सुनामी से हुई बर्बादी और हम
सुनामी के दिन करीब चार-पांच घंटे बाद जब पानी उतर गया तो बाक़ी दूसरे लोगों की तरह हम लोग भी अपने घर की ओर गए ।घर जाते हुए मन मे एक अजीब सा डर था की पता नही घर का क्या हाल होगा। और जब हम लोग अपने घर पहुंचे तो घर की हालत देख कर सकते मे आ गए , कलेजा मुँह को आ गया।घर का सारा सामान तितर-बितर हो गया था। किचन का सामान जैसे मिक्सी,जूसर का एक पार्ट गार्डन मे तो दूसरा पार्ट दरवाजे पर। और डाइनिंग टेबल का सामान जैसे मैट्स ,स्पून ,अचार और जैम की बोत्तले सब बाहर बगीचे मे ।फ्रिज तो पूरा अप साईड डाउन माने उल्टा पड़ा हुआ था। लौंदरी बैग कपडों के साथ बाहर कीचड मे। ड्राइंग रूम का समान जैसेसोफा सेट वगैरा तो उलट-पलट गए थे। छोटे-छोटे सजावटी सामान इधर-उधर बिखरे पड़े थे।पतिदेव का ऑफिस का बैग बहकर दूर चला गया था । हमारे एक गणेश जी की मूर्ति ड्राइंग रूम से बहकर हमारे घर की सीढियों पर आ गयी थी।जिन्हें हमने उठाकर गाड़ी मे रख लिया था।
पूरा घर काले रंग के कीचड और पत्तियों से भरा पड़ा था । चूँकि हमारे पैर मे चोट थी इसलिए हम तो अन्दर नही गए हमारे पतिदेव और बेटे ने घर मे जाकर ऊपर की मंजिल से धीरे-धीरे जितना सामान अटैचियों मे भर सकते थे भर कर नीचे गाड़ी मे लाये।हमारे किचन का तो ऐसा हाल था कि लगा ही नही रहा था कि वहां कोई सामान भी था। अलमारी मे से डिब्बे गायब,बर्तन गायब। जो बर्तन अलमारी के ऊपर के खाने मे रहते थे वो किचन की जमीन मे काले रंग के कीचड मे लथपथ थे।कोई भी सामान अपनी जगह पर नही था।(ये हमारे घर की फोटो है इस फोटो मे जाली के दरवाजे के ऊपर की तरफ़ जो हरा-हरा दिखाई दे रहा है सुनामी का पानी उतने ऊपर तक आया था )और फ़िर अगले तीन-चार दिन घर की सफ़ाई करवाने और सामान खोजने मे लगे रहे थे।
सामान निकालने के बाद गाड़ी का ख़्याल आया और जब गैराज की तरफ़ गए तो देखा की सुनामी के पानी ने गैराज का दरवाजा तोड़ दिया था और गैराज मे खड़ी हमारी जिप्सी पानी मे पूरी डूब गई थी।और साईड मे जो किताबों की अलमारी थोडी सी दिख रही है किताबों से भरी थी और दीवार मे फिक्स थी पर पानी के तेज बहाव के कारण पड़ोसी के घर से बहकर हमारे घर आ गई थी।
सुनामी के छः दिन पहले ही हम इलाहबाद और दिल्ली जाकर वापिस अंडमान लौटे थे।हमेशा हम नेतराम की दूकान की एक किलो इमारती ले जाते थे पर उस बार हम दो किलो इमारती ले गए थे .(हमारी सेहत का राज ही ये है ) हरी की दुकान के समोसे ,इलाहबाद की सेंवई और मम्मी के हाथ की बनी बढियां और अचार (सिर्फ़ हमारे खाने पीने के बैग का वजन १७-१८ किलो था )। पर वो कहते है ना की नसीब से ज्यादा इंसान के हिस्से कुछ नही आता। और हमारे साथ भी वही हुआ। चूँकि हमने सारा सामान किचन मे रक्खा था इसलिए सुनामी मे सब बरबाद हो गया।उसके अगले तीन-चार दिनों मे हम लोगों ने धीरे-धीरे सारा सामान घर से बाहर निकाला और बाद मे सारा सामान दिल्ली भेजा। क्यूंकि एक तो हम लोग अपने दोस्त के घर रह रहे थे और दूसरे की अगर कभी अंडमान से भागना पड़े तो ,क्यूंकि वहां भूकंप के बहुत झटके आते रहते थे और अंडमान मे ये ख़बर उड़ती रहती थी की अंडमान डूब जायेगा।क्यूंकि वहां के जो हालात थे शुरू के दिनों मे उन्हें देख कर तो यही लगता था। भूकंप के झटकों से सड़कें ऊपर-नीचे हो गई थी। हर जगह समुन्दर को रोकने वाली दीवार ढह गई थी। हर तरफ पानी घरों और सड़कों पर नजर आता था। और ये हालात और हालत सुधरते -सुधरते महीनों लग गए थे।
(ये फोटो मरीना पार्क की है। )
अपने घर से निकल कर हम लोगों ने गाड़ी से एक चक्कर पोर्ट ब्लेयर का लगाया और चारों ओर हुई तबाही को देख कर दिल एक अजीब सी भावना से भर गया।बस गनीमत ये थी की पोर्ट ब्लेयर मे माल का नुकसान हुआ था जान का नही. कहीं मारुति कार नारियल के पेड़ पर तो कहीं कार पार्क की रेलिंग पर। हम लोगों की कालोनी रहने वाले एक साहब की कार तो पानी के साथ बहकर sea bed तक पहुँच गई थी।मरीना पार्क की रेलिंग टूट गई थी और स्पीड बोट ,पैडल बोट सब सड़क पर आ गई थी।(ये सिप्पी घाट के एक घर की फोटो है जो सुनामी के महीनों बाद भी इसी हालत मे था । )
कोर्बईन् कोव जो की एकलौता beach है पोर्ट ब्लेयर मे उसका तो ये हाल था की वहां समुन्दर का पानी सड़क पर ही आ गया था। पूरी सड़क पर रेत ही रेत थी।और सुनामी के बाद भी पानी का लेवल बढ़ गया थ। हाई टाईद मे कोर्बईन् कोव पर पानी सड़क पर आ जाना बड़ी आम बात हो गई थी।
खैर भागने की नौबत तो नही आई और कुछ दिन बाद हम लोगों को घर भी मिल गया तो दिल्ली से सारा सामान वापस मंगाया गया।घर मिलने पर मम्मी को सबसे ज्यादा चिंता थी कि समुन्दर तो वहां नही है तो हमने कहा कि अब समुन्दर के सामने रहने का हमारा शौक पूरा हो गया है। इस बार हमारा घर पोर्ट ब्लेयर की सबसे ऊँची जगह पर है।जहाँ से समुन्दर दिखता तो है पर कोई खतरा नही है।
हमारी सुनामी का अंत दिसम्बर जनवरी मे नही हुआ बल्कि मई मे जाकर हमारी सुनामी ख़त्म हुई।
ये सभी फोटो एक हफ्ते बाद ली गई थी ।
सुनामी से जुड़े पिछले लेख।
२६ दिसम्बर की वो सुबह
सुनामी ना पहले कभी सुना और ना देखा
पूरा घर काले रंग के कीचड और पत्तियों से भरा पड़ा था । चूँकि हमारे पैर मे चोट थी इसलिए हम तो अन्दर नही गए हमारे पतिदेव और बेटे ने घर मे जाकर ऊपर की मंजिल से धीरे-धीरे जितना सामान अटैचियों मे भर सकते थे भर कर नीचे गाड़ी मे लाये।हमारे किचन का तो ऐसा हाल था कि लगा ही नही रहा था कि वहां कोई सामान भी था। अलमारी मे से डिब्बे गायब,बर्तन गायब। जो बर्तन अलमारी के ऊपर के खाने मे रहते थे वो किचन की जमीन मे काले रंग के कीचड मे लथपथ थे।कोई भी सामान अपनी जगह पर नही था।(ये हमारे घर की फोटो है इस फोटो मे जाली के दरवाजे के ऊपर की तरफ़ जो हरा-हरा दिखाई दे रहा है सुनामी का पानी उतने ऊपर तक आया था )और फ़िर अगले तीन-चार दिन घर की सफ़ाई करवाने और सामान खोजने मे लगे रहे थे।
सामान निकालने के बाद गाड़ी का ख़्याल आया और जब गैराज की तरफ़ गए तो देखा की सुनामी के पानी ने गैराज का दरवाजा तोड़ दिया था और गैराज मे खड़ी हमारी जिप्सी पानी मे पूरी डूब गई थी।और साईड मे जो किताबों की अलमारी थोडी सी दिख रही है किताबों से भरी थी और दीवार मे फिक्स थी पर पानी के तेज बहाव के कारण पड़ोसी के घर से बहकर हमारे घर आ गई थी।
सुनामी के छः दिन पहले ही हम इलाहबाद और दिल्ली जाकर वापिस अंडमान लौटे थे।हमेशा हम नेतराम की दूकान की एक किलो इमारती ले जाते थे पर उस बार हम दो किलो इमारती ले गए थे .(हमारी सेहत का राज ही ये है ) हरी की दुकान के समोसे ,इलाहबाद की सेंवई और मम्मी के हाथ की बनी बढियां और अचार (सिर्फ़ हमारे खाने पीने के बैग का वजन १७-१८ किलो था )। पर वो कहते है ना की नसीब से ज्यादा इंसान के हिस्से कुछ नही आता। और हमारे साथ भी वही हुआ। चूँकि हमने सारा सामान किचन मे रक्खा था इसलिए सुनामी मे सब बरबाद हो गया।उसके अगले तीन-चार दिनों मे हम लोगों ने धीरे-धीरे सारा सामान घर से बाहर निकाला और बाद मे सारा सामान दिल्ली भेजा। क्यूंकि एक तो हम लोग अपने दोस्त के घर रह रहे थे और दूसरे की अगर कभी अंडमान से भागना पड़े तो ,क्यूंकि वहां भूकंप के बहुत झटके आते रहते थे और अंडमान मे ये ख़बर उड़ती रहती थी की अंडमान डूब जायेगा।क्यूंकि वहां के जो हालात थे शुरू के दिनों मे उन्हें देख कर तो यही लगता था। भूकंप के झटकों से सड़कें ऊपर-नीचे हो गई थी। हर जगह समुन्दर को रोकने वाली दीवार ढह गई थी। हर तरफ पानी घरों और सड़कों पर नजर आता था। और ये हालात और हालत सुधरते -सुधरते महीनों लग गए थे।
(ये फोटो मरीना पार्क की है। )
अपने घर से निकल कर हम लोगों ने गाड़ी से एक चक्कर पोर्ट ब्लेयर का लगाया और चारों ओर हुई तबाही को देख कर दिल एक अजीब सी भावना से भर गया।बस गनीमत ये थी की पोर्ट ब्लेयर मे माल का नुकसान हुआ था जान का नही. कहीं मारुति कार नारियल के पेड़ पर तो कहीं कार पार्क की रेलिंग पर। हम लोगों की कालोनी रहने वाले एक साहब की कार तो पानी के साथ बहकर sea bed तक पहुँच गई थी।मरीना पार्क की रेलिंग टूट गई थी और स्पीड बोट ,पैडल बोट सब सड़क पर आ गई थी।(ये सिप्पी घाट के एक घर की फोटो है जो सुनामी के महीनों बाद भी इसी हालत मे था । )
कोर्बईन् कोव जो की एकलौता beach है पोर्ट ब्लेयर मे उसका तो ये हाल था की वहां समुन्दर का पानी सड़क पर ही आ गया था। पूरी सड़क पर रेत ही रेत थी।और सुनामी के बाद भी पानी का लेवल बढ़ गया थ। हाई टाईद मे कोर्बईन् कोव पर पानी सड़क पर आ जाना बड़ी आम बात हो गई थी।
खैर भागने की नौबत तो नही आई और कुछ दिन बाद हम लोगों को घर भी मिल गया तो दिल्ली से सारा सामान वापस मंगाया गया।घर मिलने पर मम्मी को सबसे ज्यादा चिंता थी कि समुन्दर तो वहां नही है तो हमने कहा कि अब समुन्दर के सामने रहने का हमारा शौक पूरा हो गया है। इस बार हमारा घर पोर्ट ब्लेयर की सबसे ऊँची जगह पर है।जहाँ से समुन्दर दिखता तो है पर कोई खतरा नही है।
हमारी सुनामी का अंत दिसम्बर जनवरी मे नही हुआ बल्कि मई मे जाकर हमारी सुनामी ख़त्म हुई।
ये सभी फोटो एक हफ्ते बाद ली गई थी ।
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सुनामी ना पहले कभी सुना और ना देखा
Comments
saadar abhivaadan. sunami par bbc se kaafee kuchh sunaa thaa par aapne aaj aur bhee bahut see baatein bataayee . ye dard koi nahin baant saktaa. dhanyavaad.
घुघूती बासूती