प्लास्टिक के कूड़े की जटिल समस्या

दो दिन पहले महाराष्ट्र सरकार ने प्लास्टिक के उपयोग पर पूरी तरह से रोक लगा दी है और प्लास्टिक के बैग के साथ पाये जाने पर फ़ाइन भी देना पड़ेगा । और उम्मीद करते है कि ये अभियान सफल हो ।

वैसे कुछ महीने पहले दिल्ली में भी प्लास्टिक बैग और अन्य प्लास्टिक की चीज़ों पर बैन लगाया था और फाइन भी लगाया था पर बस कुछ दिन बाद सब कुछ फिर पहले जैसा हो गया । मललब हर जगह प्लास्टिक का प्रयोग दुबारा शुरू हो गया । क्योंकि यहाँ पर फाइन शायद कम था । 🙁

वैसे इस प्लास्टिक की समस्या और पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने में हम सबका भी बड़ा हाथ है । क्यों आपको ऐसा नहीं लगता है ।

हमें याद है हमारी मम्मी घर में कपड़े के झोले जी हाँ पहले झोला ही हुआ करता था ,जिसे अब बैग कहते है बनाकर रखती थी और जब भी नौकर फल सब्ज़ी या कुछ और सामान लेने जाता था तो हमेशा कपड़े के झोले में ही सामान लाता था । और सभी दुकानों पर वो चाहे फल -सब्ज़ी की हो या फिर राशन या पंसारी की हो सभी अखबार के बने हुये पैकेट रखते थे । और इनमें ही सामान देते थे ।

अस्सी के दशक तक तो प्लास्टिक का कम ही इस्तेमाल होता था । उस समय तो शादी ब्याह में भी खाने पीने के लिये पत्तल ,दोने और कुल्हड़ ही इस्तेमाल किया जाता था ।और तो और सभी स्टेशनों ढाबों पर भी कुल्हड़ में ही चाय मिला करती थी और दोने में समोसा या पकौड़ी । वैसे ये पत्तल और कुल्हड़ भी तो यूज ऐंड थ्रो ही था । पर पता नहीं क्यों इनका बनना और इस्तेमाल होना बंद हो गया ।

एक बात और पहले लोग माहवारी के समय भी पुराने कपड़े से बने पैड इस्तेमाल किया करते थे हाँ उसमें मुश्किल भी होती थी पर फिर धीरे धीरे उनकी जगह जब बाज़ार में मिलने वाले पैड्स इस्तेमाल करने लगे क्योंकि उसमें कपड़े के बने पैड वाला झंझट नही था । वैसे आजकल कम्पनी वापिस कपड़े के बने पैड्स बनाना शुरू कर रही है और लोग इनका इस्तेमाल शुरू कर रहे है ।

पर नब्बे के दशक के बाद जो प्लास्टिक का अंधाधुँध इस्तेमाल शुरू हुआ और हम सबको भी आराम लगा क्योंकि पहले कई बार जब अखबार के बने लिफ़ाफ़ों में सामान ख़रीदा जाता था तो उसे कैरी करना कभी कभी मुश्किल हो जाता था क्योंकि पैकेट फट जाता था और शायद इसीलिये जब प्लास्टिक के पैकेट आने लगे तो इस लिफ़ाफ़ा फटने की समस्या से छुटकारा मिला । ऐसा सबको लगा पर ये इतना हानिकारक हो सकता है ऐसा किसी ने सोचा नही होगा ।

वो कहते है ना कि जब जागो तभी सवेरा ।

तो अब फिर से पत्तल ,कुल्हड़ और दोने का इस्तेमाल शुरू करना चाहिये । फल और सब्ज़ी तथा राशन की दुकान वालों को अखबार से बने पैकेट इस्तेमाल करना चाहिये । और हम सबको भी एक बार फिर से कपड़े से बने झोले या बैग इस्तेमाल करना चाहिये । कम से कम कोशिश तो कर ही सकते है और बाद में यही कोशिश धीरे धीरे आदत बन जायेगी ।







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