अंडमान और निकोबार द्वीप समूह-1
आप् सोच रहे होंगे कि अचानक अंडमान कि बात कैसे शुरू हो गयी तो चलिये हम बता ही देते है, दरअसल गोवा आने से पहले हम अंडमान मे तीन साल रह चुके है और हम आप सबके साथ अपने वो अनुभव बाँटना चाहते है जिसमे अच्छे और बुरे दोनो अनुभव है। हम वहां जून २००३ से २००६ तक रहे थे।
अंडमान और निकोबार को बहुत से लोग हिंदुस्तान के बाहर समझते है क्यूंकि वो जमीन से नही जुड़ा है। ये एक द्वीप है जो चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। कहते है कि निकोबार तो एक कटोरी कि तरह है । वहां पर करीब ५५० छोटे -छोटे द्वीप है पुरे अंडमान -निकोबार मे. आज भी कुछ ऐसे द्वीप है जहाँ कोई नही जा पाता है । अंडमान मे तो नही पर निकोबार मे जाने के लिए प्रशाशन से अनुमति लेनी पड़ती है, क्यूंकि निकोबार मे tribal रहते है और tribal एरिया को संरक्षित एरिया माना जाता है । विदेशी पर्यटकों को आम तौर से एक महिने ठहरने का परमिट दिया जाता है।
अंडमान और निकोबार को कई भागों मे बाँटा गया है, जैसे साऊथ अंडमान (पोर्ट ब्लेयेर ) नॉर्थ अंडमान (दिगलीपुर ),मिडिल अंडमान (बारतांग ),लिटिल अंडमान (हट्बे ) और ठीक इसी तरह निकोबार भी बटा हुआ है कार- निकोबार ,लिटिल निकोबार (पिल्लो -मिल्लो ), ग्रेट निकोबार ( इंदिरा प्वाइंट ) लिटल अंडमान से अगर कार -निकोबार समुद्री जहाज से जाते है तो रास्ते मे १० डिग्री चैनल पड़ता है जो काफी खतरनाक माना जाता है इसी लिए सारे शिप्स उसे रात मे ही पार करते है क्यूंकि कहते है कि रात मे उसे पार करना आसान होता है।
अंडमान एक union territory है और पोर्ट ब्लेयेर उसकी राजधानी है ।
अंडमान जाने के लिए या तो चेन्नई से जाते है या कोलकता से, आज कल तो कई flights जाने लगी है २००३ मे सिर्फ इंडियन और jet airways ही जाते थे । चेन्नई और कोलकता से शिप्स भी जाते है ,हालांकि शिप्स ३ दिन लगा देते है पर शिप से जाने पर डोल्फिन्स देखने को मिलती है जो अपने आप मे एक अनुभव है।
अंडमान मे rain forest और flora- fauna मिलते है . पोर्ट बलेएर से बारतांग सड़क से जब जाते है तो rain forest देखने को मिलते है. झारवा ,ओंगी ,सेन्तिनल , निकोबारी , शोमपेन ,ग्रेट अन्दामानीज ,६ तरह कि आदिवासी जन- जातियां है।
अंडमान को मिनी इंडिया भी कहा जाता है क्यूंकि आपको एक ही घर मे ३-४ प्रांतों के लोग मिल जायेंगे। इतना चौन्किये मत ये सच है। दरअसल अंग्रेजों के ज़माने मे अलग -अलग प्रांतों के क्रान्तिकारिओं को सेल्लुलर जेल मे रखा गया था और बाद मे आजादी मिलने के बाद भी वो लोग वही रहे और धीरे - धीरे अपनी जिंदगी शुरू करी। वहां पर हर त्यौहार बडे ही धूम-धाम से मनाया जाता है चाहे वो होली हो या ईद या पोंगल या फिर क्रिसमस या चाहे विश्वकर्मा कि पूजा ही क्यों ना हो। और आप को जानकार आश्चर्य होगा कि हिंदी वहां कि लोकल भाषा है । यूं तो माना जाता है कि अंडमान मे ज़्यादातर बंगाली और दक्शिंड भारतीय लोग रहते है पर ऐसा नही है वहां उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग भी बहुत बड़ी संख्या मे रहते है।
ऊपर कि फोटो सेल्लुलर जेल के सामने से ली गयी है।
अगले सोमवार को हम फिर कुछ बातें अंडमान- निकोबार के बारे मे करेंगे।
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