अनचाहे मेहमान और हम
दिल्ली मे रहते हुए मेहमानों से दूर रहना मुश्किल ही होता है। गाहे-बगाहे लोग आ ही जाते और फ़िर अपनी खातिरदारी भी करवाते है आप चाहे या ना चाहे।अब अपने भारत मे तो मेहमान को भगवान का रूप ही माना जाता है मेजबान माने या ना माने ।कई बार तो ऐसे मेहमान आते कि लगता ओह बाबा ये कब जायेंगे।दिल्ली मे रहते हुए ऐसे लोगों मतलब मेहमानों से बहुत वास्ता पड़ता था।
ये तो हम सभी जानते है कि दिल्ली मे जितनी गर्मी पड़ती है उतनी ही ठंड भी पड़ती है।दिल्ली मे सर्दियों मे नल का पानी इतना बर्फीला ठंडा होता है कि पानी छूने पर लगता कि हाथ ही गल जायेगा।अब अगर ऐसी गलन भरी सर्दी मे जहाँ रजाई से बाहर निकलना मुश्किल हो वहां अगर अनचाहे मेहमान आ जाए तो ना चाहते हुए भी खुले दिल से मेजबानी करनी ही पड़ती थी।आज का वाकया ऐसे ही मेहमान के नाम है।
ऐसी ही एक जाड़े की गलन भरी सर्दी की शाम को फलाने जी फ़ोन आया और उन्होंने हाल-चाल पूछा की भाई आजकल तुम लोग रहते कहाँ हो।और दुनिया भर की बातचीत के बाद उन्होंने पूछा कि आज शाम को क्या घर पर हो ।
और जब पतिदेव ने कहा की हाँ घर पर ही है . तो इस पर उधर से फलाने जी ने कहा की अच्छा तो हम लोग अभी थोडी देर मे तुम्हारे घर आ रहे है।
जब उन्होंने अपने आने की बात की तो रात के खाने का निमंत्रण देना ही पड़ा।
खैर फलाने जी सपरिवार रात को खाने पर आए। और हमने भी सब जाड़ा-वाड़ा भूल कर उन्हें मन ही मन कोसते हुए किचन मे जाकर खाना बनाना शुरू किया। और पतिदेव पर भी नाराज हुए की उन्हें मना कर देना चाहिए था, फालतू मे अब इतने जाड़े मे खाना बनाना पड़ रहा है।
खैर हमने खाना बनाया और फलाने जी के सपरिवार आने पर खूब खुशी जाहिर करते हुए उनसे मिले और बातचीत भी हुई। सब कुछ ठीक से निपट गया माने खाना हुआ स्वीट डिश खाई गई और काफ़ी भी पी गई।और काफ़ी पीते-पीते फलाने जी की पत्नी बोली ममता आज कितनी ज्यादा ठंड पड़ रही है ना।
अब हम हाँ के अलावा कह भी क्या सकते थे। :)
इस पर उन्होंने आगे कहा( जिसे सुनकर तो हम गुस्से से उबल ही पड़े ) की आज तो हमारा तो खाना बनाने का बिल्कुल भी दिल नही कर रहा था ।हम सोच रहे थे की खाना बनाए या क्या करें ।
और फ़िर तुम्हारे यहां आने का कार्यक्रम बन गया। तुमने इतना सारा खाना कैसे बनाया।
अन्दर ही अन्दर गुस्से से उबलते हुए हमने अपने चेहरे पर ३६ इंच की मुस्कान फैला दी।
इतना ही नही जब वो जाने लगे तो हम लोगों ने उन्हें फ़िर आने के लिए कहा । और उन्होंने हमारे इस निमंत्रण को खुले दिल से स्वीकारा और उनका आना चलता ही रहा।
कुछ और मेहमानों से आगे भी मिलवाएँगे।
