गुलाबो सिताबो ( अनलॉक २.० ) सातवाँ दिन

कल हमने अमिताभ बच्चन और आयुषमान खुराना की गुलाबों सिताबो देखी । सुजीत सरकार ने बनाई है ।

वैसे इस पिकचर को देखते हुये हमें अपने पुश्तैनी चार मंज़िला घर जो कि बनारस के नदेसर में है उसकी बहुत याद आई क्योंकि वहाँ भी कुछ ऐसे ही किरायेदार रहते है । 😁

खैर चलिये फ़िल्म की बात करते है ।

फ़िल्म की कहानी बहुत ही सिम्पल है पूरी फ़िल्म एक हवेली फ़ातिमा महल के लिये है । औरैया फ़िल्म में लखनऊ शहर दिखाया गया है । इसमें अमिताभ बच्चन मिर्ज़ा के रोल में और आयुषमान बाँके के रोल में है ।


कैसे मिरज़ा जो मालिक है भी और नहीं भी और बाँके जो किरायेदार है । कैसे दोनों की नोक झोंक चलती रहती है हर छोटी बडी बात के लिये । 😁

अमिताभ बच्चन ने तो हमेशा की तरह बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है । और मिरज़ा के खड़ूस किरदार को बख़ूबी निभाया है । पर पूरी फ़िल्म में जिस तरह से वो एक अजीब से स्टाइल से चलते है वो कमाल का है । घुटने थोडा सा मोड़कर चलना अमिताभ बच्चन जैसे लम्बे क़द के व्यक्ति कि लिये मुश्किल जरूर रहा होगा ।


आयुषमान खुराना को तो देखकर ऐसा लग रहा था मानो वो पक्का यू.पी का ही रहने वाला हो । चाल ढाल ,कपड़े पहनने का स्टाइल वो चाहे शर्ट हो या टी शर्ट और चौड़ी मोहरी का पैजामा जो अब कम ही लोग पहनते होगें ।

और बोलने में सा शब्द को एक अजीब सी आवाज़ के साथ बोलना । और बडा ही अंटाईडी सा लुक । सब कमाल का ।

और इन सबमें एक और कलाकार जिसने कमाल की एक्टिंग की है वो है फ़ारूख ज़फ़र यानि बेगम । जो आती तो कम देर के लिये थी पर उतनें में ही कमाल कर जाती थी ।

इनके अलावा पुरातत्व विभाग वाले के रोल में विजय राज और वक़ील के रोल मे ब्रिजेन्द्र काला , गुडडो के रोल में सृष्टि श्रीवास्तव और बाक़ी सभी कलाकारों ने भी बढ़िया एक्टिंग की है ।

वैसे फ़िल्म के डायलॉग बहुत ही सटीक और मज़ेदार है जिनकी वजह से फ़िल्म और मनोरंजक हो जाती है ।

फ़िल्म का अंत बहुत ही रोचक है । अब अंत तो हम नहीं बताने वाले क्योंकि जिन्होंने अभी फ़िल्म नहीं देखी है उनका मजा ख़राब हो जायेगा । 😂

वैसे क्या ज़माना आ गया है कि अब घर पर ही नई फ़िल्म देखनी पड़ रही है । जो अच्छा भी है और बुरा भी है । 🤓

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