भाभी आई -भाभी आई गीत मिल गया ...
बहुत दिन पहले रेडियोनामा पर अन्नपूर्णा जी ने इस गाने का जिक्र किया था । और कल esnip पर ढूँढने पर ये गाना मिल गया ।इस गाने को सुनते हुए उस ज़माने मे लौट जाइए जब छुक-छुक गाड़ी धुआं उड़ाती हुई चलती थी।और हम और आप कितनी ही बार खिड़की से बाहर झांकते थे और बाहर झाँकने पर आँख मे कोयला पड़ता था और तब हाथ से आँख मलते हुए सिर अन्दर करके कुछ देर बैठते थे और थोडी देर बाद फ़िर सिर बाहर । :)
(तब ज्यादातर ट्रेन की खिड़कियों मे लोहे की rod नही लगी होती थी ) फ़िल्म सुबह का तारा (१९५४) के इस गाने मे तो भाभी को ना जाने कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जरा सुनिए ।
(तब ज्यादातर ट्रेन की खिड़कियों मे लोहे की rod नही लगी होती थी ) फ़िल्म सुबह का तारा (१९५४) के इस गाने मे तो भाभी को ना जाने कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जरा सुनिए ।
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Comments
आख़िर मिल गया गाना।
वाह ! ममता जी मज़ा आ गया।