उफ़ ये रीमिक्स

वैसे रीमिक्स का चलन कई साल पहले शुरू हो गया था पर आज कल तो कोई भी गाना हो चाहे नया या पुराना हर गाने का रीमिक्स सुनने और देखने को मिल जाएगा। पुराने गानों की तो ऐसी मटियामेट करते है की समझ नही आता की ऐसे रीमिक्स गाने बनाने वालों का करना चाहिऐ। एक से एक अच्छे गानों का जो बुरा हाल करते है की बस पूछिये मत। और उस पर डान्स ऐसा की जिसका कोई जवाब ही नही। आज कल तो कोई भी गाना हो डान्स एक ही स्टाइल का होता है। कई बार m.t.v.पर भी ऐसे गाने दिखाए जाते है।


सबसे पहले पर्दा है पर्दा से शुरुआत हुई या शायद उससे भी पहले क्यूंकि गुलशन कुमार के ज़माने से ये चल रहा है शुरू मे तो फिर भी थोडा बहुत गाने की इज्जत की जाती थी पर अब तो भगवन बचाए। मिसाल के तौर पर हम कुछ गानों का जिक्र यहाँ करना चाहेंगे -

१.एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा।
२.बदन पे सितारे लपेटे हुए।
३.हम तो मुहब्बत करेगा।

और ऐसे ही अनेकों गाने जो गायकों के गाने के अंदाज से जाने जाते थे वो आज की पीढ़ी के लिए अब ऐसे बेद्गंगे डान्स की बदौलत जाने जाते है। अरे अगर डान्स विडियो बनाना ही है तो कुछ नया तो करो। आज के ये रीमिक्स गाने वाले मेहनत तो करना ही नही चाहते ।इनके लिए ये कितना आसान है की एक पुराना गाना लिया और डूम-डाम करके अपना गाना बना लिया । इनके सारे गाने एक से हो जाते है चाहे वो रोमांटिक गाना हो या sad song हो या फिर मस्ती भरा कोई गाना हो क्यूंकि डान्स मे हमेशा ८-१० लडकियां एक ही तरह के डान्स स्टेप करती दिखती है।



एक लडकी ...वाला गाना इतने सुन्दर तरीके से फिल्म मे दिखाया गया है और इस रीमिक्स विडियो मे एक लडकी की जगह १० लडकियां दिखा कर गा रहे है एक लडकी को देखा ...ये पता ही नही चलता है कि किस लडकी के लिए गा रहे है।


अब ऐसे रीमिक्स गायकों का क्या किया जाये?

Comments

Udan Tashtari said…
:) ट्रेंड के साथ बहने लगें या किनारे खड़े होकर आँख बंद कर लें. पसंद-नापसंद के दौर तो चलते रहेंगे. :)
सुनों तो अच्‍छा न सुनो तो और भी अच्छा :)
Yunus Khan said…
भारत में जिस तरह रीमिक्‍स के नाम पर संगीत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है मेरी राय में वो सही नहीं है । कम से कम उन गीतों को तो ये लोग बख्‍श दें, जिन्‍हें हम अजीमुश्‍शान मानते हैं । पाकीजा या मुगले आजम के गीत । या ये समझ लीजिये कि नौशाद, खैयाम या ओ पी नैयर के गीत । इन गानों की पवित्रता को भंग किया जा रहा है ।
मैं और मेरे खुराफाती मित्र गण आई. आई. टी. के छात्रावास के दिनों में ऐसे ही काम किया करते थे - यानि कि हिन्दी गानों की हत्या. पर हम लोगों का ऐसा सौभाग्य न था कि कोई हमारे रि-मिक्सों का कैसेट बनाता (उस समय सी.डी. नहीं हुआ करती थी.) वैसे भी रिमिक्स और आज कल के 'फिल्मी' गीतों के स्तर में कोई खास अंतर नहीं है: http://lakhnawi.blogspot.com/2007/01/blog-post.html
रीमिक्‍स सुनो मत,खरीदो मत,देखो मत,जिस चेनल पर चले उसे बन्द कर दे.मे खुद अच्छा सुनता हु, वर्ना नही,मेरे बच्चे भी रीमिक्‍स पसन्द नही करते,वेसे रीमिक्‍स कपूत ही बनते हे,पूत तो मा बाप से मेहनत करना सीखते हे.
Manish Kumar said…
टी वी एक ऐसा माध्यम है जहाँ गीत के साथ विसुअल अपील देना आवश्यक है । अब सबसे आसान तरीका वही है कि वेस्टर्न अंदाज में दस बारह खूबसूरत बालाओं को नचा लो । मेहनत भी कम और दर्शक वर्ग भी अच्छा खासा !
इसका इलाज बस एक है इन्हें नजरअंदाज कर अपनी पसंद का संगीत खरीदें और उसे सुनें।
RE-MIX ke bare me buri baton ki koi intiha nahi hai aur unme se kuchh yahan kah bhi di gai hain. albatta ek achhi bat iske bare me yah kahi ja sakti hai ki isase nai generation ke kaan me kuchh sureele geeton ki dhun pad rahi hai. purani cheezen isi process me classic banti hain. hindi ganon ki re-mix sunane wale thodi paki umar me lautkar jab inhi purane ganon ka original sunenge to ve inki kadr shayad hamse bhi jyada karenge. hamari pidhi ke liye sahgal aur devika rani ka koi vajud nahi raha lekin abhi javan ho rahi pidhi ke liye- aur shayad unke bacchon ke liye bhi- inhi re-mix ki badaulat rafi,lata, kishor aur asha ka vajud ta-umr bana rahega.
mamta said…
चंद्रभूष्ण जी हम आपसे सहमत नही है क्यूंकि रीमिक्स गाने ज्यादातर टी.वी या पार्टी मे ही बजते है और रही बात रफी,लता जी के गानों की तो रीमिक्स मे सिंगर नए होते है जो ओरिजनल के बराबर पहुंच ही नही सकते है। और रेडियो पर तो हमेशा ही ओरिजनल गाने ही बजते है।

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