जब अंडमान मे रहते हुए मजबूरी का एहसास होता है (२)जब अस्पताल बना घर
सुनामी के एक महीने बाद हम लोग पोर्ट ब्लेयर के गेस्ट हाउस मे शिफ्ट कर गए थे । और जिंदगी ढर्रे पर आ रही थी की १५ फरवरी को जब हमने इलाहाबाद फ़ोन किया तो पता चला सोमनाथ (नौकर)ने फ़ोन पर बताया की सब लोग lucknow गए है माताजी की तबियत ख़राब हो गई है। तो हमे लगा की शायद मामाजी की तबियत ज्यादा ख़राब हो गयी है क्यूंकि २-३- दिन पहले जब मम्मी से बात हुई थी तब वो luckmow मामा को देखने अस्पताल गई थी। और १४ को इलाहाबाद वापिस आई थी।ये सोचकर जब मम्मी को उनके मोबाइल पर कॉल किया तो कोई जवाब नही मिलने पर भइया को फ़ोन किया तो भइया ने कहा की वो lucknow पहुंचकर हमे फ़ोन करेंगे।तो हमने अपनी lucknow और कानपुर वाली दीदी को फ़ोन किया पर उन्हें भी कुछ भी पापा या भइया ने नही बताया था। बस उन्हें अस्पताल पहुँचने के लिए कह दिया था।
उस दिन रात मे भइया ने फ़ोन किया और बताया की मम्मी lucknow के पी.जी.आई.अस्पताल के आई.सी.यू.मे भरती है । ये सुनकर तो बस आंखों से आंसू गिरने लगे।और हमने कहा की हम कल ही lucknow पहुँचते है तो पापा ने कहा की तुम परेशान मत हो ,इतनी दूर से तुम कहाँ भागी-भागी आओगी अभी हम सब है यहाँ । और जैसी मम्मी की तबियत होगी तुम्हे बताते रहेंगे। भइया ने भी यही कहा की तुम परेशान मत हो ।पर जब १८ फरवरी को पापा से बात की तब पापा बहुत ही परेशान लग रहे थे और उन्होंने ज्यादा बात नही की बस ये बताया की मम्मी को सी.सी.एम.(critical care manegement)मे शिफ्ट कर दिया है।और मम्मी को सप्पोर्ट सिस्टम पर कर दिया गया है।इससे पहले इस सी.सी.एम के बारे मे नही सुना था ।
ये सुनकर तो बस पैरों तले जमीन ही निकल गई और अगली सुबह की बुकिंग करवाकर बेटे और पतिदेव को अंडमान मे छोड़कर lucknow पहुंचे और सीधे मम्मी से मिलने गए । मम्मी से मिलने से पहले पापा ने बताया कि १४ कि शाम ही मम्मी मामा को देख कर वापिस इलाहाबाद लौटी थी और रात मे ही अचानक उन्हें साँस लेने मे तकलीफ होने लगी और सारी रात ऐसे ही कटी अगले दिन तबियत और ख़राब होने लगी तो उन्हें lucknow ले कर आ गए थे। सी.सी.एम कि तरफ़ जाते हुए पापा हमे समझा रहे थे कि मम्मी को देख कर घबराना नही तो हमे समझ नही आया और जब हम सी.सी.एम के दरवाजे पर पहुंचे तो वहां ४ और मरीज थे पर हमे अपनी मम्मी कहीं नही दिख रही थी तो पापा से हमने कहा कि मम्मी कहाँ है और जब हम उनके पास गए तो मम्मी को चारों और से मशीनों से घिरा और मुंह मे वैन्तिलेटर लगा हुआ देख कर बड़ी जोर से हमे रोना आया और आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे। तभी पापा ने हमारे कंधे पर हाथ रक्खा और और हम वहां से रोते हुए बाहर आ गए।
