नीला आसमान , शुद्ध हवा और हम लोग ( सत्रहवां दिन )
अब इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना के चलते सब लोग लॉकडाउन में है । अब जब सारा देश लॉकडाउन में है और सारी जनता घर में है तो ज़ाहिर है कि बाहर सड़क पर एक तो लोग कम है और दूसरे कारें और बसें वग़ैरा तो बिलकुल ही ना के बराबर है ।
होली के पहले से ही लोगों ने घर से बाहर निकलना थोड़ा कम जरूर कर दिया था । और लोगों ने होली भी नहीं खेली थी । क्योंकि उस समय कोरोना का डर थोड़ा थोडा शुरू रहा था । हमें याद है होली के दो दिन बाद हम मॉल गये थे, जिस वेगास मॉल में लोगों से रौनक़ रहती थी वहाँ एक तरह का सन्नाटा था जो बहुत ही अजीब था क्यों कि उस समय तक दिल्ली वग़ैरा में सिर्फ़ स्कूल ही बंद थे ।
आजकल अकसर ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिल रही है जैसे दिल्ली में यमुना का पानी साफ़ हो गया है । या पंजाब से हिमालय पर्वत दिखाई देने लगा है । या मुम्बई और दिल्ली में आसमान का सुंदर नीला रंग दिखाई देने लगा है । और ये सारी ख़बरें सही है और ये ख़बरें हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या ये जो भी समस्यायें है वो हम इन्सानों नें ही बनाई है ।
ये बात तो है कि दिल्ली क्या देश के ज़्यादातर हिस्सों में कवैरंटाईन के पहले आसमान ग्रे या एक तरह का धुँधला सा रहता था पर आजकल आसमान जितना सुंदर और नीला दिखाई देता है इतना तो ज़माने पहले दिखता था ।
ना केवल आसमान बल्कि आजकल हवा भी बहुत शुद्ध सी हो गई है । और इसका एहसास भी होता है । क्यों कि कवैरंटाईन के पहले हवा में एक तरह का भारीपन सा महसूस होता था पर भला हो इस कवैरंटाईन का जिसके चलते हम लोगों को शुद्ध हवा मिलनी शुरू हो गई है । वरना हम दिल्ली वाले तो शुद्ध हवा में साँस लेना ही भूल से गये थे ।
और इस अशुद्ध हवा और प्रदूषण भरे माहौल के ज़िम्मेदार भी हम लोग ही है । क्यों कि जिस तरह से हमारी जनसंख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है , दिनों दिन शहरों की रिहायशी इलाक़ों की सीमायें बढ़ती जा रही है । पहले शहर और गाँव में एक दूरी सी रहती थी पर अब शहर कहाँ तक है इसका पता लगाना मुश्किल है क्योंकि शहर के बाहर बडे बडे कॉलेज और बिल्डिंगों की भरमार सी हो गई है ।
साथ ही जिस तरह से फ़ैक्टरियाँ वग़ैरा बढ रही है ,कारों ,स्कूटरों ,बाईक की संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है । और जहाँ इतनी गाड़ियाँ चलेंगीं वहाँ प्रदूषण ना हो , ऐसा कैसे हो सकता है ।
तो क्या होगा और क्या मिलेगा हम लोगों को ?
क्या कारें क्या बसें आजकल तो ट्रेन,प्लेन और मेट्रो तक बंद है मतलब नो प्रदूषण । पर कब तक ?
और जिस दिन ये लॉकडाउन ख़त्म होगा ,उस दिन क्या हाल होगा ।
पर फ़िलहाल तो चहुँओर सन्नाटा सा जरूर है पर शुद हवा और नीला सुंदर आसमान इस सन्नाटे में कुछ सुकून दे जाता है ।
होली के पहले से ही लोगों ने घर से बाहर निकलना थोड़ा कम जरूर कर दिया था । और लोगों ने होली भी नहीं खेली थी । क्योंकि उस समय कोरोना का डर थोड़ा थोडा शुरू रहा था । हमें याद है होली के दो दिन बाद हम मॉल गये थे, जिस वेगास मॉल में लोगों से रौनक़ रहती थी वहाँ एक तरह का सन्नाटा था जो बहुत ही अजीब था क्यों कि उस समय तक दिल्ली वग़ैरा में सिर्फ़ स्कूल ही बंद थे ।
आजकल अकसर ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिल रही है जैसे दिल्ली में यमुना का पानी साफ़ हो गया है । या पंजाब से हिमालय पर्वत दिखाई देने लगा है । या मुम्बई और दिल्ली में आसमान का सुंदर नीला रंग दिखाई देने लगा है । और ये सारी ख़बरें सही है और ये ख़बरें हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या ये जो भी समस्यायें है वो हम इन्सानों नें ही बनाई है ।
ये बात तो है कि दिल्ली क्या देश के ज़्यादातर हिस्सों में कवैरंटाईन के पहले आसमान ग्रे या एक तरह का धुँधला सा रहता था पर आजकल आसमान जितना सुंदर और नीला दिखाई देता है इतना तो ज़माने पहले दिखता था ।
ना केवल आसमान बल्कि आजकल हवा भी बहुत शुद्ध सी हो गई है । और इसका एहसास भी होता है । क्यों कि कवैरंटाईन के पहले हवा में एक तरह का भारीपन सा महसूस होता था पर भला हो इस कवैरंटाईन का जिसके चलते हम लोगों को शुद्ध हवा मिलनी शुरू हो गई है । वरना हम दिल्ली वाले तो शुद्ध हवा में साँस लेना ही भूल से गये थे ।
और इस अशुद्ध हवा और प्रदूषण भरे माहौल के ज़िम्मेदार भी हम लोग ही है । क्यों कि जिस तरह से हमारी जनसंख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है , दिनों दिन शहरों की रिहायशी इलाक़ों की सीमायें बढ़ती जा रही है । पहले शहर और गाँव में एक दूरी सी रहती थी पर अब शहर कहाँ तक है इसका पता लगाना मुश्किल है क्योंकि शहर के बाहर बडे बडे कॉलेज और बिल्डिंगों की भरमार सी हो गई है ।
साथ ही जिस तरह से फ़ैक्टरियाँ वग़ैरा बढ रही है ,कारों ,स्कूटरों ,बाईक की संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है । और जहाँ इतनी गाड़ियाँ चलेंगीं वहाँ प्रदूषण ना हो , ऐसा कैसे हो सकता है ।
तो क्या होगा और क्या मिलेगा हम लोगों को ?
क्या कारें क्या बसें आजकल तो ट्रेन,प्लेन और मेट्रो तक बंद है मतलब नो प्रदूषण । पर कब तक ?
और जिस दिन ये लॉकडाउन ख़त्म होगा ,उस दिन क्या हाल होगा ।
पर फ़िलहाल तो चहुँओर सन्नाटा सा जरूर है पर शुद हवा और नीला सुंदर आसमान इस सन्नाटे में कुछ सुकून दे जाता है ।
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