संतान हो या ना हो जुल्म करने वालों को कोई फर्क नही पड़ता है

जिंदगी इम्तिहान लेती है वाली पोस्ट पर अमर जी ने जो टिप्पणी छोडी थी इससे दो घटनाएं याद गई जिसमे से एक घटना का हम आज जिक्र कर रहे है और अगली घटना का जिक्र अगली पोस्ट मे। और ये घटना हमारे एक बहुत ही करीबी जानने वाले की भांजी के साथ हुई है।अब यही कोई १० साल पहले की घटना है बेबी उसको घर मे सब लोग इसी नाम से बुलाते है ।बेबी के पिता निहायत सीधे इंसान है । घर मे माँ का ही हुक्म चलता है। माँ जो कहें वही सही और वही घर के सब मानते है। उसकी माँ पढी-लिखी और एक हद तक समझदार भी मानी जाती है पर अपनी बेटी के मामले मे वो बहुत ही ग़लत साबित हुई।

पहले भी और आज भी भी यू.पी.मे परिवार बेटी की शादी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना ज्यादा बेहतर समझते है।बेबी परिवार की बड़ी और अकेली बेटी।गोरी ,सुंदर । बहुत लाड-प्यार से माँ-बाप ने पाला । माँ को हमेशा ये लगता था की बेटी की जितनी जल्दी शादी हो जाए उतना ही अच्छा हैलोगों ने समझाया की अब ज़माना बदल गया है पहले उसे पढ़-लिख लेने दो फ़िर शादी करना पर उन्होंने इस मामले मे किसी की भी नही सुनी और बेटी के लिए वर की तलाश करती रही और दिल्ली मे रहने वाले लड़के के साथ शादी तय कर दी छोटा परिवार देख कर बेबी की माँ बहुत खुश थी. लड़का दो भाई थे बडे भाई की शादी हो चुकी थी और उसके दो बेटियाँ थी सगाई की तारिख तय हुई और दिल्ली मे सगाई बडे धूम-धाम से की गई खैर सगाई के बाद शादी की तारिख कुछ महीने बाद की तय हुई क्यूंकि बेबी के बी. के इम्तिहान थेऔर सब दान-दहेज़ भी तय हुआ चूँकि बेबी अकेली बेटी थी इसलिए माता-पिता को बेबी की ससुराल वालों की सभी शर्तें मंजूर थी पर बेबी के मामा को ये सब पसंद नही रहा था उसने जब ऐतराज किया तो उसे ये कहकर चुप कर दिया गया की शादी-ब्याह मे तो ये सब होता ही हैखैर इम्तिहान होने के बाद बेबी की शादी कर दी गई



कुछ दिनों तक तो बेबी की ससुराल मे सब कुछ ठीक-ठाक रहा पर साल बीतते- बीतेते बेबी की ससुराल वालों ने फरमाइशें शुरू कर दी। क्यूंकि ससुराल वालों को ये महसूस हो गया था की बेबी की खुशी के लिए उसके माता-पिता कुछ भी कर सकते है। जब भी बेबी की माँ दिल्ली आती तो खूब सारा सामान लेकर बेबी के घर जाती पर अब ससुराल वालों को ये सामान कम लगने लगा था।और उनकी मांग दिन बा दिन बढ़ने लगी थी और जब उनकी मांग पूरी नही होती तो वो लोग बेबी को तंग करते। आख़िर एक दिन बेबी की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया । उसने अपने मामा को फ़ोन किया क्यूंकि उसे पता था की मामा उसकी मदद जरूर करेंगे।माँ तो समाज और बिरादरी के डर से उसे वहीं ससुराल मे रहने को कहेंगी। और बेबी मामा के साथ बनारस चली गई और बनारस मे उसने अपने ससुराल वालों के ख़िलाफ़ court मे केस कर दिया। पर बेबी की माँ इस सबसे खुश नही थी बल्कि वो अपने भाई से ही नाराज हो गई बेबी की मदद करने के लिए। क्यूंकि माँ मानना था की बेटी का असली घर उसका ससुराल ही होता ही।

