उफ़ ये गरमी
इस साल चुंकि हम गोवा मे है इसलिये यहाँ की गरमी का ही हाल बता सकते है। यहाँ पर कोस्तेल एरिया होने की वजह से जबर्दस्त गरमी पड़ती है। ऐसा नही है की बाक़ी सारे देश मे मौसम बड़ा ही सुहाना है पर गोवा उफ़ ।
आजकल तो शायद सभी जगह मौसम मे कुछ बदलाव सा आने लगा है। दिल्ली मे तो जितनी ज्यादा ठंड पड़ती है उतनी ही गरमी भी पड़ती है। अभी ३-४ दिन पहले टी.वी. मे दिखा रहे थे की दिल्ली मे अभी से पारा ४२ डिग्री पहुंच रहा है। और भोपाल के बारे मे भी बताया जा रहा था की वहां करीब १० साल बाद इतनी ज्यादा गरमी पड़ रही है। सभी जगह गरमी का ऐसा ही हाल है।
पर यहाँ गोवा मे तो बुरा हाल है। अजी बुरा हाल इसलिये की इस गरमी की वजह से ना तो आप कहीँ बाहर निकल सकते है और ना ही कहीँ घूम-फिर सकते है।जो लोग इस गरमी और धूप मे घूमते है हम उनकी सहनशक्ति की दाद देते है। a.c.मे रहने से तो और भी मुसीबत है क्यूंकि अगर a.c.मे रहने के बाद धूप और गरमी मे घर से बाहर निकलते है तो बीमार भी पड़ जाते। अजी हम यूं ही नही कह रहे है भुक्तभोगी है । और गरमी मे खांसी-जुखाम हो जाये तो मुसीबत ही समझिये। और उमस इतनी कि कुछ मत पूछिये ।
वैसे यहाँ का तापमान २८-३० डिगरी ही है पर उमस की वजह से ही सारी परेशानी होती है। और उस पर रोज सुबह बादल भी आ जाते है ,पर बरसते नही है। अंडमान मे भी गरमी ज्यादा होती है पर वहां बारिश हो जाती है जिस से गरमी का असर कुछ कम हो जाता है।
गरमी से छुटकारा पाने के लिए अगर आप नीबू पानी पिए या तरबूज खाए या बेल ,फालसे , तरबूज का शरबत पीते है तब कहीँ जाकर गरमी से थोड़ी देर को राहत मिल जाती है।
पहले तो रात मे घर की छतों पर सोया जाता था। पर आजकल तो एक तो घरों मे छतें नही होती है और दूसरे a.c की वजह से और तीसरे डर की वजह से। पर वो भी क्या दिन थे। इलाहाबाद मे हम लोगों के घर की छत पर पहले पानी डाला जाता था छत को ठण्डा करने के लिए । फिर एक पंक्ति मे आठ खाटें बिछती थी और सब पर सफ़ेद चादर और सफ़ेद मच्छेर दानी ,भई मच्छरों से बचने के लिए और रात मे जो गप्प होती थी वो मजा आज कहां मिल सकता है।
आजकल तो शायद सभी जगह मौसम मे कुछ बदलाव सा आने लगा है। दिल्ली मे तो जितनी ज्यादा ठंड पड़ती है उतनी ही गरमी भी पड़ती है। अभी ३-४ दिन पहले टी.वी. मे दिखा रहे थे की दिल्ली मे अभी से पारा ४२ डिग्री पहुंच रहा है। और भोपाल के बारे मे भी बताया जा रहा था की वहां करीब १० साल बाद इतनी ज्यादा गरमी पड़ रही है। सभी जगह गरमी का ऐसा ही हाल है।
पर यहाँ गोवा मे तो बुरा हाल है। अजी बुरा हाल इसलिये की इस गरमी की वजह से ना तो आप कहीँ बाहर निकल सकते है और ना ही कहीँ घूम-फिर सकते है।जो लोग इस गरमी और धूप मे घूमते है हम उनकी सहनशक्ति की दाद देते है। a.c.मे रहने से तो और भी मुसीबत है क्यूंकि अगर a.c.मे रहने के बाद धूप और गरमी मे घर से बाहर निकलते है तो बीमार भी पड़ जाते। अजी हम यूं ही नही कह रहे है भुक्तभोगी है । और गरमी मे खांसी-जुखाम हो जाये तो मुसीबत ही समझिये। और उमस इतनी कि कुछ मत पूछिये ।
वैसे यहाँ का तापमान २८-३० डिगरी ही है पर उमस की वजह से ही सारी परेशानी होती है। और उस पर रोज सुबह बादल भी आ जाते है ,पर बरसते नही है। अंडमान मे भी गरमी ज्यादा होती है पर वहां बारिश हो जाती है जिस से गरमी का असर कुछ कम हो जाता है।
गरमी से छुटकारा पाने के लिए अगर आप नीबू पानी पिए या तरबूज खाए या बेल ,फालसे , तरबूज का शरबत पीते है तब कहीँ जाकर गरमी से थोड़ी देर को राहत मिल जाती है।
पहले तो रात मे घर की छतों पर सोया जाता था। पर आजकल तो एक तो घरों मे छतें नही होती है और दूसरे a.c की वजह से और तीसरे डर की वजह से। पर वो भी क्या दिन थे। इलाहाबाद मे हम लोगों के घर की छत पर पहले पानी डाला जाता था छत को ठण्डा करने के लिए । फिर एक पंक्ति मे आठ खाटें बिछती थी और सब पर सफ़ेद चादर और सफ़ेद मच्छेर दानी ,भई मच्छरों से बचने के लिए और रात मे जो गप्प होती थी वो मजा आज कहां मिल सकता है।
Comments
बाहर निकलो तो गर्म हवा ऐसे चुभती है मानों हाड़ तक पहुंचना चाहती हो।
आइए धरती को बढ़ती ग्लोबल वार्मिङ्ग से बचाने हेतु मिलकर कुछ उपाय करें। हरएक कम से कम पीपल के सौ वृक्ष लगाएँ और बड़ा होने तक (कम से कम एक वर्ष तक) रोज पानी डालें, तो आगामी पीढ़ी को शायद हम ग्लोबल वार्मिंग से बचा पाएँगे।
घुघूती बासूती
बस यहीं तो हमारे शहर राँची की खासियत है कि मई के महिने में भी बिना एक बूँद पसीना बहाये ऐश कर रहे हैं । छत की छोड़िये रात को पंखे के नीचे चादर ओढ़ना अनिवार्य है । वैसे दिन में तापमान ३८ के आसपास है पर उमस का नामो निशां नहीं ।
मुझे तो जान कर आश्चर्य भी हुआ कि गरमी के समय में भी पर्यटक गोवा जाते हैं।
गरमी से छुटकारा पाने के लिए अगर आप नीबू पानी पिए या तरबूज खाए या बेल ,फालसे , तरबूज का शरबत पीते है तब कहीँ जाकर गरमी से थोड़ी देर को राहत मिल जाती है।
क्या बेल व फालसे गोवा में भी उपलब्ध व प्रचलित होते हैं?
गरमियों में छत पर सोना वातानुकूलित कक्ष की अपेक्षा कहीं अधिक आनन्ददायक और सुखदायी निद्रा देता था। वह तो याद कर आज भी, अपने ही द्वारा अनुभूत उस सुख से ईर्ष्या होती है। अब लगता है कि शहरों में तो भावी पीढ़ियों को इस अनुभूति से वंचित रहना पड़ेगा, आज की जीवन-शैली और अन्यान्य विवशताओं अथवा अपनी आदतों के चलते!