टैक्नॉलजी का ऐसा कमाल
कल हमारे भइया ने इलाहाबाद की एक फोटो शेयर की जिसे देखकर हम आश्चर्य में आ गये । कि अरे क्या ऐसा भी हो सकता है ।
ये जो फोटो है , ये उस जगह की है जहाँ दो दिन पहले तक मंदिर हुआ करता था पर अब वहाँ मंदिर नहीं है । ऐसा सुना है कि वहाँ से मंदिर को कहीं और शिफ़्ट कर दिया गया है क्योंकि वहाँ पर फ़्लाई ओवर बनना है ।
कुछ नहीं तो कम से कम पचास साल से ज़्यादा पुराना मंदिर तो रहा ही होगा । वो हम इसलिये कह रहें हैं क्यों कि जब हम नौ -दस साल के रहे होगें तब से इस मंदिर को देख रहें है ।
हमने हमेशा से इस पीपल के पेड़ की छांव में मंदिर देखा है और आते जाते भगवान के आगे नतमस्तक भी होते थे ।
और कैसे रातों रात में मंदिर को वहाँ से कहीं और शिफ़्ट कर दिया गया ये तो टैक्नॉलजी का ही कमाल होगा क्यों कि ना केवल पूरा का पूरा मंदिर बलकि वहाँ जो भी चारों ओर बनी दीवार ग्रिल वग़ैरा का मलबा रहा होगा वो भी पूरी तरह से साफ़ । आश्चर्य है कि वहां ना कोई गड्ढा ना ही उबड़ खाबड़ जमीन ।
और अब आलम ये है कि इस जगह को देखकर तो कहा ही नहीं जा सकता है कि वहाँ कभी मंदिर भी था ।
ये जो फोटो है , ये उस जगह की है जहाँ दो दिन पहले तक मंदिर हुआ करता था पर अब वहाँ मंदिर नहीं है । ऐसा सुना है कि वहाँ से मंदिर को कहीं और शिफ़्ट कर दिया गया है क्योंकि वहाँ पर फ़्लाई ओवर बनना है ।
कुछ नहीं तो कम से कम पचास साल से ज़्यादा पुराना मंदिर तो रहा ही होगा । वो हम इसलिये कह रहें हैं क्यों कि जब हम नौ -दस साल के रहे होगें तब से इस मंदिर को देख रहें है ।
हमने हमेशा से इस पीपल के पेड़ की छांव में मंदिर देखा है और आते जाते भगवान के आगे नतमस्तक भी होते थे ।
और कैसे रातों रात में मंदिर को वहाँ से कहीं और शिफ़्ट कर दिया गया ये तो टैक्नॉलजी का ही कमाल होगा क्यों कि ना केवल पूरा का पूरा मंदिर बलकि वहाँ जो भी चारों ओर बनी दीवार ग्रिल वग़ैरा का मलबा रहा होगा वो भी पूरी तरह से साफ़ । आश्चर्य है कि वहां ना कोई गड्ढा ना ही उबड़ खाबड़ जमीन ।
और अब आलम ये है कि इस जगह को देखकर तो कहा ही नहीं जा सकता है कि वहाँ कभी मंदिर भी था ।
Comments