कोर्ट कचहरी से दूरी भली ...
कुछ दिन पहले दिनेश जी ने अदालतों की संख्या बढाए जाने की बात की थी जिससे लोगों को जल्दी न्याय मिल सके।तो इस पर हमें अपने साथ हुई एक घटना की याद आ गई।बात अस्सी के दशक की है। उन दिनों हम लोग दिल्ली मे रहते थे। । उन दिनों हम लोगों की कालोनी मे कार गैराज नही थे इस लिए सभी लोग अपनी कार घर के बाहर खड़ी करते थे।तब इतना ज्यादा गार्ड वगैरा रखने का भी चलन नही था। हर सुबह कार साफ करने के लिए आदमी आता था और कार साफ करने के बाद चाभी देकर चला जाता था।
ऐसी ही एक सुबह जब कार साफ करने वाले ने घर की घंटी बजाई तो हमने उसे कार की चाभी दी और वो कार साफ करने के लिए चला गया पर चंद सेकंड के बाद लौटकर आया और बोला की गाड़ी तो है ही नही।
उसके ऐसा कहने पर हमने चौंककर कहा की गाड़ी नही है तो कहाँ गई।
इस पर उसने फ़िर वही कहा की जी गाड़ी तो बाहर खड़ी ही नही है।
इतना सुनकर तो हम लोगों के होश ही उड़ गए की चाभी घर मे और गाड़ी गायब।
खैर इधर-उधर लोगों से पूछा पर कुछ पता नही चला तो पुलिस स्टेशन मे कार चोरी होने की रिपोर्ट लिखवाई गई। और उसके बाद पुलिस ने कार को ढूंढ़ना शुरू किया।और तकरीबन एक महीने बाद हम लोगों को पुलिस स्टेशन से फ़ोन आया की जी आपकी कार मिल गई है । इसलिए पुलिस स्टेशन आकर देख लीजियेऔर पहचान कर जाइए। ।पुलिस स्टेशन पर जो कार दिखी वो कार क्या बस टिन का एक डिब्बा ही रह गई थी क्यूंकि बाकी सब कुछ उन चोरों ने निकाल कर बेच दिया था।
कार मिलने के दो -तीन दिन बाद पुलिस वाले एक १४-१५ साल के लड़के को लेकर आए और कहा की इसी ने आपकी कार चोरी की थी। उस लड़के जब हम लोगों ने पूछा की तुमने कार कैसे खोली तो बड़े ही इत्मिनान से उसने जवाब दिया मास्टर की से ।तब उस पुलिस वाले ने बताया जिस समय हम लोगों की कार चोरी हुई थी उस समय ४-५ कार और चोरी हुई थी और उन्हें १४-१५ साल के ६-७ लड़कों ने चुराया था। और ये लड़के सारीगाड़ियों की नंबर प्लेट बदल कर बेच रहे थे। वो सभी लड़के ड्रग एडिक्ट थे।
खैर उसके बाद केस रजिस्टर हुआ और तारिख पर तारिख का सिलसिला शुरू हुआ तो ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा था।दिन,महीने,साल बीतते गए और हम लोगों ने भी इस बात को ज्यादा तवज्जोह देना छोड़ दिया। और करीब दस साल बाद एक दिन हमारे घर की घंटी बजी दरवाजा खोला तो एक सज्जन अपने जवान बेटे के साथ खड़े थे।उन सज्जन ने हमारे पतिदेव के बारे मे पूछा । चूँकि उनको हम पहचानते नही थे इसलिए उन्हें रुकने को कहकर हम ने पतिदेव को बुलाया और उनके जाने पर पतिदेव ने जो बताया वो सुनकर तो हम बिल्कुल ही हक्का-बक्का रह गए थे।
दरअसल मे जो जवान लड़का उन सज्जन के साथ था ये वही लड़का था जिसने मास्टर की से हमारी गाड़ी खोली थी। और वो सज्जन उसके पिता थे और वो हमारे पतिदेव से उस लड़के की कहीं नौकरी लगवाने की बात करने आए थे।
ये जरुर है की इस बात को अब काफ़ी साल हो गए है पर आज भी समय नही बदला है। अदालतों का जो हाल है वो हम सभी जानते है। एक एक केस को निपटाने मे दस-दस साल लग जाते है । आज भी अगर एक आम आदमी कोर्ट के चक्कर मे पड़ जाता है तो उसके हिस्से सिर्फ़ तारिख ही आती है।
और इसीलिए पहले भी और आज भी लोग यही कहते है कि कोर्ट कचहरी के चक्कर से आदमी जितना दूर रहे उतना ही अच्छा है।
