अफ्तारनुन सिएस्टा
दिल्ली मे पिछले २० सालों से रहते हुए कभी भी बाजार जाने और खरीदारी करने की आदत सी थी पर जब अंडमान गए तो अपनी इस आदत को बदलना पड़ा । वहां जाकर समझ आया कि अफ्तारनुन सिएस्टा क्या है। भाई हम ठहरे दिल्ली वाले जब मन हुआ बाजार चले गए .क्यूंकि दिल्ली मे अफ्तारनुन सिएस्ता जैसा कुछ नही है, सो हम आराम से तैयार होकर करीब १२ बजे जब खरीदारी करने बाजार पहुंचे तो चोंक गए क्यूंकि या तो दुकाने बंद हो गयी थी या बंद हो रही थी। जब हमने अपने ड्राइवर से इसका कारण पूछा तो वो बडे ही शान्त भाव से बोला कि मैडम यहाँ पर तो ऐसे ही है । १२ बजे सब दुकाने बंद हो जाती है और फिर ३ बजे दोपहर मे खुलती है। अब तो आप ३ बजे के बाद ही सामान ले पाएंगी । ये सुनकर ड्राइवर से जब हमने पूछा कि तुमने पहले क्यों नही बताया तो वो बोला कि मैंने समझा कि आप बस घूमने जा रही है।
चूंकि अंडमान मे सुबह जल्दी होती है और १२ बजे तक सूरज अपनी चरम सीमा पर होता है और कुछ कोस्तेल एरिया कि वजह से भी ,वहां सभी दुकाने साढे आठ सुबह खुल जाती है ,दोपहर मे १२ से ३ बंद रहती है और फिर ३ बजे के बाद रात ९ बजे तक खुली रहती है। वहां ऑफिस भी साढे आठ बजे से शुरू होता है जबकि दिल्ली और बाकी जगहों मे साढे नौ बजे ऑफिस शुरू होता है।
शुरू -शुरू मे बहुत दिक्कत आयी , एक -दो बार ऐसा भी हुआ कि दवा कि जरुरत है पर दुकाने बंद । पर फिर धीरे-धीरे हमने वहां के समय के साथ अपने को ढाल लिया। सुबह -सुबह बाजार जाना बाद मे अच्छा भी लगने लगा क्यूंकि इससे गरमी और धूप से बच जाते थे। पतिदेव का जल्दी ऑफिस जाना भी बाद मे ठीक लगने लगा क्यूंकि सारे ऑफिस साढे पांच बजे बंद भी हो जाते थे । हाँ अगर कोई मीटिंग है तो बात अलग है।
अंडमान जाकर हम लोगों की पारिवारिक जिंदगी बहुत बदल गयी थी । दिल्ली मे तो जो एक बार घर से निकले तो फिर आठ बजे शाम से पहले लौटना होता ही नही था , कुछ तो दूरियों की वजह से और कुछ ट्राफिक जाम की वजह से पर पोर्ट ब्लैयेर तो मुश्किल से पांच किलोमीटर मे पूरा शहर है। तो आप अंदाजा लगा ही सकते है कि वहां कहीँ भी आने-जाने मे अधिक से अधिक १०-१५ मिनेट लगते थे। हर चीज और हर जगह बस हाथ भर की दूरी पर थी चाहे वो एअरपोर्ट हो या फिर बाजार हो।
और अब गोवा मे भी अफ्तारनुन सिएस्टा का बहुत प्रचलन है।
चूंकि अंडमान मे सुबह जल्दी होती है और १२ बजे तक सूरज अपनी चरम सीमा पर होता है और कुछ कोस्तेल एरिया कि वजह से भी ,वहां सभी दुकाने साढे आठ सुबह खुल जाती है ,दोपहर मे १२ से ३ बंद रहती है और फिर ३ बजे के बाद रात ९ बजे तक खुली रहती है। वहां ऑफिस भी साढे आठ बजे से शुरू होता है जबकि दिल्ली और बाकी जगहों मे साढे नौ बजे ऑफिस शुरू होता है।
शुरू -शुरू मे बहुत दिक्कत आयी , एक -दो बार ऐसा भी हुआ कि दवा कि जरुरत है पर दुकाने बंद । पर फिर धीरे-धीरे हमने वहां के समय के साथ अपने को ढाल लिया। सुबह -सुबह बाजार जाना बाद मे अच्छा भी लगने लगा क्यूंकि इससे गरमी और धूप से बच जाते थे। पतिदेव का जल्दी ऑफिस जाना भी बाद मे ठीक लगने लगा क्यूंकि सारे ऑफिस साढे पांच बजे बंद भी हो जाते थे । हाँ अगर कोई मीटिंग है तो बात अलग है।
अंडमान जाकर हम लोगों की पारिवारिक जिंदगी बहुत बदल गयी थी । दिल्ली मे तो जो एक बार घर से निकले तो फिर आठ बजे शाम से पहले लौटना होता ही नही था , कुछ तो दूरियों की वजह से और कुछ ट्राफिक जाम की वजह से पर पोर्ट ब्लैयेर तो मुश्किल से पांच किलोमीटर मे पूरा शहर है। तो आप अंदाजा लगा ही सकते है कि वहां कहीँ भी आने-जाने मे अधिक से अधिक १०-१५ मिनेट लगते थे। हर चीज और हर जगह बस हाथ भर की दूरी पर थी चाहे वो एअरपोर्ट हो या फिर बाजार हो।
और अब गोवा मे भी अफ्तारनुन सिएस्टा का बहुत प्रचलन है।
Comments
अब काफी बदलाव आ गया है, ९ तो ९ वाले स्टोर्स और २४ घन्टे वाले स्टोर्स काफी खुल गए है। एक बात और यहाँ ईमानदारी अभी भी काफी है, दुकानदार एक पर्दा गिराकर और (Close) वाला छोटा सा बोर्ड लगाकर, सो जाता है। किसी को जरुरत है तो वो आएगा, दुकान से सामान लेगा और खुल्ले पैसे काउन्टर पर छोड़ जाएगा। अगर खुल्ले नही होंगे तो बंधा नोट छोड़ जाएगा और उस पर अपना फोन नम्बर छोड़ जाएगा। दुकानदार जब उठेगा, तो बन्दे को फोन करके बाकी के पैसे वापस लेने के लिए बोलेगा।
है ना मजेदार?