पापा ने अस्पताल मे उसी फ्लोर पर एक प्राइवेट रूम ले लिया था और ये रूम तीन महीने तक हम लोगों का घर रहा। रूम मे पापा ने बताया कि मम्मी को चेस्ट इन्फेक्शन की वजह से ये सब हुआ है।और अभी मम्मी कोमा जैसी हालत मे है।और जब मम्मी को होश आएगा तो उन्हें इन दस दिनों मे क्या हुआ है कुछ भी याद नही होगा। और डॉक्टर कहते है कि इनसे बात करना चाहिए क्यूंकि मम्मी सुन तो सकती है पर जवाब नही दे सकती है।और ऐसे मरीजों को मोटिवेशन की जरुरत रहती है। रोज हम सभी जाकर उनसे बात करते और उन्हें कहते कि वो ठीक हो जायेंगी । उस अस्पताल मे हम लोगों को किसी भी समय अन्दर मम्मी के पास जाने की इजाजत डॉक्टर ने दे दी थी।तीन महीने मे हम सब वहां की सभी मशीनों को पढ़ना सीख गए थे ।
दिन भर हम सब भाई-बहन और पापा अस्पताल मे रहते और रात मे हम और हमारी डॉक्टर दीदी अस्पताल मे रुकते।हमारी दीदी के डॉक्टर होने की वजह से हम लोगों को मम्मी की सही स्थिति के बारे मे पता चलता रहता था। २३ फरवरी को जब रात मे हम लोग मम्मी को देखने गए तो मम्मी को होश आ रहा था दीदी ने तुरंत पापा को फ़ोन किया और सब लोग अस्पताल आ गए।और मम्मी ऐसे उठी मानो नींद से जागी हो।और हम सभी को वहां देखकर और ये सुनकर की वो lucknow मे है उन्हें समझ नही आया की क्या वो इतनी ज्यादा बीमार हो गई थी। सभी ने इसे एक तरह का चमत्कार ही माना। हम सभी खुश थे की मम्मी ठीक हो गई है। मम्मी ने भी बस इलाहाबाद जाने की जिद की की अब जब वो ठीक है तो अस्पताल मे क्यों रहे ।और होली मे इस बार सब लोग इलाहाबाद मे ही रहेंगे। डॉक्टरों को मम्मी बताती की हमारी ये बेटी अंडमान मे थी और वहां सुनामी आया था।और हम मम्मी से कहते की हम एक सुनामी देख चुके है अब और नही देखना चाहते है। तो मम्मी प्यार से हाथ फेर देती।
उन तीन महीनों मे हम लोगो को ना जाने कितने ही मेडिकल टर्म के बारे मे पता चला।ना जाने क्या-क्या नही देखा. मौत को इतने करीब से हम सबने सी.सी.एम मे रहते हुए देखा। रोज ही किसी ना किसी की डेथ होती पर भगवान् ने हम सबमे एक शक्ति सी भर दी थी कि हम उन हालातों मे भी अपना संयम बनाए रख सके।उन तीन महीनों मे हम सबके पतियों और बच्चों ने भी बहुत साथ दिया।
कभी १० दिन के लिए मम्मी ठीक होती और फ़िर वापिस बीमार हो जाती और इसी बीच उनके शरीर ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया। एक दिन सुबह-सुबह जब वो नाश्ता कर रही थी तब अचानक ही वो बोली की पता नही भगवान् मेरी इतनी परीक्षा क्यों ले रहा है। (मम्मी बहुत ज्यादा पूजा-पाठ करती थी)उन तीन महीनों मे जब कभी मम्मी दस दिन के लिए ठीक होती तो हम सबका ध्यान रखने लगती।जब हम सबके बच्चे उन्हें मिलने जाते तो वो भाभी को कहती कि बच्चे आए है उनकी पसंद का खाना बनवाना।पापा का ध्यान रखा करो। पापा हमारी बीमारी से घबरा गए है। पापा जो जल्दी नही घबराते थे वो मम्मी की ऐसी हालत देख कर बहुत परेशान रहते थे। मम्मी के ठीक होने के लिए हम सबने वो सब कुछ किया पूजा पाठ,दान-पुण्य,पंडित ज्योतिषी पर भगवान् ने हम सबकी नही सुनी।
मम्मी जब भी ठीक होती तो इलाहाबाद चलने को कहती थीइसलिए जब उन्हें कार्डिएक अर्रेस्ट हुआ तो हम सब मम्मी को एम्बुलंस मे इलाहाबाद ले आए जहाँ अपने घर मे एक दिन मम्मी रही और २३ मई को वो हम सबको छोड़ कर चली गई।हम सबको बस ये संतोष था की हम लोग उनके आखिरी वक्त मे उन्हें इलाहाबाद ले आए थे और अपने आखिरी समय मे वो अपने परिवार वालों के बीच थी। हालंकि मम्मी हम लोगों को कोई रेस्पोंस नही दे रही थी पर शायद उन्हें पता चल गया था की वो अपने घर आ गई है क्यूंकि उनके चेहरे पर एक अजीब सी शान्ति थी।
