मीठी यादें ज़ीरो की
आज सुबह जैसे ही फेसबुक खोला तो उसमें सात साल पुरानी फ़ोटो दिखी जिसे हमनें शेयर किया । कई बार हम लोग फ़ोटो को लगा कर भूल जाते है पर फेसबुक कभी एक साल पुरानी तो कभी दो साल पुरानी और कभी सात साल पुरानी कोई फ़ोटो को अचानक दिखा देता है और हम लोग वापिस उन्हीं लम्हों में पहुँच जाते है ।
आज की फ़ोटो देखकर जीरो जो कि अरूनाचल प्रदेश का एक डिस्ट्रिकट है उसकी याद ताज़ा हो आई ,जब हम लोग ज़ीरो गये थे इनके दृी फ़ेस्टिवल को देखने । वैसे यहाँ पर दूसरी ट्राईब भी रहती है पर मुख्य ट्राइब अपातानी है । ज़ीरो इटानगर से लगभग १६० कि. मी. की दूरी पर है । और तब चार घंटे का समय लगता था , एक तो पहाड़ी रास्ता दूसरा जगह जगह सड़क बनती रहती थी । वैसे हो सकता है अब रास्ते पहले से अच्छे हो गये होगें ।
यूँ तो अरूनाचल प्रदेश में सभी औरतें बड़ी ख़ूबसूरत होती है और अपातानी औरतें भी बहुत सुंदर होती है । पर जो वहाँ की वृद्ध औरतें है उनके चेहरे पर टैटू बना हुआ देखा जा सकता है माथे पर एक लम्बी सी लकीर और ठुड्डी पर चार या पाँच छोटी छोटी लकीरें । और नाक के दोनों तरफ़ में बड़ी ,काली सी लकड़ी की बाली सी पहनती है । और ये टैटू सुन्दरता बढ़ाने के लिये नहीं बल्कि उनकी सुंदरता को कम करने के लिये बनाये जाते थे क्योंकि ऐसा वहाँ के लोग बताते है कि बहुत पहले वहाँ की औरतों को उठा ले जाते थे ।
ज़ीरो ही ऐसी जगह है जहाँ पैडी और मछली पालन एक साथ होता है । जहाँ राइस पैडी ( धान की फ़सल ) दिखेगी वहीं उसी पानी में मछलियाँ भी तैरती दिखेंगी ।
अरूनाचल प्रदेश में एक बात बहुत अच्छी है कि वहाँ जिस भी ट्राईब का फ़ेस्टिवल होता है तो पूरा का पूरा डिस्ट्रिकट उसमें शामिल होता है । वो चाहे अपातानी हो या चाहे निशिंग ट्राईब हो या गालो हो। और चूँकि अरूनाचल में बहुत सारी ट्राईब है और सब एक दूसरे से अलग है तो ज़ाहिर सी बात है कि उनका पहनावा भी अलग होता है । और हाँ यहाँ की औरतें खूब लम्बी लम्बी मालायें पहनती है पर वही हर ट्राईब की माला भी अलग रंग के मोतियों की होती है साथ ही ये लोग चाँदी की भी पारम्परिक स्टाइल की माला भी पहनते है । जो काफ़ी महँगी होती है ।
हम लोग जहाँ भी जाते थे तो वो लोग अपनी पारम्परिक ड्रेस (रैंप अराउंड ) भेंट करते थे और जिसे हम लोग ऊपर से पहन लेते थे। फ़ेस्टिवल के दौरान राइस बीयर ( हर ट्राईब में ) और तरह तरह के खाने पीने की चीज़ें पेश की जाती है और भले आप पियें या ना पियें राइस बीयर लेनी पड़ती ही थी क्योंकि वो लोग इतने प्यार से आग्रह जो करते है । 😋
