सुघड़ गृहिणी ( लॉकडाउन २.० ) ग्यारहवाँ दिन

ये सब शब्द सुने तो बहुत है और बहुत लोग सुघड़ गृहिणी होती भी है । और हमारे जानने वालों में भी बहुत सुघड़ गृहिणियाँ है भी । अब सबका नाम तो नहीं दे सकते है पर हमें पता है कि वो समझ जायेंगी ।

अब सुघड़ गृहणियाँ तो वही होगी ना जो कोई चीज़ बर्बाद ना करें और हर बची हुई चीज़ का अच्छा इस्तेमाल करे ।

इस लॉकडाउन में ये पता चला कि हममें भी वो सुघड़ गृहिणी वाली कुछ विशेषतायें आ गई है । जो पहले कहीं खोई हुई थी । 😜


हमारी एक दीदी तो हमें हमेशा कहती है कि हम कोई भी सामान या खाने की चीज़ें बहुत जल्दी हटा देते है मतलब या तो किसी को दे देते है या फेंक देते है । और वो हमेशा कहती थी तुम इस काम में बड़ी जल्दबाज़ी करती हो मतलब कोई भी चीज़ फेंकने में ।


वैसे ओरिजनल फेंकू गुरू हम ही है । 😁


अब आमतौर पर जब भी खाना बनता है तो हमेशा कुछ ज़्यादा ही बन जाता है तो अगर एक दो दिन किसी ने नहीं खाया तो हम उस चीज़ को हटा देते थे । पर आश्चर्य है कि आजकल नो फूड वेस्टेज ।


मतलब आजकल तो सब कुछ इतना सही अंदाज से बनता है कि बस क्या कहें । हमारी मम्मी कहती भी थी कि बरककत तभी होती है जब गृहिणी सुघड़ हो । काश आज मम्मी होती तो कितना ख़ुश होती । कि बिटिया जिसे खाना बनाना नहीं आता था वो सुघड़ गृहिणी बन रही है । 🙏🙏 😀


अब जैसा कि हमने कहा कि हम बहुत बडे सामान फेंकने के एक्सपर्ट है पर आजकल तो हम हर थोड़े बहुत बचे हुये खाने की चीज़ों का भी कुछ ना कुछ इस्तेमाल कर लेते है । जानते है आप लोग ऐसा करते है पर हम नहीं करते थे । हाँ कभी कभार की बात छोड़ दीजिये ।


अभी दो चार दिन पहले हमने शाही टोस्ट बनाया तो थोड़ी सी चाशनी बच गई । अब कोई और आम दिन होता तो हम उस चाशनी का कोई इस्तेमाल नही करते और उसे फेंक देते पर उस दिन हमने उसी चाशनी में थोडा आटा और थोडा सा घी मिलाकर बिहार का मशहूर खजूर बना लिया । और वो भी पहली बार बनाया पर बहुत अच्छा और टेस्टी भी बना ।



वैसे हम बचे हुये चावल से खीर ,कटलेट या जर्दा तो बनाते ही है और बची हुई सब्ज़ियों से भी कभी कटलेट तो कभी सूप और कभी पराँठा भी बना लेते है ।


असल में जब कोई हैल्पर होती है तो हम बचा हुआ खाना वग़ैरा उन्हें ही दे देते है । पर आजकल तो हम ही कामवाली है तो बचे हुये खाने का इस्तेमाल नई नई डिशेज बनाने मे कर रहें है । 😜





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