हमारी सुनामी जो २६ दिसम्बर २००४ मे शुरू हुई थी वो २३ मई २००५ को ख़त्म हुई । आज मम्मी को गए तीन साल हो गए है ।एक ऐसा खालीपन है जिसे कभी भी भरा नही जा सकता है।
उस दिन रात मे भइया ने फ़ोन किया और बताया की मम्मी lucknow के पी.जी.आई.अस्पताल के आई.सी.यू.मे भरती है । ये सुनकर तो बस आंखों से आंसू गिरने लगे।और हमने कहा की हम कल ही lucknow पहुँचते है तो पापा ने कहा की तुम परेशान मत हो ,इतनी दूर से तुम कहाँ भागी-भागी आओगी अभी हम सब है यहाँ । और जैसी मम्मी की तबियत होगी तुम्हे बताते रहेंगे। भइया ने भी यही कहा की तुम परेशान मत हो ।पर जब १८ फरवरी को पापा से बात की तब पापा बहुत ही परेशान लग रहे थे और उन्होंने ज्यादा बात नही की बस ये बताया की मम्मी को सी.सी.एम.(critical care manegement)मे शिफ्ट कर दिया है।और मम्मी को सप्पोर्ट सिस्टम पर कर दिया गया है।इससे पहले इस सी.सी.एम के बारे मे नही सुना था ।
ये सुनकर तो बस पैरों तले जमीन ही निकल गई और अगली सुबह की बुकिंग करवाकर बेटे और पतिदेव को अंडमान मे छोड़कर lucknow पहुंचे और सीधे मम्मी से मिलने गए । मम्मी से मिलने से पहले पापा ने बताया कि १४ कि शाम ही मम्मी मामा को देख कर वापिस इलाहाबाद लौटी थी और रात मे ही अचानक उन्हें साँस लेने मे तकलीफ होने लगी और सारी रात ऐसे ही कटी अगले दिन तबियत और ख़राब होने लगी तो उन्हें lucknow ले कर आ गए थे। सी.सी.एम कि तरफ़ जाते हुए पापा हमे समझा रहे थे कि मम्मी को देख कर घबराना नही तो हमे समझ नही आया और जब हम सी.सी.एम के दरवाजे पर पहुंचे तो वहां ४ और मरीज थे पर हमे अपनी मम्मी कहीं नही दिख रही थी तो पापा से हमने कहा कि मम्मी कहाँ है और जब हम उनके पास गए तो मम्मी को चारों और से मशीनों से घिरा और मुंह मे वैन्तिलेटर लगा हुआ देख कर बड़ी जोर से हमे रोना आया और आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे। तभी पापा ने हमारे कंधे पर हाथ रक्खा और और हम वहां से रोते हुए बाहर आ गए।
पापा ने अस्पताल मे उसी फ्लोर पर एक प्राइवेट रूम ले लिया था और ये रूम तीन महीने तक हम लोगों का घर रहा। रूम मे पापा ने बताया कि मम्मी को चेस्ट इन्फेक्शन की वजह से ये सब हुआ है।और अभी मम्मी कोमा जैसी हालत मे है।और जब मम्मी को होश आएगा तो उन्हें इन दस दिनों मे क्या हुआ है कुछ भी याद नही होगा। और डॉक्टर कहते है कि इनसे बात करना चाहिए क्यूंकि मम्मी सुन तो सकती है पर जवाब नही दे सकती है।और ऐसे मरीजों को मोटिवेशन की जरुरत रहती है। रोज हम सभी जाकर उनसे बात करते और उन्हें कहते कि वो ठीक हो जायेंगी । उस अस्पताल मे हम लोगों को किसी भी समय अन्दर मम्मी के पास जाने की इजाजत डॉक्टर ने दे दी थी।तीन महीने मे हम सब वहां की सभी मशीनों को पढ़ना सीख गए थे ।
