तमीज़ और अदब

कल हमारे एक वहाटसऐप ग्रुप पर हमारी एक दीदी ने पोस्ट लगाई और उस पर हमारी एक कज़िन ने उनका नाम लिखते हुये लिखा कि ....जोक्स बडे अच्छे थे । पाँच या दस मिनट बाद जब हमारी कज़िन दुबारा ग्रुप पर गई तो उसे अपना लिखा हुआ कमेंट देख कर बहुत बुरा लगा और उसने फ़ौरन लिखा कि ग़लती से ऐसा लिख गया था । और उसने ये भी लिखा कि सब ग्रुप पर सोचेंगे कि हम कितने बदतमीज़ हो गये है जो दीदी का नाम ले रहे है ।

हमारे कहने पर कि सब जानते है कि तुम हम सबकी कितनी इज़्ज़त करती हो । पर तब भी उसे बुरा लग रहा था कि उसने दीदी को नाम लेकर कैसे लिख दिया । क्योंकि हमारी कज़िन हम लोगों से छोटी है । हम लोग भी अपनी हम उम्र दीदी को नाम से ही बुलाते है । पर जो पाँच दस साल बड़ी है उन्हें हमेशा दीदी ही बोला है ।

पर आजकल तो छोटे भाई -बहन बडे का खूब नाम लेते है । भले वो दस साल छोटे ही क्यूँ ना हो । और कमाल की बात ये है कि माँ बाप भी ख़ुश होते है । कि कितने प्यारे अंदाज में नाम लेकर बोल रही है । भइया और दीदी कहने का ज़माना अब नहीं रहा । वैसे भी आजकल एक या दो बच्चों का चलन है । पर फिर भी सवाल ये है कि अगर बच्चों को सिखाया या बताया नहीं जायेगा तो उन्हें कैसे पता चलेगा । अब आजकल इसे कूल होना कहते है ।

और तो और अब जीजा और भाभी ना कहना ज़्यादा पसंद करते है और ना ही कहलवाना क्योंकि इन सम्बोधनों से थोड़ा बैकवर्ड
होने जैसा महसूस होता होगा । जीजा हो या भाभी बस नाम से ही पुकारते है ।

हाल ही में एक फ़िल्म देखी थी सोनू के टीटू की स्वीटी जिसमें सोनू दादाजी को उनके नाम से यानी हर बात में वो कहता था ओए घसीटे । अब भला ये क्या बात हुई । आख़िर दादाजी ना सिर्फ़ पद में बल्कि उम्र में भी तो बड़े है । आख़िरकार हर रिश्ते की अपनी गरिमा होती है । प्यार अपनी जगह है और अदब अपनी जगह । अब अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब बच्चे माँ बाप का नाम भी लेना शुरू कर देगें ।

वही कूल होने वाली बात । पर हमें लगता है कि ये कूल होने से ज़्यादा बदतमीज़ी और बेअदबी है ।





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