राम तेरी गंगा साफ़ हो गई ( लॉकडाउन २.० ) दसवाँ दिन

कितनी अजीब बात है ना कि जिस पवित्र नदी गंगा की सफाई में करोड़ों करोड़ों रूपये ख़र्च किये गये वो अचानक बिना कुछ किये ही अपने आप साफ़ और स्वच्छ हो गई ।

ना केवल गंगा नदी बल्कि आजकल तो पूरे देश में बहने वाली अलग अलग नदियाँ सभी पूरी तरह से साफ़ और पानी पूरी तरह से स्वच्छ हो गया है । फिर वो चाहे दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी हो , फ़ैज़ाबाद अयोध्या में बहने वाली सरयू नदी हो लखनऊ में बहने वाली गोमती नदी हो या इलाहाबाद ( प्रयागराज ),बनारस ,हरिद्वार में बहने वाली गंगा नदी हो या चाहे झेलम ,गोदावरी या कोई और नदी हो या चाहे नैनीताल की मशहूर झील ही हो ,आजकल सबका पानी बिलकुल साफ़ और पारदर्शी सा हो गया है ।


इस कोरोना और लॉकडाउन ने ना केवल हम लोगों को घर पर रहने को मजबूर किया बल्कि इस लॉकडाउन ने एक बहुत बड़ी बात ये समझाई कि ये जो हमारी नदियाँ है उनसे भी हम लोगों को थोड़ी दूरी बनाकर रखनी चाहिये । मतलब एक तरह की सोशल डिसटैंसिंग ।


जब नब्बे के दशक में ये गाना आया था

राम तेरी गंगा मैली हो गई
पापियों के पाप धोते धोते

तब भी इस गाने के मतलब यही था कि गंगा कितनी मैली है । एक तो हीरोइन के लिये था और दूसरा गंगा नदी के लिये था ।



पिछले दो -तीन तीन दशकों से गंगा को साफ़ करने के लिये ना जाने कितनी सरकारों ने, ना जाने कितने ग़ैर सारी संस्थाओं ने , ना जाने कितने करोडों रूपये और ना जाने कितनी कमेटियाँ बनी गंगा की सफाई के लिये पर हर बार नतीजा वही सिफ़र मतलब ज़ीरो होता रहा ।



इंसान तो क्या भगवान ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि ऐसा भी हो सकता है । ना केवल भगवान बल्कि नदियों ने भी उम्मीद छोड़ दी होगी कि कभी उनका पानी भी इतना साफ़ हो सकता है । बिना कचरे और गंदगी के नदियाँ भी साँस ले रही होंगीं । और शायद वो भी अपने ऊपर फेंके जाने वाले कूड़े , कैमिकल युक्त गंदे पानी के ना फिकने पर चैन की साँस ले रही होंगीं ।



पर इस लॉकडाउन ने ये तो साबित कर दिया कि हम इंसान ही सारे फ़साद की जड़ है । क्योंकि हम लोग ही सब चीज़ों को दूषित करते है फिर वो चाहे हमारा पर्यावरण हो या चाहे हमारी नदियाँ ।


और एक बात इससे समझ आ रही है कि अगर नदियों को साफ़ और स्वच्छ रखना है तो कम से कम साल मे एक बार नदियों के पास या तट पर इंसानों के जाने की रोक होनी चाहिये ताकि साल भर का जो कूड़ा- कचरा हमारी पावन नदियों में फेंका गया हो ,वो साफ़ हो जाये ।



और नदियों के साथ इस सोशल डिसटैंसिंग से ना केवल करोड़ों रूपयों का ख़र्चा बचेगा बल्कि ये जो दुनिया भर की कमेटी बनती है उन सबका ख़र्चा भी बचेगा ।


तो हमारा तो ये कहना और मानना है कि नदियों से साल में एक बार एक महीने के लिये सोशल डिसटैंसिंग अनिवार्य हो जानी चाहिये ।


आपका क्या ख़याल है ।


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