ये तो हम सभी जानते है कि दिल्ली मे जितनी गर्मी पड़ती है उतनी ही ठंड भी पड़ती है।दिल्ली मे सर्दियों मे नल का पानी इतना बर्फीला ठंडा होता है कि पानी छूने पर लगता कि हाथ ही गल जायेगा।अब अगर ऐसी गलन भरी सर्दी मे जहाँ रजाई से बाहर निकलना मुश्किल हो वहां अगर अनचाहे मेहमान आ जाए तो ना चाहते हुए भी खुले दिल से मेजबानी करनी ही पड़ती थी।आज का वाकया ऐसे ही मेहमान के नाम है।
ऐसी ही एक जाड़े की गलन भरी सर्दी की शाम को फलाने जी फ़ोन आया और उन्होंने हाल-चाल पूछा की भाई आजकल तुम लोग रहते कहाँ हो।और दुनिया भर की बातचीत के बाद उन्होंने पूछा कि आज शाम को क्या घर पर हो ।
और जब पतिदेव ने कहा की हाँ घर पर ही है . तो इस पर उधर से फलाने जी ने कहा की अच्छा तो हम लोग अभी थोडी देर मे तुम्हारे घर आ रहे है।
जब उन्होंने अपने आने की बात की तो रात के खाने का निमंत्रण देना ही पड़ा।
खैर फलाने जी सपरिवार रात को खाने पर आए। और हमने भी सब जाड़ा-वाड़ा भूल कर उन्हें मन ही मन कोसते हुए किचन मे जाकर खाना बनाना शुरू किया। और पतिदेव पर भी नाराज हुए की उन्हें मना कर देना चाहिए था, फालतू मे अब इतने जाड़े मे खाना बनाना पड़ रहा है।
खैर हमने खाना बनाया और फलाने जी के सपरिवार आने पर खूब खुशी जाहिर करते हुए उनसे मिले और बातचीत भी हुई। सब कुछ ठीक से निपट गया माने खाना हुआ स्वीट डिश खाई गई और काफ़ी भी पी गई।और काफ़ी पीते-पीते फलाने जी की पत्नी बोली ममता आज कितनी ज्यादा ठंड पड़ रही है ना।
अब हम हाँ के अलावा कह भी क्या सकते थे। :)
इस पर उन्होंने आगे कहा( जिसे सुनकर तो हम गुस्से से उबल ही पड़े ) की आज तो हमारा तो खाना बनाने का बिल्कुल भी दिल नही कर रहा था ।हम सोच रहे थे की खाना बनाए या क्या करें ।
और फ़िर तुम्हारे यहां आने का कार्यक्रम बन गया। तुमने इतना सारा खाना कैसे बनाया।
अन्दर ही अन्दर गुस्से से उबलते हुए हमने अपने चेहरे पर ३६ इंच की मुस्कान फैला दी।
इतना ही नही जब वो जाने लगे तो हम लोगों ने उन्हें फ़िर आने के लिए कहा । और उन्होंने हमारे इस निमंत्रण को खुले दिल से स्वीकारा और उनका आना चलता ही रहा।
कुछ और मेहमानों से आगे भी मिलवाएँगे।
Comments
हम दिल्ली में जब थे तब एक सर्दियों में ठीक आप जैसा वाकया हुआ । उसमें बदलाव सिर्फ इतना हुआ जाने से ऐन पहले मेहमान परिवार बड़े हक से खुद ही अपने घर जाना स्थगित कर रात्रि विश्राम के लिए साधिकार रुक गया। अगले दिन देर शाम ही उनकी वापसी हो सकी थी।
मीनू पहले से भेजूं या तभी आर्डर कर सकते है ?
**मेहमान अगरबती आप की ओर आप के परिबार की मेहमानो रक्षक**
मनीषा
hindibaat.blogspot.com
धैर्य रखना पड़ता है !
वैसे मेहमान नाम की ऐसी ही जोरदार कहानी यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम में भी थी।
Health World in Hindi