तुम,तुम्हे,तुझे,तेरे को,तू,
इसमे हम जो भी लिख रहे है वो किसी का मजाक नही बना रहे है बस इतने सालों मे जो हमने महसूस किया है वो ही लिख रहे है।
बचपन से हमारी माँ ने सिखाया है कि कभी भी किसी को तू-तडाक करके बात नही करनी चाहिऐ हमेशा आप,हम और तुम करके बात करनी चाहिऐ और हमने भी अपने बच्चों को यही सिखाया है। पर हिंदी के ये शब्द यूं तो हर कोई बोलता है पर कौन बोल रहा है और किसको बोल रहा है इससे बहुत फर्क पड़ता है।जैसे बनारस मे हमारे बाबा के यहाँ हमेशा अयिली -गयिली , हमरा-तुम्हरा वाली मीठी भाषा का प्रयोग होता रहा है।
जब हम लोग छोटे थे और आज भी हम बातचीत मे हम -तुम शब्द ही इस्तेमाल करते है । शादी के बाद जब हम दिल्ली आये तो वहां पर हम-तुम कि बजाए लोग मै-तू बोलते थे पर हमसे मै-तू बोला ही नही जाता था। और हमारे इस हम-तुम की भाषा सुनकर लोग पूछते थे कि क्या आप u.p. से है। दिल्ली मे कई लोगों को ये कहते सुना है तू खाना खा ले ? हमारे बच्चे कई बार कहते थे कि इस तरह बोलने पर स्कूल मे लोग समझ नही पाते है इसलिये वो लोग स्कूल मे और अपने दोस्तो मे मै-तू करके ही बात करते है। पर घर मे नही बोलते है।
दिल्ली के बाद जब हम अंडमान पहुंचे तो भाषा बिल्कुल ही बदल गयी अरे -अरे हमारी नही वहां रहने वालो की। वहां पर हर कोई जाता है आता है या आएगा -जाएगा बोलते है। जैसे मैडम खाना खायेगा ? साब ऑफिस जाता ?जबकि हम लोग कहते है साब ऑफिस जा रहे है। पर अंडमान मे जब भी कोई कहीँ जा रहा होता है तो वो लोग एक बात हमेशा बोलते है जा के आना । पर हमारे दुर्योधन (कुक )बोलते थे मैडम जा के आयेगा।
और यहाँ गोवा मे तो और भी बदल गयी। यहाँ पर छोटे-बडे मे कोई फर्क नही है इसलिये हर कोई एक दुसरे को तू या तेरे को बोलता है। यूं तो इंग्लिश मे भी किसी दुसरे को संबोधित करने के लिए you शब्द का इस्तेमाल होता है।
शुरू मे तो कई बार हमे ग़ुस्सा भी आ जाता था ,जैसे जब हमारे इस घर मे काम हो रहा था तो एक दिन हमे
कोन्ट्रेक्टेर का आदमी tiles दिखने के लिए लाया जब हमने उससे कहा कि ये वो tile नही है तो वो बोला तेरे को दिखाने को लाया तुने जो पसंद किया था वो दुकान मे नही है। ये सुनकर बहुत ग़ुस्सा आया और अजीब भी लगा की यहाँ लोग कैसे बात करते है, क्यूंकि इस तरह से तो आज तक किसी ने बात नही की थी। पर अब हम अपने ग़ुस्से पर काबू कर लेते है। पर अब भी कभी-कभी ग़ुस्सा आ जाता है अब चाहे आप इसे कुछ भी समझे।
बचपन से हमारी माँ ने सिखाया है कि कभी भी किसी को तू-तडाक करके बात नही करनी चाहिऐ हमेशा आप,हम और तुम करके बात करनी चाहिऐ और हमने भी अपने बच्चों को यही सिखाया है। पर हिंदी के ये शब्द यूं तो हर कोई बोलता है पर कौन बोल रहा है और किसको बोल रहा है इससे बहुत फर्क पड़ता है।जैसे बनारस मे हमारे बाबा के यहाँ हमेशा अयिली -गयिली , हमरा-तुम्हरा वाली मीठी भाषा का प्रयोग होता रहा है।
