slumdog millionaire देख ही ली और जाना कि रहमान .....
इतने दिन से प्रोग्राम बनाते -बनाते और सोचते-सोचते आख़िर कल हमने ये फ़िल्म देख ही ली । और फ़िल्म देखने के बाद लगा की चलो देख ही ली यानी कि देखनी इसलिए थी क्योंकि इतना कुछ सुन जो रक्खा था इस फ़िल्म के बारे मे । वैसे फ़िल्म बहुत ही धांसूं टाइप नही है जितना कि इसको hype किया जा रहा है । हमें कुछ बहुत ख़ास पसंद नही आई बल्कि आख़िर मे लग रहा था कि फ़िल्म थोड़ा drag on कर रही है ।
वैसे कई लोगों ने कहा है कि तकनीकी दृष्टि से ये फ़िल्म बहुत अच्छी है अब इतना तो पता नही पर हाँ जिस तरह से वर्तमान और भूतकाल को मिलाकर दिखाया है वो जरूर अच्छा है ।हाँ इसका ये आईडिया कि शो मे पूछे जाने वाले हर सवाल का जवाब जिंदगी की किसी घटना से जोड़कर दिखाना अच्छा लगा । क्योंकि हीरो पढ़ा-लिखा नही था पर तब भी उसे हर बात की जानकारी थी जो उसके जीवन मे हुई किसी न किसी घटना से जुड़ी हुई थी । फ़िर वो चाहे बढ़िया इंग्लिश बोलना हो या फ़िर general knowledge ही क्यों न हो ।
पर इसमे कुछ बातें हमें पसंद नही आई ।चलिए यहाँ एक-दो बातों का जिक्र कर देते है । अब इस फ़िल्म मे मुम्बई को जैसा दिखाया है वो तो अब सभी लोग जानते है ।इसलिए उस पर बात न करके कुछ दूसरी चीजों की बात करते है जो हमें ज्यादा ख़राब लगी ।
जैसे कौन बनेगा करोड़पति शो के दौरान अनिल कपूर का बार-बार हीरो को चाय वाला कहना खराब लगा क्योंकि हिंदुस्तान मे बने कौन बनेगा करोड़पति के शो के दौरान न तो कभी अमिताभ बच्चन ने और न ही शाह रुख खान ने कभी भी अपने किसी कंटेस्टेंट को इस तरह से संबोधित किया था यानी की कभी भी किसी के काम ,नाम या भाषा को लेकर कभी भी मजाक नही बनाया था ।पर फ़िल्म मे अनिल कपूर ने कई बार हीरो को चाय वाला कहा । और अंत मे जिस तरह से अनिल कपूर हीरो को शो न जीतने देने के लिए (हराने के लिए ) जो कुछ करता है वो बड़ा घटिया लगा ।
जिस तरह के गुंडे दिखाए गए है उनमे कुछ नया नही है ।महेश मंजरेकर का किरदार बहुत ही घिसा-पिटा और बोर करने वाला था । कुछ सीन देख ऐसा लग रहा था मानो किसी पुरानी फ़िल्म से उस सीन को लिया गया है जैसे बच्चों को भिखारी बनाने वाले सीन पहले की पुरानी फिल्मों मे देखने को बहुत मिलता था ।रहमान का संगीत बहुत ही आम सा लगा । कई बार तो फ़िल्म music की वजह से धीमी लगी । गाने तो बस ठीक है रिंग रिंग रिंगा गीत तो खलनायक फ़िल्म के चोली के पीछे की ही कॉपी लगा (tune और सिंगर भी वही यानी इला अरुण और अलका याग्निक )। अब भला रहमान जैसे संगीतकार जब पुराने गाने की धुन पर नया गाने बनायेंगे तो उनमे और अन्नू मालिक मे फ़िर क्या अंतर रहा ।
over all इसमे कुछ नया नही है सिवाय इसके कि इस फ़िल्म ने mumbai के धारावी को विदेशियों के लिए एक tourist place बना दिया है।
ऐसा लग रहा है कि इस साल के तो सारे अवार्ड वो चाहे ऑस्कर हो या बाफ्टा ये फ़िल्म लेगी क्योंकि ये देसी दर्शकों के लिए तो बनी नही है । वैसे आम तौर पर फ़िल्म फेस्टिवल (पिछले ३ साल से देख रहे है ) वो चाहे किसी भी देश मे हो उसमे अधिकतर फिल्में गरीबी दिखाने वाली ही होती है फ़िर वो चाहे अमेरिका की हो ,ईरान की हो या कजाकिस्तान की हो और फ़िर इस फ़िल्म मे तो हिंदुस्तान की गरीबी को दिखाया है और जो अवार्ड जीतने के लिए काफ़ी है ।
इस फ़िल्म के गीत जय हो जिसके लिए रहमान को ३ और गुलज़ार साब को एक नोमिनेशन मिला है उसे आप भी सुनिए ।
और साथ ही रिंग रिंग रिंगा भी सुन लीजिये जिससे आपको पता चल जाए की रहमान भी पुरानी धुन चुराते है । वो चाहे किसी भी वजह से ।
