कितने मजबूर मज़दूर और श्रमिक ( लॉकडाउन ४.० ) तीसरा दिन
जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से दो महीना होने को है पर हमारे देश के मजबूर मज़दूर और श्रमिक की अपने गाँव घर जाने की जद्दोजहद वैसे ही चल रही है ।
बल्कि ये कहना ज़्यादा सही होगा कि अब उनका अपने घर को जाने के लिये पलायन करना मजबूरी सी होती जा रही है । वो भी क्या करें किसी तरह दो महीना उन लोगों ने लॉकडाउन के चक्कर में बिना कामकाज और बिना किसी कमाई के काटा ।
और किस तरह ये लोग ट्रकों में टेम्पो में साइकिल से रिक्शे से बाइक से हज़ारों किलोमीटर का सफ़र करने को मजबूर है । और कितनी बार कहीं ट्रक पलट जाता है तो कहीं पुलिस इन पर लाठी डंडे बरसाती है ।
हज़ारों तो कहना ग़लत है लाखों की संख्या में ये लोग हर हाईवे पर पैदल चलते हुये अपने घरों को लौटने को मजबूर है । क्या आदमी क्या औरतें और क्या बच्चे सब कंधे पर सामान टाँगे बस चले जा रहें है ।
और कर भी क्या सकते है । जब रहने का ठिकाना नहीं खाने और कमाने का कोई ज़रिया नहीं तो वो और क्या करेंगे ।
और उसपर जब ये अपने प्रदेश अपने गाँव घर इतनी मुश्किल यात्रा करके पहुँचते है तो वहाँ भी इन्हें उनका प्रदेश और गाँव लेने को तैयार नहीं ।
बेहद दुख और अफ़सोस की बात है ।
बल्कि ये कहना ज़्यादा सही होगा कि अब उनका अपने घर को जाने के लिये पलायन करना मजबूरी सी होती जा रही है । वो भी क्या करें किसी तरह दो महीना उन लोगों ने लॉकडाउन के चक्कर में बिना कामकाज और बिना किसी कमाई के काटा ।
और किस तरह ये लोग ट्रकों में टेम्पो में साइकिल से रिक्शे से बाइक से हज़ारों किलोमीटर का सफ़र करने को मजबूर है । और कितनी बार कहीं ट्रक पलट जाता है तो कहीं पुलिस इन पर लाठी डंडे बरसाती है ।
हज़ारों तो कहना ग़लत है लाखों की संख्या में ये लोग हर हाईवे पर पैदल चलते हुये अपने घरों को लौटने को मजबूर है । क्या आदमी क्या औरतें और क्या बच्चे सब कंधे पर सामान टाँगे बस चले जा रहें है ।
और कर भी क्या सकते है । जब रहने का ठिकाना नहीं खाने और कमाने का कोई ज़रिया नहीं तो वो और क्या करेंगे ।
और उसपर जब ये अपने प्रदेश अपने गाँव घर इतनी मुश्किल यात्रा करके पहुँचते है तो वहाँ भी इन्हें उनका प्रदेश और गाँव लेने को तैयार नहीं ।
बेहद दुख और अफ़सोस की बात है ।
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