बेबी की माँ को हमेशा ये लगता था की लड़की को ससुराल मे ही रहना चाहिए और इसके लिए वो बेटी की ससुराल वालों की हर मांग मानने को तैयार थी पर बेबी इस बात के लिए तैयार नही थी। ऐसा सुना औरदेखा गया है की मुक़दमे की सुनवाई के दौरान कई बार कोर्ट माने जज साब पति-पत्नी को बुला कर अकेले मे बात करते है और अगर सुलह हो सके तो सुलह करवाने की कोशिश करते है । जब बेबी और उसके पति से जज साब ने बात की तो उसके पति ने भी बेबी को ठीक से रखने और तंग ना करने का भरोसा दिलाया और दहेज़ का केस ख़त्म करने की गुजारिश की। एक बार फ़िर वो लोग बेबी को दिल्ली ले आए। और फ़िर सब कुछ ठीक चलने लगा। साल बाद बेबी के एक बेटा हुआ पर बेटा होते ही उसकी ससुराल वालों ने एक बार फ़िर अपना रंग बदला और एक दिन उन्होंने धोखे से बेबी को बिल्कुल फिल्मी style मे घर से बाहर कर दिया ।

बेबी एक बार फ़िर अपने मामा के पास आई और सारा हाल सुनाया पर इस बार बेबी ने तय कर लिया था की वो ससुराल नही जायेगी पर अपना बेटा ससुराल वालों से वापिस ले कर रहेगी।पर इस बार बेबी कि माँ और परिवार ने भी उसका साथ दिया। बेबी कुछ दिन मामा के पास रहकर लोगों से सलाह -मशविरा करके बनारस आ गई और कोर्ट मे उसने तलाक और बेटे की कस्टडी के लिए केस किया। केस चला और फ़ैसला बेबी के हक़ मे हुआ ।

इतना सब कुछ होने के बाद बेबी के मामा ने बेबी और उसकी माँ को समझाया(माँ का तो ये कहना था की हमारे पास इतना सब कुछ है बेबी को पढने या नौकरी करने की क्या जरुरत है ) और बेबी को आगे पढने के लिए प्रेरित किया। बेबी ने बी.एड.किया और आज कल बनारस के एक स्कूल मे टीचर है। आज बेबी अपने बेटे के साथ माता-पिता के पास बनारस मे रहती है।

Comments

Asha Joglekar said…
बेबी को और उनके मामाजी को बधाई। आश्चर्य है कि उनकी माँ को इस जमाने में भी बेटी की शादी की इतनी जल्दी थी कि बिना जांच पडताल किये शादी कर दी और फिर बेटी पर दबाव भी डालती रहीं कि उसे वहीं एडजस्ट करना चाहिये ।गर मामाजी न होत तो ?
ठीक ही हुआ। आर्थिक रूप से नारी अपने पैरों पर हो तो बहुत कुछ संभल जाता है। बेबी और उसके मामा ने ठीक किया।
वकील होने के नाते इस तरह के अनेक प्रकरणों का प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ। माँ-बाप सोचते हैं कि वे ही अपने बच्चों के लिए भला सोच सकते हैं। अनेक को खुद की होशियारी के आगे किसी पर विश्वास नहीं होता। तब ऐसी ही घटनाएं होती हैं।
आत्म निर्भर होने से ही आधी समस्या ख़त्म हो जाती है ...ओर घुट घुट कर किसी बन्धन को निभाने से अच्छा है उसे ख़त्म कर दो...
ये किस्सा सुनकर दुःख हुआ पर बेबी की हिम्मत की बात से हौसला बढ़ा --
बेबी के हौसले की जितनी तारीफ की जावे कम है

Popular posts from this blog

जीवन का कोई मूल्य नहीं

क्या चमगादड़ सिर के बाल नोच सकता है ?

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन