सन्डे के फंडे
आज सन्डे है तो सोचा की कुछ इस पर ही बात हो जाये। सन्डे मतलब देर से उठना देर से नाश्ता देर से नहाना और कई बार तो नहाना गोल ही कर देना और देर से खाना माने हर काम आराम-आराम से करना क्यूंकि पहले तो सिर्फ सन्डे की ही छुट्टी हुआ करती थी और हर कोई सन्डे का इंतज़ार करता था ।सन्डे यानी funday यानी घूमना ,पिकनिक,मौज-मस्ती । जैसे जब हम लोग छोटे थे और स्कूल जाते थे तो सन्डे का मतलब सिर्फ खेल-कूद होता था क्यूंकि उस दिन तो मम्मी भी नही रोकती थी और उस समय outdoor या घर के बाहर जाकर खेलना अच्छा माना जाता था। और सुबह देर तक सोना भी होता था( पर आठ या नौ बजे से ज्यादा नही ) क्यूंकि स्कूल के दिनों मे तो सुबह-सुबह उठना जो पड़ता था। सोकर उठो ,नाश्ता करो जिसमे हलवा तो जरूर ही होता था और बस पूरे दिन की छुट्टी। और आज के समय मे सन्डे का मतलब सुबह कम से कम ग्यारह बजे तक सोना बहुत से लोग तो दोपहर के दो बजे तक सोते है क्यूंकि शनिवार की रात को ज्यादा देर तक जागते जो है।बहुत् से लोग तो सन्डे को सिर्फ सोकर ही बिताना चाहते है क्यूंकि भाग-दौड़ की जिंदगी मे सोने का समय जो नही मिलता है और अब तो कंप्यूटर भी लोगों को रात मे जगाये रखने का काम करता है ।
सन्डे एक ऐसा दिन जिस दिन का लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हे क्यूंकि पहले तो टी.वी.वगैरा होते नही थे तो लोग या तो किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर जाते थे या पिक्चर देखने या फिर शॉपिंग करने क्यूंकि बाक़ी के छे दिन तो लोगों का समय ऑफिस -स्कूल वगैरा मे निकल जाता था । हालांकि उस समय ऐसा नही था की सिर्फ सन्डे को ही किसी के घर जाना होता था। हम लोग तो जब छोटे थे तो अक्सर शुक्रवार की शाम बनारस जाते थे क्यूंकि हमारे बाबा वहां रहते थे और सन्डे की शाम को वापस आ जाते थे । वैसे आज भी जहाँ शनिवार की छुट्टी नही होती है वहां आज भी लोग सन्डे का उतनी ही बेसब्री से इंतज़ार करते है पर अब चूंकि कई शहरों मे जैसे दिल्ली वगैरा मे शनिवार की भी छुट्टी होने लगी है तो इसलिये जरा सन्डे की महत्ता कम सी हो गयी लगती है। पर सन्डे तो सन्डे ही है।
सन्डे को आप कोई भी बाजार या पार्क जैसे दिल्ली मे इंडिया गेट चले जाएँ तो भीड़ ही भीड़ नजर आती है और ये भीड़ ही है जो आज तक नही बदली है चाहे कोई भी समय हो वो चाहे कोई भी दशक हो। अब तो शाम को इंडिया गेट पर इतनी अधिक भीड़ हो जाती है की ना तो गाड़ी पार्क करने की जगह मिलती है और ना ही बैठने की क्यूंकि अब तो पार्क मे जरा-जरा सी दूरी पर लोग चादर बिछा कर बैठते है और अगर जगह मिल भी जाती है तो कभी किसी बच्चे का गुब्बारा बिल्कुल जहाँ आप बैठें है वहीँ आकर गिरता है और बच्चा आकर सॉरी कहकर गुब्बारा ले जाता है और आप कर भी क्या सकते है सिवाय ये कहने के की कोई बात नही।बाजार मे भी वही हाल जिधर देखो बस भीड़ ही दिखती है । पार्किंग मिलना किसी नियामत से कम नही होता है। पार्किंग को देख कर लगता है सारा शहर ही बाजार मे आ गया हो ।
सन्डे का दिन मतलब घर की साफ-सफ़ाई का दिन का दिन भी होता है क्यूंकि एक तो कोई हडबडी नही होती है कि किसी को ऑफिस जाना है तो किसी को स्कूल । लीजिये सफ़ाई से ध्यान आया की हमे भी तो घर ठीक करना है तो इसलिये अब हम अपने सन्डे की शुरुआत सफ़ाई अभियान से करने जा रहे है।और आप ?
सन्डे एक ऐसा दिन जिस दिन का लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हे क्यूंकि पहले तो टी.वी.वगैरा होते नही थे तो लोग या तो किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर जाते थे या पिक्चर देखने या फिर शॉपिंग करने क्यूंकि बाक़ी के छे दिन तो लोगों का समय ऑफिस -स्कूल वगैरा मे निकल जाता था । हालांकि उस समय ऐसा नही था की सिर्फ सन्डे को ही किसी के घर जाना होता था। हम लोग तो जब छोटे थे तो अक्सर शुक्रवार की शाम बनारस जाते थे क्यूंकि हमारे बाबा वहां रहते थे और सन्डे की शाम को वापस आ जाते थे । वैसे आज भी जहाँ शनिवार की छुट्टी नही होती है वहां आज भी लोग सन्डे का उतनी ही बेसब्री से इंतज़ार करते है पर अब चूंकि कई शहरों मे जैसे दिल्ली वगैरा मे शनिवार की भी छुट्टी होने लगी है तो इसलिये जरा सन्डे की महत्ता कम सी हो गयी लगती है। पर सन्डे तो सन्डे ही है।
सन्डे को आप कोई भी बाजार या पार्क जैसे दिल्ली मे इंडिया गेट चले जाएँ तो भीड़ ही भीड़ नजर आती है और ये भीड़ ही है जो आज तक नही बदली है चाहे कोई भी समय हो वो चाहे कोई भी दशक हो। अब तो शाम को इंडिया गेट पर इतनी अधिक भीड़ हो जाती है की ना तो गाड़ी पार्क करने की जगह मिलती है और ना ही बैठने की क्यूंकि अब तो पार्क मे जरा-जरा सी दूरी पर लोग चादर बिछा कर बैठते है और अगर जगह मिल भी जाती है तो कभी किसी बच्चे का गुब्बारा बिल्कुल जहाँ आप बैठें है वहीँ आकर गिरता है और बच्चा आकर सॉरी कहकर गुब्बारा ले जाता है और आप कर भी क्या सकते है सिवाय ये कहने के की कोई बात नही।बाजार मे भी वही हाल जिधर देखो बस भीड़ ही दिखती है । पार्किंग मिलना किसी नियामत से कम नही होता है। पार्किंग को देख कर लगता है सारा शहर ही बाजार मे आ गया हो ।
सन्डे का दिन मतलब घर की साफ-सफ़ाई का दिन का दिन भी होता है क्यूंकि एक तो कोई हडबडी नही होती है कि किसी को ऑफिस जाना है तो किसी को स्कूल । लीजिये सफ़ाई से ध्यान आया की हमे भी तो घर ठीक करना है तो इसलिये अब हम अपने सन्डे की शुरुआत सफ़ाई अभियान से करने जा रहे है।और आप ?
Comments
ये आप दिल्ली की बात कर रही हैं - आप तो इलाहाबाद में थी न!
संजीव जी सही कह रहे है ।
अनूप जी ठीक कहा आपने।
अरे समीर जी सन्डे का फंडा ही यही है।
शानू