जब हम लोग छोटे थे और आज भी हम बातचीत मे हम -तुम शब्द ही इस्तेमाल करते है । शादी के बाद जब हम दिल्ली आये तो वहां पर हम-तुम कि बजाए लोग मै-तू बोलते थे पर हमसे मै-तू बोला ही नही जाता था। और हमारे इस हम-तुम की भाषा सुनकर लोग पूछते थे कि क्या आप u.p. से है। दिल्ली मे कई लोगों को ये कहते सुना है तू खाना खा ले ? हमारे बच्चे कई बार कहते थे कि इस तरह बोलने पर स्कूल मे लोग समझ नही पाते है इसलिये वो लोग स्कूल मे और अपने दोस्तो मे मै-तू करके ही बात करते है। पर घर मे नही बोलते है।
दिल्ली के बाद जब हम अंडमान पहुंचे तो भाषा बिल्कुल ही बदल गयी अरे -अरे हमारी नही वहां रहने वालो की। वहां पर हर कोई जाता है आता है या आएगा -जाएगा बोलते है। जैसे मैडम खाना खायेगा ? साब ऑफिस जाता ?जबकि हम लोग कहते है साब ऑफिस जा रहे है। पर अंडमान मे जब भी कोई कहीँ जा रहा होता है तो वो लोग एक बात हमेशा बोलते है जा के आना । पर हमारे दुर्योधन (कुक )बोलते थे मैडम जा के आयेगा।
और यहाँ गोवा मे तो और भी बदल गयी। यहाँ पर छोटे-बडे मे कोई फर्क नही है इसलिये हर कोई एक दुसरे को तू या तेरे को बोलता है। यूं तो इंग्लिश मे भी किसी दुसरे को संबोधित करने के लिए you शब्द का इस्तेमाल होता है।
शुरू मे तो कई बार हमे ग़ुस्सा भी आ जाता था ,जैसे जब हमारे इस घर मे काम हो रहा था तो एक दिन हमे
कोन्ट्रेक्टेर का आदमी tiles दिखने के लिए लाया जब हमने उससे कहा कि ये वो tile नही है तो वो बोला तेरे को दिखाने को लाया तुने जो पसंद किया था वो दुकान मे नही है। ये सुनकर बहुत ग़ुस्सा आया और अजीब भी लगा की यहाँ लोग कैसे बात करते है, क्यूंकि इस तरह से तो आज तक किसी ने बात नही की थी। पर अब हम अपने ग़ुस्से पर काबू कर लेते है। पर अब भी कभी-कभी ग़ुस्सा आ जाता है अब चाहे आप इसे कुछ भी समझे।
Comments
अब मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि यह डिस्क्लेमर किसके सम्मान में लिख डाला है आपने:
इसमे हम जो भी लिख रहे है वो किसी का मजाक नही बना रहे है बस इतने सालों मे जो हमने महसूस किया है वो ही लिख रहे है।
-चिंतन की दिशा सही है.
:)
"हमारा (मेरा) नाम बबलू है."
"हमारे (मेरे) मास्टर जी बड़े सख्त हैं."
खैर, मैं भी 12वीं के बाद जब हॉस्टल गया तो 'तू' और 'तेरा' सुन कर झुँझला गया था.
अपनी राजधानी की भाषा तो निराली है - तू और तेरे के साथ एक अदद गाली लगाना प्यार की निशानी है.
हम जितना सामूहिक है मैं उतना ही एकांतिक. वैसे दिखता यह भी है कि कई बार तू-तेरे बोलनेवाला ज्यादा मानवीय होता है और आप का स्वांग रचनेवाला धोखा दे देता है.
तुम में जो नजदीकी है वह आप में नहीं. बशर्ते बोलनेवाला उस भाव से बोले.