गोवा मे परशुराम का मन्दिर
ऐसी मान्यता है की पहले गोवा कहीं exist ही नही करता था । चारों और सिर्फ़ पानी और बहुत दूर कहीं पर जमीन थी। sayadris (सयाद्री ) के पहाडों मे जमादाग्नी ऋषि (जो की एक ब्राह्मण ) अपनी पत्नी रेनुका (जो की एक क्षत्रिय थी ) और ४ पुत्रों के साथ रहते थे। परशुराम इन्ही ऋषि के सबसे छोटे पुत्र थे। एक दिन रेनुका जब नदी मे नहा रही थी तभी उन्हें एक क्षत्रिय राजा ने देख लिया था और वो राजा वहां रुक गया था और ऋषि ये सब देख कर क्रोधित हो गए थे और इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों से अपनी माँ का वध करने को कहा पर उनके तीनो बड़े पुत्रों ने मना कर दिया पर परशुराम ने अपनी माँ का वध कर दिया। इस पर खुश होकर ऋषि ने परशुराम से वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने अपनी माँ को जीवित करने का वरदान माँगा था।
एक दिन जब ऋषि ध्यान मग्न थे तभी क्षत्रियों ने ऋषि का वध कर दिया जिससे क्रोधित होकर परशुराम ने क्षत्रियों का अंत करने की ठानी और उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध किया और विजय पाई पर इस विजय से वो खुश नही थे क्यूंकि बदले से उनके मृत पिता जीवित नही हो सकते थे। इसलिए परशुराम ने वो जमीन एक ब्राह्मण को भेंट कर दी। एक दिन क्षत्रिय ( सारे क्षत्रिय मरे नही थे)उस ब्राहमण के पास आए और कहा की वो परशुराम को वहां से जाने के लिए कहे वरना परशुराम उन सबको मार देंगे।
ये सुनकर वो ब्राह्मण परशुराम के पास गए और कहा की वो इस भेंट की हुई भूमि पर नही रह सकते क्यूंकि दान करने के बाद भी परशुराम वहां रह रहे है अर्थात जमीन पर अब भी परशुराम का अधिकार है। इस पर परशुराम ने चारों ओर जमीन को घेरे हुए पानी या समुन्द्र को देखा और समुन्द्र को आदेश दिया की वो वहां से पीछे हट जाए क्यूंकि उन्हें जमीन चाहिए थी।पर समुन्द्र पीछे नही हटा इस पर उन्होंने फ़िर एक बार समुन्द्र को आदेश दिया और तब अचानक एक बड़ी लहर उठी और समुन्द्र देवता वरुण प्रकट हुए और उन्होंने परशुराम से कहा की वो पानी मे तीर चलाये और जहाँ पर उनका तीर पानी को छुएगा वहीं जमीन निकल आएगी।और इसके लिए तीर जितनी दूरी तय करेगा वो सारी जमीन उनकी होगी । ये सुनकर परशुराम भागकर सयाद्री के ऊँचे पहाड़ पर गए और वहां से तीर चलाया और उनके तीर ने एक लम्बी दूरी तय की और तीर पानी मे लगा। तीर ने जैसे ही पानी को छुआ कि लहरें अलग हो गई और वहां पर जमीन निकल आई। और इस तरह से गोवा का जन्म हुआ।
गोवा आने के बाद जब से ये पता चला था की यहां पर परशुराम जी का मन्दिर है पर किसी ना किसी वजह से हम देखने नही जा पा रहे थे।वैसे २००७ मे जब हमने ब्लॉगिंग की शुरुआत की थी तब उन्मुक्त जी ने अपने एक चिट्ठे पर अपनी गोवा यात्रा का वर्णन किया था जिसमे परशुराम मन्दिर का भी उल्लेख किया था ।पर आज हमे उन्मुक्त जी की वो पोस्ट नही मिल रही है लिंक देने के लिए। खैर पिछले शनिवार को हमने ठान ही लिया था की इस छुट्टी के दिन तो हम जरुर ही मन्दिर जायेंगे दर्शन के लिए।अब ये भी कोई बात हुई की हम गोवा मे रहें और ये मन्दिर ना देखे। सो जब जब ठान ही लिया था तो प्रोग्राम बना की सुबह ९-९.३० तक निकलेंगे जिससे साढ़े ग्यारह बजे तक मन्दिर पहुँच जाए। क्यूंकि सारे मन्दिर १२ बजे से ४ बजे तक बंद रहते है।