वैसे ज़्यादातर फ़ेस्टिवल में बलि देने की परम्परा भी है । और ये लोग डाँस भी सब खूब करते है ।कोई भी फ़ेस्टिवल डाँस के बिना पूरा नहीं होता है । और जब कार्यक्रम ख़त्म हो रहा होता है तो आख़िर में अतिथि लोग भी उनके साथ डाँस करते है ।
आज की फ़ोटो देखकर जीरो जो कि अरूनाचल प्रदेश का एक डिस्ट्रिकट है उसकी याद ताज़ा हो आई ,जब हम लोग ज़ीरो गये थे इनके दृी फ़ेस्टिवल को देखने । वैसे यहाँ पर दूसरी ट्राईब भी रहती है पर मुख्य ट्राइब अपातानी है । ज़ीरो इटानगर से लगभग १६० कि. मी. की दूरी पर है । और तब चार घंटे का समय लगता था , एक तो पहाड़ी रास्ता दूसरा जगह जगह सड़क बनती रहती थी । वैसे हो सकता है अब रास्ते पहले से अच्छे हो गये होगें ।
यूँ तो अरूनाचल प्रदेश में सभी औरतें बड़ी ख़ूबसूरत होती है और अपातानी औरतें भी बहुत सुंदर होती है । पर जो वहाँ की वृद्ध औरतें है उनके चेहरे पर टैटू बना हुआ देखा जा सकता है माथे पर एक लम्बी सी लकीर और ठुड्डी पर चार या पाँच छोटी छोटी लकीरें । और नाक के दोनों तरफ़ में बड़ी ,काली सी लकड़ी की बाली सी पहनती है । और ये टैटू सुन्दरता बढ़ाने के लिये नहीं बल्कि उनकी सुंदरता को कम करने के लिये बनाये जाते थे क्योंकि ऐसा वहाँ के लोग बताते है कि बहुत पहले वहाँ की औरतों को उठा ले जाते थे ।
ज़ीरो ही ऐसी जगह है जहाँ पैडी और मछली पालन एक साथ होता है । जहाँ राइस पैडी ( धान की फ़सल ) दिखेगी वहीं उसी पानी में मछलियाँ भी तैरती दिखेंगी ।
अरूनाचल प्रदेश में एक बात बहुत अच्छी है कि वहाँ जिस भी ट्राईब का फ़ेस्टिवल होता है तो पूरा का पूरा डिस्ट्रिकट उसमें शामिल होता है । वो चाहे अपातानी हो या चाहे निशिंग ट्राईब हो या गालो हो। और चूँकि अरूनाचल में बहुत सारी ट्राईब है और सब एक दूसरे से अलग है तो ज़ाहिर सी बात है कि उनका पहनावा भी अलग होता है । और हाँ यहाँ की औरतें खूब लम्बी लम्बी मालायें पहनती है पर वही हर ट्राईब की माला भी अलग रंग के मोतियों की होती है साथ ही ये लोग चाँदी की भी पारम्परिक स्टाइल की माला भी पहनते है । जो काफ़ी महँगी होती है ।
हम लोग जहाँ भी जाते थे तो वो लोग अपनी पारम्परिक ड्रेस (रैंप अराउंड ) भेंट करते थे और जिसे हम लोग ऊपर से पहन लेते थे। फ़ेस्टिवल के दौरान राइस बीयर ( हर ट्राईब में ) और तरह तरह के खाने पीने की चीज़ें पेश की जाती है और भले आप पियें या ना पियें राइस बीयर लेनी पड़ती ही थी क्योंकि वो लोग इतने प्यार से आग्रह जो करते है । 😋
वैसे ज़्यादातर फ़ेस्टिवल में बलि देने की परम्परा भी है । और ये लोग डाँस भी सब खूब करते है ।कोई भी फ़ेस्टिवल डाँस के बिना पूरा नहीं होता है । और जब कार्यक्रम ख़त्म हो रहा होता है तो आख़िर में अतिथि लोग भी उनके साथ डाँस करते है ।
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