उफ़ ये मास्क ( लॉकडाउन ४.० ) तेरहवाँ दिन

सच में जब से इस कोरोना का चक्कर शुरू हुआ है तब से बुरा हाल है । पहनो तो मुसीबत ना पहनो तो मुसीबत ।

बाक़ी सब तो ठीक है कि घर पर रहो ,घर से बाहर अगर बहुत ज़रूरी हो तभी जाओ वग़ैरा वग़ैरा ।

पर सबसे मुश्किल है कि जब भी घर से बाहर क़दम रखो तो मास्क पहनो । वही जैसे पुराने ज़माने में तो सिर्फ़ औरतों को घूँघट करना पड़ता था पर इस कोरोना ने तो आदमियों को भी नहीं बकशा । 😃

अब हम सबकी खुले मुँह घूमने की आदत है पर इस कोरोना ने मुँह पर मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया है ।

और सबसे मुश्किल ये है कि अगर हम मास्क नहीं पहनते है तो अपने लिये ही ख़तरा मोल लेते है ।

मास्क पहनकर बहुत देर तक हम तो नहीं रह पाते है । अजीब सी घुटन सी होने लगती है । और बात करने में लगता है मानो कुएं से आवाज़ आ रही हो ।


हमारी तो मास्क पहनकर वही चश्मा पहनने वाली हालत हो जाती है कि बात करते हुये सामने दीवार होने जैसी फीलिंग आती है ।

पर मास्क में एक बात बडी अजीब है कि दूसरे व्यक्ति से बात करते हुये आप हंस रहें है या नही ,ये उस दूसरे व्यक्ति को पता नहीं चलेगा । हाँ ठहाका लगायेगें तो जरूर पता चलेगा । 😂

जब मास्क पहने होते है तो आँखें ज़्यादा बोलती नज़र आती है । क्योंकि सिर्फ़ आँखें ही जो नज़र आती है ।

क्यूँ ऐसा होता है ना ।


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