परशुराम मन्दिर पंजिम से ८०-८५ कि.मी. की दूरी पर है। कनकोना से आगे पेंगिन (Painguinim) नाम का एक छोटा सा गाँव है और इसी गाँव मे ये मन्दिर है। जैसे ही मुख्य सड़क से मुड़ते है कि ये मन्दिर दिखाई देता है। ये मन्दिर छोटा सा है पर इसे मन्दिर मे इतनी अधिक शान्ति थी कि मन अपने आप ही शांत हो जाता है।वैसे भी हम लोग भरी दोपहरी मे पहुंचे थे और वो भी शनिवार को।होली के तीसरे दिन यहां पर बहुत बड़ी पूजा होती है और जात्रा भी निकली जाती है।लोग दूर-दूर से इस जात्रा को देखने आते है।
इसे मन्दिर मे जैसे ही घुसते है तो दाहिनी तरफ़ परशुराम जी की मूर्ति के दर्शन होते है ।और जब मन्दिर के बाई तरफ़ के द्वार मे प्रवेश करते है तो भगवान् राम के दर्शन होते है। मन्दिर मे परशुराम और भगवान् राम की मूर्ति आमने सामने लगी हुई है।माने एक छोर पर राम जी और दूसरे छोर पर परशुराम जी की मूर्ति बनी हुई है।
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि ये मन्दिर साढ़े सात सौ साल पुराना है। और यहां पर अक्सर लोग पंच रात्री के लिए आते है। हमारे पूछने पर कि पंच रात्री क्या होती है ।
तो पुजारी ने बताया कि लोग यहां आकर पाँच दिन रहते है और पूजा अनुष्ठान करते है। चूँकि परशुराम जी का दिन सोमवार माना जाता है इसलिए लोग गुरूवार को वहां जाते है और मन्दिर प्रांगन मे बने कमरों मे रुकते है और सोमवार की पूजा करके अपने घर जाते है।
चूँकि हम लोग दोपहर मे पहुंचे थे और १२ बजे की आरती हो रही थी तो हम ने आरती देखी।और मन्दिर की परिक्रमा करके बाहर आ गए। मन्दिर के पीछे की तरफ़ एक पोंड है जहाँ पर नहाने की सख्त मनाही है। पर फोटो खींचने की नही । :)
Comments
जय परशुराम!!
बहुत बढिया प्रस्तुति
दीपक भारतदीप
ममता जी !
भगवान परशुराम को,
मेरे दूर से ही नमन !
-- लावण्या
भगवान परषुराम के साथ भारतीय माइथॉलजी और मान्यताओं ने पूरा न्याय नहीं किया। उनका दर्जा मेरी नजरों में आम मान्यताओं से कहीं ऊंचा है।
मैंने भी यह मंदिर देखा तो अवश्य था किंतु
इतना विस्तृत इतिहास नहीं पता था । चलो
मेरे विश्वकोश में यह पन्ना भी जुड़ गया ।
गवेषणापरक जानकारी
बधाई
Vishnu ke pehle teen avatar pashu roop mein mane jate hain: pratham avatar Matsyaraj Magarmachha, yani Graha, kahlaye, doosre Koormavatar, teesre Varahvatar, chauthe Narasinhavatar, athva adhe manav aur adhe sinha roop mein.
Poorna manav roop mein uttarottar shaktishali, Panchve Vaman (chhote kad ke nihatthe kintu shaktishali) aur chhate Parasruram (kewal parasu ke roop mein shastra-dhari), ‘Brahmin’ kahlaye (Brahma-Vishnu- Mahesha, Trimurty Shiva ke ek ansha). Jabki saptam, suryavanshi, tapasvi, dhanurdhar Ram mane gaye, jinke teer surya-kiran saman sampoorna sagar ko sukhane ki kshamta rakhte the, aur ashtam avatar, swayam Vishnu saman sudershan-chakra-dhari Shri Krishna jo Surya aur Chandra dono ko shakti pradan karte hein. We Ma Devki ki ashtam bhagyawan santan ke roop mein Kansa ke hathon bach Gokul-Vrindaban mein raas rachaye, aur makhan bhi churaye :-)
JC Joshi
गिरिश नाडकर्णी
9422575679
Goa