मौनी अमावस्या (माघ का मुख्य स्नान)
मौनी अमावस्या आज है ये तो हमे सुबह टी.वी. से पता चला। पता नही इस बार फरवरी मे कैसे पड़ रही है आमतौर पर तो जनवरी के आख़िर मे ही ये अमावस्या पड़ती थी।खैर चलिए आज थोडा मौनी अमावस्या के बारे मे बता दे। मौनी अमावास्या इसे इसलिए कहते है क्यूंकि ये अमावस्या माघ के महीने मे पड़ती है। और सूर्य और चन्द्रमा एक दूसरे की सीध मे आ जाते है या मिलते है।और ग्रहण भी लगता है।( टी.वी. मे बता रहे थे कि इस बार पंद्रह दिन मे दो ग्रहण लगेंगे।) मौनी अमावस्या जैसा की नाम से विदित हो रहा है की इस दिन मौन व्रत और उपवास भी रक्खा जाता है ।और त्रिवेणी यानी गंगा,यमुना सस्वती के संगम पर लोग नहाते है।और ये भी माना जाता है की इस दिन नहाने से सब पाप धुल जाते है। और आमतौर पर इसी दिन कुम्भ या महा कुम्भ पड़ता है और कुम्भ का नहान भी होता है।इन दिनों पूरा इलाहाबाद शहर श्रद्धालुओं से भरा रहता है।
इस अमावस्या के साथ एक और कहानी भी है की जब देवताओं और असुरों के बीच जब अमृत मंथन हो रहा था उस समय कुछ अमृत इन चार स्थानों इलाहाबाद,हरिद्वार,नासिक,और उज्जैन मे गिर गया था। इन सभी स्थानों पर इस तरह के नहान होते है पर सबसे ज्यादा इलाहाबाद का महत्त्व माना जाता रहा है क्यूंकि इलाहाबाद मे संगम है।
जब हम लोग छोटे थे तब हर साल माघ मेला के समय संक्रान्ति,मौनी अमावस्या और बसंत के दिन जरुर ही संगम पर नहाने जाते थे। पहले तो अमावस्या के दिन जबरदस्त ठंड पड़ती थी और कई बार तो बारिश भी होती थी पर नहाने वालों के जोश मे कोई कमी नही होती थी। घाट से संगम की ओर जाते वक्त तो नाव मे खूब ठंड महसूस होती थी। खूब स्वेटर-शॉल पहने ओढे रहते और जैसे जैसे संगम की ओर पहुँचने लगते चारों ओर से गंगा मैया की जय की आवाजों से माहौल गूंजता और जैसे ही संगम के पानी मे नहाने के लिए उतरते तो ठंड ना जाने कहाँ गायब हो जाती। पता ही नही चलता था की पानी ठंडा भी है। और फिर तो दो-चार डुबकी लगाने मे पता ही नही चलता था । और जब नहाने के बाद वापिस नाव घाट की ओर चलने को मुड़ती तो हम लोग बिना स्वेटर-शॉल के तिल के लड्डू खाते हुए वापिस आते थे।क्या मस्ती भरे दिन थे।
डुबकी लगाने से एक और वाकया याद आ गया । चलिए पोस्ट थोडी बड़ी हो रही है पर फिर भी हम इसका जिक्र कर ही देते है. बात नब्बे के दशक की है उस साल महा कुम्भ पड़ा था और हमारे ऑफिस की हमारी एक दोस्त ने इलाहाबाद कभी देखा नही था और कुम्भ के नहान के बारे मे हम उन्हें बताते रहते थे।इसलिए उनका कुम्भ और इलाहाबाद देखने का मन था। तो जब उस साल महाकुम्भ पड़ा तो हम तीनों दोस्तों ने इलाहाबाद जाने का कार्यक्रम बनाया।ऑफिस के लोगों को जब पता चला की हम तीनों इलाहाबाद जा रहे है तो हर एक ने अपने नाम से डुबकी लगाने के लिए कहा, कुछ ने गंगाजल लाने को भी कहा। हमने अपने घर पर बता दिया की हम लोग आ रहे है और बस पहुंच गए इलाहाबाद । उस दिन हम लोग रात मे संगम पर ही टेंट मे रुके और खूब ठंड थी । चारों ओर खूब भजन-कीर्तन चल रहा था ।और रात मे भी संगम पर खूब उजाला था। खैर अमावस्या के दिन हम लोग सुबह नौ बजे नहाने गए और शुरू हो गया डुबकी लगाना।भाई इतने सारे लोगों के नाम की डुबकी जो लगानी थी। तो जुखाम भी होना ही था। :)
आज हम उसी महाकुंभ की फोटो लगा रहे है। महाकुंभ के दौरान जगह-जगह पर यज्ञ होते रहते है और ऐसे ही संगम के घाट पर हो रहे यज्ञ की फोटो है। उस समय की यही फोटो बची है क्यूंकि सुनामी मे हमारे कई एलबम खराब हो गए थे। इसीलिए ये फोटो भी थोडी खराब हो गयी है।
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bahut jaankari bhara lekh hai isliye shayad kam hit mile hain abhi tak aapko is post per.