घर की खोज
कुछ दिन गेस्ट हाउस मे रहने के बाद घर की खोज शुरू हुई ,घर तो कई थे पर हमारी इच्छा थी की हमारा घर समुन्द्र के सामने हो बिल्कुल फिल्मी स्टाइल मे । इस चक्कर मे कुछ समय निकल गया ,हमारा ये कहना था की अगर हम अंडमान मे समुन्द्र के सामने नही रहेंगे तो कहॉ रहेंगे। बस अब इसे हमारी जिद ही समझ लीजिये .खैर कुछ दिन बाद हमे एक घर जो की sea facing था मिल गया। और उस जगह का नाम था जंगली घाट ,चौन्किये मत अंडमान मे नाम जरा अलग तरह के होते है । जब हमने घर पसंद कर लिया तो हमारे ड्राइवर ने कहा कि मैडम ये घर ठीक नही है.क्यूंकि यहाँ से ही शमशान घाट का रास्ता है । ये सुनते ही हमने उस घर को लेने से मना कर दिया और हम गेस्ट हाउस वापस आ गए । पर वो कहते है ना कि जो किस्मत मे लिखा हो उसे आप बदल नहीं सकते।
गेस्ट हाउस मे रहते हुए समय अच्छे से बीत रहा था .रोज वहां से हम समुन्द्र का ,उसके पानी के अलग -अलग रंगों का मजा उठा रहे थे और जिंदगी मजे मे कट रही थी । यूं तो गेस्ट हाउस का खाना खाकर ज्यादा दिन नहीं रहा जा सकता था सो एक बार फिर से घर कि खोज शुरू हो गयी। और हमारी किस्मत कि इस बार भी हमे घर मिला तो वहीँ जंगली घाट मे पर हम किसी भी तरह तैयार नही थे.
एक दिन हमारे एक दोस्त ने बताया कि दिल्ली के एक लेफ्टिनेंट गवर्नर थे जो रोज आधे घंटे शमशान घाट मे जाकर बैठते थे तो ऐसी कोई बात नहीं है। हर कोई हमे समझाने मे लगा था ,आख़िर हमने भी हथियार डाल दिए और सोचा जो होगा देखा जाएगा। असल मे हम वहां रहने से डरते थे अब आप चाहे इसे हमारी कमजोरी समझे या कुछ और पर कुछ बातों मे हम अभी भी पुराने खयालात के है जैसे शमशान घाट इस नाम से ही मन मे कुछ अजीब सा डर आ जाता है। हमने अपनी माँ को ये बताया तो उन्होंने कहा कि जब रहना है तो डरो मत बस जब भी कोई जाये उसकी आत्म की शांति की प्रार्थना कर लेना ,सब कुछ ठीक रहेगा।
किसी तरह हमने अपने मन को समझाया और घर मे काम शुरू हुआ। इसमे कोई शक नहीं कि घर बहुत अच्छा ठाये ये duplex bunglow था जहाँ हर जगह से sea दिखता था जो कि मन मे एक ख़ुशी सी भर देता था।घर के सामने ही एक छोटा सा पार्क था जो कारगिल मे शहीद हुए कैप्टन की याद मे बनाया गया था। इस पार्क मे एक वाकिंग ट्रैक था जहाँ लोग सुबह और शाम टहला करते थे। पार्क मे कई तरह के झूले थे। सुबह से शाम तक बच्चे इस पार्क मे खेला करते थे। पर सुनामी के बाद इस पार्क का नामों -निशान ही मिट गया।
खैर मई मे हम उस घर मे शिफ़्ट हो गए। अभी घर मे गए दूसरा ही दिन था कि सुबह -सुबह गोविंदा -गोविंदा की आवाज आनी शुरू हुई और हमारी हालत तो आप सोच ही सकते है। पूरे घर मे अगरबत्ती की महक भर गयी ,हम फ़टाफ़ट छत पर निकल गए ऐसा लगा मानो हमे कुछ हो जाएगा । और हमने दिल से प्रार्थना की भगवान् इनकी आत्मा को शांति दे। बस फिर क्या जब भी ऐसी आवाज आती हम भगवान् से उसकी आत्म की शांति की प्रार्थना कर लेते थे। धीरे -धीरे हम भी इसके आदी हो गए । बाद मे हमे आवाज से पता चल जाता था कि कौन जा रहा है माने बंगाली लोग शंख बजाते है ,उत्तर भारतीय राम नाम .....और दक्षिण भारतीय गोविंदा -गोविंदा करते है और रास्ते मे नारियल फोड़ते ओर पटाखे चलते हुए चलते है।
हमारे घर और समुन्द्र मे सिर्फ एक सड़क थी। sea wall के साथ ही एक बच्चों का पार्क था जहाँ सुबह ६ बजे से शाम तक बच्चे खेलते थे,लोग भी उधर टहलने के लिए जाते थे क्यूंकि पार्क मे एक वाल्किंग ट्रैक भी बना था। हमारे घर मे नारियल के ७ पेड थे जिसकी वजह से हम और खुश थे क्यूंकि जो दिल्ली से आया हो उसके लिए ये सब किसी नियामत से कम नहीं था। और हमारे दिन हंसी ख़ुशी मे बीतने लगे।
Comments
आपके घर की लोकेशन की कल्पना कर मन में आपकी किस्मत के ईर्ष्या होने लगी है ममता जी। :)
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