मौत के गड्ढे या .....

पिछले ६-७ महीनों मे कई बच्चे गहरे गड्ढों मे गिर चुके है। जो किस्मत वाले थे उन्हें बचा लिया गया था पर कुछ बच्चों को नही बचाया जा सका। करीब ६-७ महीने पहले सबसे पहले प्रिन्स नाम के एक ३-४ साल के छोटे बच्चे के गड्ढे मे गिरने की खबर सभी न्यूज़ चैनलों पर दिखायी गयी थी ।

प्रिन्स नाम का ये बच्चा जहाँ बोरेवेल के लिए गड्ढा खोदा जा रहा था वही खेल रहा था और अचानक ही वो ५० फ़ीट गहरे गड्ढे मे गिर गया था। फिर शुरू हुआ उसे बचाने का काम।उस गड्ढे के बराबर मे एक और गड्ढा खोदा गया । प्रिन्स को गड्ढे से बहार निकलने के लिए सेना की मदद भी ली गयी और करीब ५० घंटे बाद उसे सही सलामत बाहर निकला गया। कुछ नेता लोग भी वहां पहुंच गए थे ,जैसे ही सेना के जवान प्रिन्स को बाहर लेकर आये उनमे जैसे होड़ सी लग गयी प्रिन्स को गोद मे उठाने की। हर आदमी उसे गोद मे उठाना चाहता था पर इस सबमे लोग प्रिन्स की माँ को ही भूल गए थे। आख़िर मे माँ की गोद मे प्रिन्स को दिया गया था।

इस घटना के बाद तो जैसे बच्चों का गड्ढे मे गिरना आम बात सी हो गयी । हर १०-१५ दिन मे कोई ना कोई बच्चा गहरे गड्ढे मे गिर जाता है । अभी हाल ही मे रायचूर मे एक बच्चा करीब ३५ फ़ीट गहरे गड्ढे मे गिर गया था पर वो प्रिन्स की तरह खुशकिस्मत नही था । करीब ५० घंटे की कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नही जा सका था।

ये गड्ढे जिस विभाग के लोग खोदते है उन्हें इतने सारे हादसों के बाद कम से कम इन गड्ढों के चारों ओर कुछ घेरा डालना चाहिऐ और कुछ लिखकर या कोई खतरे का निशान बनाना चाहिऐ जिससे इस तरह के हादसों को रोका जा सके जिसमे नन्हे मासूमों की जान चली जाती है।

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बड़े नलकूप बैठाकर पानी के लिए खोदे जाते हैं ये गड्ढे, निजी व्यक्तियों/संस्थाओं द्वारा। इन्हें खोदने के पहले ही चारों ओर सुरक्षा चहारदीवारी बनाना कानून अनिवार्य किया जाना चाहिए। क्योंकि आजकल बिना विभागीय अनुमति के नलकूप भी नहीं खोदे जा सकते।

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