ले आओ मम्मा पीसी ( लॉकडाउन ३.० ) पहला दिन

नहीं समझे । 😊


समझेगें भी कैसे । बचपन में हम लोग जब कोट पीस मतलब ताश खेलते थे तो अगर किसी टीम को बार बार पत्ते बाँटने पड़ते थे क्यों कि वो टीम बार बार हार जाती थी । तो इस बार बार पत्ते बाँटने को हम लोग कहते थे , ये आओ मम्मा पीसी । 🤓

अब आजकल जो ये बार बार लॉकडाउन बढ़ता है और जो रोज़ रोज़ हम लोगों को सारा काम करना पड़ रहा है बिल्कुल वैसे ही जैसे कोट पीस में हारने वाली टीम को बार बार पीसना पड़ता था मतलब पत्ते बाँटने पड़ते थे ।

पहले जब कभी हम बहनों में से किसी की कामवाली हैल्पर नहीं आती थी और हम बहनों को सारा काम करना पड़ता था तो जब हम लोग फोन से एक दूसरे का हाल चाल लेते थे तो हम लोग यही कहते थे कि ले आओ मम्मा पीसी चल रहा है । 😁


लॉकडाउन बढ़ते रहने से हम लोग अब यही कहना शुरू करने वाले है कि ले आओ मम्मा पीसी चल रहा है ।

अब ताश में तो पत्ते अपने हाथ में होते है और हम बाज़ी पलट भी सकते है पर इस कोरोना और लॉकडाउन के पत्ते तो दूसरों के हाथ में भी है । और बाज़ी जीतना और पलटना सिर्फ़ एक टीम के नहीं बल्कि सब टीमों के हाथ में है ।

और हम बस इतना कर सकते है कि अपने पत्ते संभालकर रखें ।

खैर अभी फिलहाल इस काम काज से छुट्टी तो मिलने वाली नहीं है । तो ले आओ मम्मा पीसी करते रहो ।

तो जांबाजों लगे रहो डटे रहो क्योंकि अभी क़िला फ़तह होने में देर है । 😛


तो सबको लॉकडाउन ३.० के लिये ढेरों शुभकामनायें ।

Comments

Popular posts from this blog

जीवन का कोई मूल्य नहीं

क्या चमगादड़ सिर के बाल नोच सकता है ?

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन