लगता है हर कोई बीमार है
किसी भी हॉस्पिटल में चले जाओ तो वहाँ पर मौजूद मरीज़ों भीड़ देखकर लगता है जैसे हर कोई बीमार है । पहले तो सरकारी अस्पतालों में ही बहुत ज़्यादा मरीज़ों की भीड़ होती थी फिर वो चाहे एम्स हो या जी.बी.पंत हो कोई और सरकारी अस्पताल । और तब लोग उस भीड़ से बचने के लिये लोग प्राइवेट या स्पेशलाइजड हॉस्पिटल में जाते थे । पर अब तो ना केवल सरकारी बल्कि प्राइवेट ,स्पेशलाइजड ( फ़ाइव स्टार )अस्पतालों में भी बहुत भीड़ होती है । छोटे मोटे नर्सिंग होम और डिसपेंसरी का भी कुछ ऐसा ही हाल है ।
आजकल के फ़ाइव स्टार हॉस्पिटल में तो देसी विदेशी हर तरह के मरीज़ भरे होते है । और इन अस्पतालों में जहाँ पहले कुछ कम भीड़ होती थी पर अब ऐसा बिलकुल नहीं है । फिर चाहे अपोलो हो या मैक्स हो या फोरटिस ही क्यूँ ना हो । और तो और कार पार्क करने की जगह भी नही मिलती है । जितनी भीड़ और लोग अस्पताल के अन्दर उतने ही बाहर भी होते है ।
कई बार तो इनकी कैंटीन तक में बैठने की जगह नहीं मिलती है । अब लोग भी क्या करें सुबह से दोपहर तक का समय अस्पताल में ही बीत जाता है ।हर जगह लम्बी लाइन होती है ।कई बार तो एपाइंटमेंट के बाद भी अच्छा ख़ासा टाइम लग जाता है । और जिनके घर का कोई अस्पताल में एडमिट होता है उनके लिये तो अस्पताल एक तरह से दूसरा घर ही बन जाता है ।
अगर सेंटर फ़ॉर साइट ( आँख का हॉस्पिटल ) में जाओ तो लगता है सबको ऑंख मे ही कोई ना कोई बीमारी है और अगर स्पाइनल इंजरी सेंटर जाओ तो लगता है हर किसी को कमर या बैकऐक की या हड्डी से जुड़ी समस्या है । एस्कॉर्ट्स हो या नेशनल हार्ट इन्स्टीट्यूट जाओ तो वहाँ भी वही हाल है । और फोरटिस का लाफेमे जो सिर्फ़ महिलाओं ( गाइनी ) लिये है वहाँ भी ज़बरदस्त भीड़ रहती है ।
और अस्पतालों में मरीज़ों की भीड़ का ये आलम ना केवल दिल्ली बल्कि तकरीबन देश के हर राज्य का ही होगा ऐसा हमें लगता है । वो चाहे दिल्ली हो ,अंडमान हो,गोवा हो,इलाहाबाद हो, लखनऊ हो या फिर अरूनाचल प्रदेश ही क्यूँ ना हो । 😙
आजकल के फ़ाइव स्टार हॉस्पिटल में तो देसी विदेशी हर तरह के मरीज़ भरे होते है । और इन अस्पतालों में जहाँ पहले कुछ कम भीड़ होती थी पर अब ऐसा बिलकुल नहीं है । फिर चाहे अपोलो हो या मैक्स हो या फोरटिस ही क्यूँ ना हो । और तो और कार पार्क करने की जगह भी नही मिलती है । जितनी भीड़ और लोग अस्पताल के अन्दर उतने ही बाहर भी होते है ।
कई बार तो इनकी कैंटीन तक में बैठने की जगह नहीं मिलती है । अब लोग भी क्या करें सुबह से दोपहर तक का समय अस्पताल में ही बीत जाता है ।हर जगह लम्बी लाइन होती है ।कई बार तो एपाइंटमेंट के बाद भी अच्छा ख़ासा टाइम लग जाता है । और जिनके घर का कोई अस्पताल में एडमिट होता है उनके लिये तो अस्पताल एक तरह से दूसरा घर ही बन जाता है ।
अगर सेंटर फ़ॉर साइट ( आँख का हॉस्पिटल ) में जाओ तो लगता है सबको ऑंख मे ही कोई ना कोई बीमारी है और अगर स्पाइनल इंजरी सेंटर जाओ तो लगता है हर किसी को कमर या बैकऐक की या हड्डी से जुड़ी समस्या है । एस्कॉर्ट्स हो या नेशनल हार्ट इन्स्टीट्यूट जाओ तो वहाँ भी वही हाल है । और फोरटिस का लाफेमे जो सिर्फ़ महिलाओं ( गाइनी ) लिये है वहाँ भी ज़बरदस्त भीड़ रहती है ।
और अस्पतालों में मरीज़ों की भीड़ का ये आलम ना केवल दिल्ली बल्कि तकरीबन देश के हर राज्य का ही होगा ऐसा हमें लगता है । वो चाहे दिल्ली हो ,अंडमान हो,गोवा हो,इलाहाबाद हो, लखनऊ हो या फिर अरूनाचल प्रदेश ही क्यूँ ना हो । 😙
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