नया दिन नई शुरूआत ( लॉकडाउन २.० ) पहला दिन


पर क्या ये बात हम सबके लिये कह सकते है । शायद नहीं ।

जैसी कि हम सभी को उम्मीद थी और सबको ये पता भी था कि इस कोरोना के कारण लॉकडाउन बढ़ाया जायेगा और वही हुआ भी ।


पर इस लॉकडाउन में जहाँ हम सब तो अपने घरों में है वहीं जिन लोगों के पास घर नहीं है और जो लोग अपना गॉंव घर छोड़कर काम काज की तलाश में बडे शहरों में आते है उन लोगों के लिये तो ये बहुत ही मुश्किल का समय है ।


हम सब जानते है कि अपने देश में कितने लोग तो सड़कों ,बस स्टेशन और रेलवे स्टेशनों पर ही रहते और सोते है । और ऐसे लोगों को इस लॉकडाउन में जरूर परेशानी हो रही होगी ।

पहले लॉकडाउन के शुरू से अंत तक कहीं ना कहीं से ये ख़बर आती रहती थी कि कैसे लोग पैदल ही अपने घर को निकल पडे है । फिर वो चाहे किसी भी प्रदेश या प्रांत के रहें हो ।

कैसे लॉकडाउन के शुरू में दिल्ली में बहुत सारे लोग बस स्टेशन पर जमा हो गये थे ताकि बसों से अपने शहर या गॉंव जा सकें ।

और कल मुम्बई में कैसे इतने सारे लोग रेलवे स्टेशन पर पहुँच कर जमा हो गये इस उम्मीद में कि शायद ट्रेन चलेगी और वो अपने घरों को जा सकेंगे ।

क्या दिल्ली क्या मुम्बई क्या मध्य प्रदेश क्या उड़ीसा सब जगह ऐसे लोग अपने घर जाने को बेताब । और हों भी क्यूँ ना जब बडे शहरों में लॉकडाउन के चलते सब काम धंधा ठप्प है तो उनके पास घर जाने के अलावा और क्या चारा है ।


शहर में भले उनके पास रहने को घर नहीं है पर गाँव में तो घर है फिर चाहे वो कच्चा हो या पक्का घर हो । और अगर घर नहीं तो पूस से बनी झोपड़ी तो होगी ही और जहाँ कम से कम वो रह तो सकते है ना ।


आजकल लॉकडाउन के चलते जहाँ शहरों में खाने की इतनी मुसीबत है क्यों कि जो रोज़ कमाते और रोज़ खाते है उनहें तो बहुत ज़्यादा परेशानी हो रही होगी । सभी सरकारें भले ही उनके खाने का ध्यान रख रहीं होंगीं पर आख़िर कब तक । गाँव में कम से कम वो अपने परिवार के साथ खाना तो खा सकते है ।


हर इंसान परेशानी में घर ही जाना चाहता है फिर वो चाहे अमीर हो या ग़रीब हो । क्यों कि सुख दुख में इंसान को सिर्फ़ अपना घर ही नज़र आता है ।

और क्यूँ ना चाहे ।


और इसमें ग़लत क्या है ।


क्या ऐसे मज़दूर या लेबर को उनके गाँव घर पहुँचाने का कोई इंतज़ाम नहीं किया जा सकता है ।

क्यों ?

क्यों कि वो ग़रीब है और वो कुछ कर या कह नहीं सकते है ।







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