दिनों दिन मिलते नम्बर

चंद रोज़ पहले दसवीं और बारहवीं के इम्तिहान के नतीजे आये थे जिसमें कुछ बच्चों को तकरीबन सौ प्रतिशत नम्बर मिले अब अगर ५०० में से ४९९ मिले है तो सौ प्रतिशत ही हुआ ना । इन बच्चों के रिज़ल्ट पढ़ और देख कर लगा कि वाक़ई आजकल के बच्चे बड़े तेज़ होते है ।

अब हम लोगों के समय में तो अगर साठ प्रतिशत नम्बर आ जाता था तो सब लोग ये सोचकर खूब ख़ुश होते थे कि चलो फ़र्स्ट क्लास में पास हो गये । वैसे तब तो पचास -पचपन प्रतिशत भी अच्छा ही माना जाता था पचपन प्रतिशत के ऊपर वाले को गुड सेकेंड क्लास कहा जाता था ।और जहाँ तक हमें याद है तब तो सत्तर या ज़्यादा से ज़्यादा पचहत्तर प्रतिशत पर लोग टॉप कर जाते थे । हम लोगों के समय में भी कुछ लोगों को अस्सी प्रतिशत नम्बर मिलते थे पर ऐसे बच्चों की संख्या काफ़ी कम होती थी । ।

मैथ्स और साइंस के अलावा संस्कृत और म्यूज़िक वाले विषयों में ही डिस्टिंशन मिलता था मतलब ७५ से ऊपर नम्बर आना । और बहुत कम लोगों को पूरे सौ नम्बर मिलते थे । पर अब तो गुड सेकेंड क्लास और फ़र्स्ट क्लास की कोई पूछ ही नहीं है । कहीं गिनती में भी नही आते है ।


हालाँकि हमारे बेटों के समय में बच्चों को सौ नम्बर मिलने शुरू हो चुके थे पर तब भी मैथ्स और साइंस मे ही ज़्यादातर सौ नम्बर मिलते थे । पर हाँ उस समय तक हिन्दी ,इंगलिश जैसे विषयों में भी यदा कदा बच्चों को सौ नम्बर मिलने लग गये थे जिन्हें स्कूल वाले बोर्ड पर लिख कर शान से डिसप्ले किया करते थे । पर अब तो लगता है कि इतने सारे बच्चों के और तकरीबन हर विषय में सौ नम्बर मिलने के कारण स्कूल वालों को अब बोर्ड पर नाम लिखने में ज़रूर दिक़्क़त आती होगी ।

आजकल के सौ प्रतिशत नम्बर के चलन को देखते हुये बारहवीं पास करने वाले बच्चों जिनके सत्तर या अस्सी प्रतिशत नम्बर आये होगें उनको किसी अच्छे कॉलेज मे दाख़िला मिलना कहीं मुश्किल ना हो जाये । यूँ तो हर साल हम पेपर में कॉलेज की कट ऑफ़ लिस्ट देखकर दंग रह जाते थे और सोचते थे कि अच्छा हुआ जो हमने पहले ही पढ़ाई कर ली । वरना हमारा क्या होता । 😊

पर इधर पिछले कुछ सालों से तो लगता है मानो नम्बरों की बाढ़ सी आ गई हो। क्या आज के बच्चे इतने पढ़ाकू और तेज़ है कि उन्हें एक नहीं चार चार विषयों में सौ मे से सौ नम्बर मिल रहे है । पता नहीं ये हमारी शिक्षा का बिगड़ता हुआ सिस्टम है या कुछ और ।







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