दिन भर हम सब भाई-बहन और पापा अस्पताल मे रहते और रात मे हम और हमारी डॉक्टर दीदी अस्पताल मे रुकते।हमारी दीदी के डॉक्टर होने की वजह से हम लोगों को मम्मी की सही स्थिति के बारे मे पता चलता रहता था। २३ फरवरी को जब रात मे हम लोग मम्मी को देखने गए तो मम्मी को होश आ रहा था दीदी ने तुरंत पापा को फ़ोन किया और सब लोग अस्पताल आ गए।और मम्मी ऐसे उठी मानो नींद से जागी हो।और हम सभी को वहां देखकर और ये सुनकर की वो lucknow मे है उन्हें समझ नही आया की क्या वो इतनी ज्यादा बीमार हो गई थी। सभी ने इसे एक तरह का चमत्कार ही माना। हम सभी खुश थे की मम्मी ठीक हो गई है। मम्मी ने भी बस इलाहाबाद जाने की जिद की की अब जब वो ठीक है तो अस्पताल मे क्यों रहे ।और होली मे इस बार सब लोग इलाहाबाद मे ही रहेंगे। डॉक्टरों को मम्मी बताती की हमारी ये बेटी अंडमान मे थी और वहां सुनामी आया था।और हम मम्मी से कहते की हम एक सुनामी देख चुके है अब और नही देखना चाहते है। तो मम्मी प्यार से हाथ फेर देती।
उन तीन महीनों मे हम लोगो को ना जाने कितने ही मेडिकल टर्म के बारे मे पता चला।ना जाने क्या-क्या नही देखा. मौत को इतने करीब से हम सबने सी.सी.एम मे रहते हुए देखा। रोज ही किसी ना किसी की डेथ होती पर भगवान् ने हम सबमे एक शक्ति सी भर दी थी कि हम उन हालातों मे भी अपना संयम बनाए रख सके।उन तीन महीनों मे हम सबके पतियों और बच्चों ने भी बहुत साथ दिया।
कभी १० दिन के लिए मम्मी ठीक होती और फ़िर वापिस बीमार हो जाती और इसी बीच उनके शरीर ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया। एक दिन सुबह-सुबह जब वो नाश्ता कर रही थी तब अचानक ही वो बोली की पता नही भगवान् मेरी इतनी परीक्षा क्यों ले रहा है। (मम्मी बहुत ज्यादा पूजा-पाठ करती थी)उन तीन महीनों मे जब कभी मम्मी दस दिन के लिए ठीक होती तो हम सबका ध्यान रखने लगती।जब हम सबके बच्चे उन्हें मिलने जाते तो वो भाभी को कहती कि बच्चे आए है उनकी पसंद का खाना बनवाना।पापा का ध्यान रखा करो। पापा हमारी बीमारी से घबरा गए है। पापा जो जल्दी नही घबराते थे वो मम्मी की ऐसी हालत देख कर बहुत परेशान रहते थे। मम्मी के ठीक होने के लिए हम सबने वो सब कुछ किया पूजा पाठ,दान-पुण्य,पंडित ज्योतिषी पर भगवान् ने हम सबकी नही सुनी।
मम्मी जब भी ठीक होती तो इलाहाबाद चलने को कहती थीइसलिए जब उन्हें कार्डिएक अर्रेस्ट हुआ तो हम सब मम्मी को एम्बुलंस मे इलाहाबाद ले आए जहाँ अपने घर मे एक दिन मम्मी रही और २३ मई को वो हम सबको छोड़ कर चली गई।हम सबको बस ये संतोष था की हम लोग उनके आखिरी वक्त मे उन्हें इलाहाबाद ले आए थे और अपने आखिरी समय मे वो अपने परिवार वालों के बीच थी। हालंकि मम्मी हम लोगों को कोई रेस्पोंस नही दे रही थी पर शायद उन्हें पता चल गया था की वो अपने घर आ गई है क्यूंकि उनके चेहरे पर एक अजीब सी शान्ति थी।
हमारी सुनामी जो २६ दिसम्बर २००४ मे शुरू हुई थी वो २३ मई २००५ को ख़त्म हुई । आज मम्मी को गए तीन साल हो गए है ।एक ऐसा खालीपन है जिसे कभी भी भरा नही जा सकता है।
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