६ रूपये लगते थे और उस समय इनकमिंग और आउतगोइंग दोनो के लिए पैसा देना पड़ता था ।
उस समय हम लोग दिल्ली मे थे और हमारे बच्चे थोड़े बडे हो गए थे और हम टी।वी पर पिक्चर देख-देख उकता गए थे अरे उन दिनों हर पिक्चर मे हीरो तलवार लेकर विलन को मारने के लिए दौड़ता रहता था जिसे देख कर हम थक चुके थे। मिथुन और सनी देओल का जमाना था । तो हमने सोचा की बच्चे तो सुबह ही स्कूल चले जाते है और पतिदेव ऑफिस चले जाते है तो हम क्या करें घर मे पड़े-पड़े , इसलिये हमने एक फ्रीलान्सर के तौर पर एक कंपनी मे काम करना शुरू कर दिया ।हम भी रोज सुबह साढ़े नौ बजे जाते और दो बजे बच्चों के स्कूल से लौटने के समय तक वापस आ जाते थे। और अगर कुछ काम रह जाता था तो उसे घर ले आते थे।
धीरे-धीरे हम सभी का समय अच्छे से बीत रहा था और हमारा काम भी अच्छा चल रहा था । वैसे तो आमतौर पर हम दो बजे तक आ जाते थे पर जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ होती थी तो जरा मुश्किल होती थी क्यूंकि एक डर सा रहता था कि कहीँ कुछ हो ना जाये। उस समय बच्चे बडे तो थे पर इतने भी नही की हर चीज अपने आप संभाल ले। और गरमी की छुट्टियाँ हो तो और भी दिक्कत आ जाती थी तो हमने सोचा कि हमारे तो पैसे कहीं खर्च हो नही रहे है तो क्यों ना एक मोबाइल ही खरीद लिया जाये। सबने समझाया भी कि ये क्या बेवकूफी है पर हम भी कहां मानने वाले थे। हमने ये कहकर सबको चुप करा दिया कि जब बच्चे घर मे होते है तो हम काम मे ठीक से ध्यान नही दे पाते है। बस इसके बाद किसी ने भी कुछ नही कहा और हमने एक मोबाइल ले ही लिया।
वैसे ऑफिस मे फ़ोन तो था पर कई बार मिलता नही था। बच्चों को खास तौर पर कह रखा था कि अगर जरुरत हो तभी फ़ोन करना। एक दिन हम ऑफिस मे थे कि तभी हमारे बडे बेटे का फ़ोन आया कि "mom ड्राइंग रूम मे कोक की बोतल टूट गयी है ,हम लोग क्या करें। "
तो सबसे पहले हमने पूछा की तुम लोगों को चोट तो नही लगी।
और जब उसने कहा की नही तो हमने उसे समझाया की तुम लोग वहां से हट जाओ वरना कांच चुभ जाएगा । और ये भी कहा की जब महरी आएगी तो उससे साफ करवा लेना नहीं तो जब हम आएंगे तो साफ कर देंगे।
खैर जब हमारी बात यही ख़त्म हो गयी और हमने फ़ोन काटा तो सबने बच्चों के लिए चिन्ता जताई। पर तभी हम लोगों के साथ एक राम कुमार काम करते थे उन्होने हँसते हुए हमसे कहा कि मैडम जितने की कोक की बोतल नही आती उससे कहीँ ज्यादा पैसे तो आपने मोबाइल पर बात करने मे खर्च कर दिए। बस फिर क्या था जो होता वो यही कहता । पर उन्हें कौन समझाता कि बच्चों से बढ़कर तो कुछ नही है।
पर आज हालात इतने बदल गए है कि हर आदमी ही मोबाइल लिए हुए है और अगर कोई बिना मोबाइल के दिखता है तो कुछ अजीब लगता है।
उस समय हम लोग दिल्ली मे थे और हमारे बच्चे थोड़े बडे हो गए थे और हम टी।वी पर पिक्चर देख-देख उकता गए थे अरे उन दिनों हर पिक्चर मे हीरो तलवार लेकर विलन को मारने के लिए दौड़ता रहता था जिसे देख कर हम थक चुके थे। मिथुन और सनी देओल का जमाना था । तो हमने सोचा की बच्चे तो सुबह ही स्कूल चले जाते है और पतिदेव ऑफिस चले जाते है तो हम क्या करें घर मे पड़े-पड़े , इसलिये हमने एक फ्रीलान्सर के तौर पर एक कंपनी मे काम करना शुरू कर दिया ।हम भी रोज सुबह साढ़े नौ बजे जाते और दो बजे बच्चों के स्कूल से लौटने के समय तक वापस आ जाते थे। और अगर कुछ काम रह जाता था तो उसे घर ले आते थे।
धीरे-धीरे हम सभी का समय अच्छे से बीत रहा था और हमारा काम भी अच्छा चल रहा था । वैसे तो आमतौर पर हम दो बजे तक आ जाते थे पर जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ होती थी तो जरा मुश्किल होती थी क्यूंकि एक डर सा रहता था कि कहीँ कुछ हो ना जाये। उस समय बच्चे बडे तो थे पर इतने भी नही की हर चीज अपने आप संभाल ले। और गरमी की छुट्टियाँ हो तो और भी दिक्कत आ जाती थी तो हमने सोचा कि हमारे तो पैसे कहीं खर्च हो नही रहे है तो क्यों ना एक मोबाइल ही खरीद लिया जाये। सबने समझाया भी कि ये क्या बेवकूफी है पर हम भी कहां मानने वाले थे। हमने ये कहकर सबको चुप करा दिया कि जब बच्चे घर मे होते है तो हम काम मे ठीक से ध्यान नही दे पाते है। बस इसके बाद किसी ने भी कुछ नही कहा और हमने एक मोबाइल ले ही लिया।
वैसे ऑफिस मे फ़ोन तो था पर कई बार मिलता नही था। बच्चों को खास तौर पर कह रखा था कि अगर जरुरत हो तभी फ़ोन करना। एक दिन हम ऑफिस मे थे कि तभी हमारे बडे बेटे का फ़ोन आया कि "mom ड्राइंग रूम मे कोक की बोतल टूट गयी है ,हम लोग क्या करें। "
तो सबसे पहले हमने पूछा की तुम लोगों को चोट तो नही लगी।
और जब उसने कहा की नही तो हमने उसे समझाया की तुम लोग वहां से हट जाओ वरना कांच चुभ जाएगा । और ये भी कहा की जब महरी आएगी तो उससे साफ करवा लेना नहीं तो जब हम आएंगे तो साफ कर देंगे।
खैर जब हमारी बात यही ख़त्म हो गयी और हमने फ़ोन काटा तो सबने बच्चों के लिए चिन्ता जताई। पर तभी हम लोगों के साथ एक राम कुमार काम करते थे उन्होने हँसते हुए हमसे कहा कि मैडम जितने की कोक की बोतल नही आती उससे कहीँ ज्यादा पैसे तो आपने मोबाइल पर बात करने मे खर्च कर दिए। बस फिर क्या था जो होता वो यही कहता । पर उन्हें कौन समझाता कि बच्चों से बढ़कर तो कुछ नही है।
पर आज हालात इतने बदल गए है कि हर आदमी ही मोबाइल लिए हुए है और अगर कोई बिना मोबाइल के दिखता है तो कुछ अजीब लगता है।
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घुघूती बासूती