वैसे कई लोगों ने कहा है कि तकनीकी दृष्टि से ये फ़िल्म बहुत अच्छी है अब इतना तो पता नही पर हाँ जिस तरह से वर्तमान और भूतकाल को मिलाकर दिखाया है वो जरूर अच्छा है ।हाँ इसका ये आईडिया कि शो मे पूछे जाने वाले हर सवाल का जवाब जिंदगी की किसी घटना से जोड़कर दिखाना अच्छा लगा । क्योंकि हीरो पढ़ा-लिखा नही था पर तब भी उसे हर बात की जानकारी थी जो उसके जीवन मे हुई किसी न किसी घटना से जुड़ी हुई थी । फ़िर वो चाहे बढ़िया इंग्लिश बोलना हो या फ़िर general knowledge ही क्यों न हो ।
पर इसमे कुछ बातें हमें पसंद नही आई ।चलिए यहाँ एक-दो बातों का जिक्र कर देते है । अब इस फ़िल्म मे मुम्बई को जैसा दिखाया है वो तो अब सभी लोग जानते है ।इसलिए उस पर बात न करके कुछ दूसरी चीजों की बात करते है जो हमें ज्यादा ख़राब लगी ।
जैसे कौन बनेगा करोड़पति शो के दौरान अनिल कपूर का बार-बार हीरो को चाय वाला कहना खराब लगा क्योंकि हिंदुस्तान मे बने कौन बनेगा करोड़पति के शो के दौरान न तो कभी अमिताभ बच्चन ने और न ही शाह रुख खान ने कभी भी अपने किसी कंटेस्टेंट को इस तरह से संबोधित किया था यानी की कभी भी किसी के काम ,नाम या भाषा को लेकर कभी भी मजाक नही बनाया था ।पर फ़िल्म मे अनिल कपूर ने कई बार हीरो को चाय वाला कहा । और अंत मे जिस तरह से अनिल कपूर हीरो को शो न जीतने देने के लिए (हराने के लिए ) जो कुछ करता है वो बड़ा घटिया लगा ।
जिस तरह के गुंडे दिखाए गए है उनमे कुछ नया नही है ।महेश मंजरेकर का किरदार बहुत ही घिसा-पिटा और बोर करने वाला था । कुछ सीन देख ऐसा लग रहा था मानो किसी पुरानी फ़िल्म से उस सीन को लिया गया है जैसे बच्चों को भिखारी बनाने वाले सीन पहले की पुरानी फिल्मों मे देखने को बहुत मिलता था ।रहमान का संगीत बहुत ही आम सा लगा । कई बार तो फ़िल्म music की वजह से धीमी लगी । गाने तो बस ठीक है रिंग रिंग रिंगा गीत तो खलनायक फ़िल्म के चोली के पीछे की ही कॉपी लगा (tune और सिंगर भी वही यानी इला अरुण और अलका याग्निक )। अब भला रहमान जैसे संगीतकार जब पुराने गाने की धुन पर नया गाने बनायेंगे तो उनमे और अन्नू मालिक मे फ़िर क्या अंतर रहा ।
over all इसमे कुछ नया नही है सिवाय इसके कि इस फ़िल्म ने mumbai के धारावी को विदेशियों के लिए एक tourist place बना दिया है।
ऐसा लग रहा है कि इस साल के तो सारे अवार्ड वो चाहे ऑस्कर हो या बाफ्टा ये फ़िल्म लेगी क्योंकि ये देसी दर्शकों के लिए तो बनी नही है । वैसे आम तौर पर फ़िल्म फेस्टिवल (पिछले ३ साल से देख रहे है ) वो चाहे किसी भी देश मे हो उसमे अधिकतर फिल्में गरीबी दिखाने वाली ही होती है फ़िर वो चाहे अमेरिका की हो ,ईरान की हो या कजाकिस्तान की हो और फ़िर इस फ़िल्म मे तो हिंदुस्तान की गरीबी को दिखाया है और जो अवार्ड जीतने के लिए काफ़ी है ।
इस फ़िल्म के गीत जय हो जिसके लिए रहमान को ३ और गुलज़ार साब को एक नोमिनेशन मिला है उसे आप भी सुनिए ।
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Comments
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चाँद, बादल और शाम
ममता जी आप ने बिलकुल सही लिखा इस लेख मै ओर मै आप की बात से सहमत हुं.
धन्यवाद
Manorma
manorma74@yahoo.co.in
interesting and informative. . . .
c o n g r a t s !!
---MUFLIS---
Saya, mausam and scap, dream on fire, jai ho, gansta blues, latika theme etc sub tab pta chalega music kya he
Latika theme best love theme he.. And mausam & scape, dreams on fire, liquid dance, gangta blues, o saya sub dhyan se sune phir music per raay baante..