ऐसी ही एक सुबह जब कार साफ करने वाले ने घर की घंटी बजाई तो हमने उसे कार की चाभी दी और वो कार साफ करने के लिए चला गया पर चंद सेकंड के बाद लौटकर आया और बोला की गाड़ी तो है ही नही।
उसके ऐसा कहने पर हमने चौंककर कहा की गाड़ी नही है तो कहाँ गई।
इस पर उसने फ़िर वही कहा की जी गाड़ी तो बाहर खड़ी ही नही है।
इतना सुनकर तो हम लोगों के होश ही उड़ गए की चाभी घर मे और गाड़ी गायब।
खैर इधर-उधर लोगों से पूछा पर कुछ पता नही चला तो पुलिस स्टेशन मे कार चोरी होने की रिपोर्ट लिखवाई गई। और उसके बाद पुलिस ने कार को ढूंढ़ना शुरू किया।और तकरीबन एक महीने बाद हम लोगों को पुलिस स्टेशन से फ़ोन आया की जी आपकी कार मिल गई है । इसलिए पुलिस स्टेशन आकर देख लीजियेऔर पहचान कर जाइए। ।पुलिस स्टेशन पर जो कार दिखी वो कार क्या बस टिन का एक डिब्बा ही रह गई थी क्यूंकि बाकी सब कुछ उन चोरों ने निकाल कर बेच दिया था।
कार मिलने के दो -तीन दिन बाद पुलिस वाले एक १४-१५ साल के लड़के को लेकर आए और कहा की इसी ने आपकी कार चोरी की थी। उस लड़के जब हम लोगों ने पूछा की तुमने कार कैसे खोली तो बड़े ही इत्मिनान से उसने जवाब दिया मास्टर की से ।तब उस पुलिस वाले ने बताया जिस समय हम लोगों की कार चोरी हुई थी उस समय ४-५ कार और चोरी हुई थी और उन्हें १४-१५ साल के ६-७ लड़कों ने चुराया था। और ये लड़के सारीगाड़ियों की नंबर प्लेट बदल कर बेच रहे थे। वो सभी लड़के ड्रग एडिक्ट थे।
खैर उसके बाद केस रजिस्टर हुआ और तारिख पर तारिख का सिलसिला शुरू हुआ तो ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा था।दिन,महीने,साल बीतते गए और हम लोगों ने भी इस बात को ज्यादा तवज्जोह देना छोड़ दिया। और करीब दस साल बाद एक दिन हमारे घर की घंटी बजी दरवाजा खोला तो एक सज्जन अपने जवान बेटे के साथ खड़े थे।उन सज्जन ने हमारे पतिदेव के बारे मे पूछा । चूँकि उनको हम पहचानते नही थे इसलिए उन्हें रुकने को कहकर हम ने पतिदेव को बुलाया और उनके जाने पर पतिदेव ने जो बताया वो सुनकर तो हम बिल्कुल ही हक्का-बक्का रह गए थे।
दरअसल मे जो जवान लड़का उन सज्जन के साथ था ये वही लड़का था जिसने मास्टर की से हमारी गाड़ी खोली थी। और वो सज्जन उसके पिता थे और वो हमारे पतिदेव से उस लड़के की कहीं नौकरी लगवाने की बात करने आए थे।
ये जरुर है की इस बात को अब काफ़ी साल हो गए है पर आज भी समय नही बदला है। अदालतों का जो हाल है वो हम सभी जानते है। एक एक केस को निपटाने मे दस-दस साल लग जाते है । आज भी अगर एक आम आदमी कोर्ट के चक्कर मे पड़ जाता है तो उसके हिस्से सिर्फ़ तारिख ही आती है।
और इसीलिए पहले भी और आज भी लोग यही कहते है कि कोर्ट कचहरी के चक्कर से आदमी जितना दूर रहे उतना ही अच्छा है।
Comments
न्याय प्रणाली में सुधार की जिम्मेदारी प्राथमिक रुप से सरकार की है। उसे अधिक अदालतें मुहैया करानी चाहिए जिस से न्याय आसानी से, सस्ता, समय नष्ट नहीं करने वाला और सहजता से उपलब्ध हो और हर देशवासी उस पर गर्व कर सके। पर जिस व्यवस्था में जनता के चिल्लाये बिना कुछ नहीं होता वहाँ। बिना बोले कैसे यह सब होगा। सब से प्राथमिक बात यह है कि राज नेता वोट मांगने के पहले यह कहना तो शुरू करें कि हम न्याय व्यवस्था में सुधार लाएंगे और ऐसी व्यवस्था कायम करेंगे कि एक-दो साल में मुकदमें का निर्णय हो सके।
मेरी सफलता तो इस में है कि आप ने इस बारे में एक पोस्ट तो लिखी।