अरविन्द जी की इस टिप्पणी ने बहुत hurt किया
आम तौर पर हम कभी किसी टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया नही करते है भले ही कोई चाहे टिप्पणी मे प्रशंसा हो या बुराई .और न ही कभी कुछ ऐसा लिखते है जिसमे कहीं भी महिला या पुरूष के लिए कुछ अलग माप दंड होता है । हम जो भी लिखते है बस अपने मन के भाव लिखते है ।
आज अभी-अभी जैसे ही अपने ब्लॉग पर आई टिप्पणी देखी और उसमे अरविन्द जी की टिप्पणी पढ़कर मन बहुत दुखी हो गया । कल हमारी dev d यानी bold and beautiful पर लिखी समीक्षा पर अरविन्द जी की टिप्पणी जिसे हम नीचे वैसे ही लगा रहे है
क्या यह फिल्म महिलाओं को सिर्फ़ इसलिए अच्छी लग रही है की उनकी विभीषिकाओं को यह मुखर करती है और पुरूष को नकारा साबित करती है -केवल पुरूष ही इमोशनल अत्याचारी है ? यह नारी एंगल को उभारती एक चालाक कोशिश है -पर कुछ दृश्य सचमुच सौन्दर्यबोध का कबाडा कर देते हैं पोर्नो को भीमात करते हैं !
पढ़कर ये सोचने लगे कि हमने उसमे ऐसा क्या और कहाँ लिखा जिससे उन्हें ये पुरूष विरोधी लग गई ।
अगर एक महिला होने के नाते हमें फ़िल्म पसंद आई तो उसमे हमारी ऐसी भावना कहाँ से उजागर हो गई ।
क्या फ़िल्म को सिर्फ़ एक फ़िल्म के तौर पर नही देखा जा सकता है ।
आज अभी-अभी जैसे ही अपने ब्लॉग पर आई टिप्पणी देखी और उसमे अरविन्द जी की टिप्पणी पढ़कर मन बहुत दुखी हो गया । कल हमारी dev d यानी bold and beautiful पर लिखी समीक्षा पर अरविन्द जी की टिप्पणी जिसे हम नीचे वैसे ही लगा रहे है
क्या यह फिल्म महिलाओं को सिर्फ़ इसलिए अच्छी लग रही है की उनकी विभीषिकाओं को यह मुखर करती है और पुरूष को नकारा साबित करती है -केवल पुरूष ही इमोशनल अत्याचारी है ? यह नारी एंगल को उभारती एक चालाक कोशिश है -पर कुछ दृश्य सचमुच सौन्दर्यबोध का कबाडा कर देते हैं पोर्नो को भीमात करते हैं !
पढ़कर ये सोचने लगे कि हमने उसमे ऐसा क्या और कहाँ लिखा जिससे उन्हें ये पुरूष विरोधी लग गई ।
अगर एक महिला होने के नाते हमें फ़िल्म पसंद आई तो उसमे हमारी ऐसी भावना कहाँ से उजागर हो गई ।
क्या फ़िल्म को सिर्फ़ एक फ़िल्म के तौर पर नही देखा जा सकता है ।
Comments
रही बात अरविंद जी की तो मैं समझता हू वे एक समझदार और व्यापक सोच के धनी है.. शायद उन्होने किसी और सन्दर्भ में टिप्पणी की हो. बात करने से मसले सुलझ जाते है..
आपके लिए यही कहूँगा.. ओपन माइंडेड रहिए..
खुले दिमाग से सोचिए
आप देखेंगी कि
सभी शैतान भाग गए हैं
चाहे वे विचार हों
या साकार .......
हाँ अरविन्द के कमेन्ट पर ये जरुरु कहना चाहुगी की वक्त लगेगा अभी जब लोग हम को आप को या कहे नारी को एक "समझदार व्यक्तित्व " की परिभाषा मे देखेगे . नारी हो कर आप को कुछ पसदं आया और आपने उस पर अपनी मोहर लगा दी अब अगर आप को ये ना बताया जाये की आप नारी हैं और पसंद नापसंद करना आप का अधिकार ही नहीं हैं तो फिर "पुरूष" आप से बेहतर कैसे साबित होगा .
सबसे अच्छी बात हैं की आप को जो बात ग़लत लगी आपने मुखरता से उसका विरोध दर्ज करा दिया .
आप लिखे जो आप को अच्छा लगता हैं , आप देखे जो आप को अच्छा लगता हैं और आप प्रतिक्रिया दे .
नीरज
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ग़ज़लों के खिलते गुलाब
sub ka apna nazriya hota hai dekhne aur sochne ka...
isliye aap bus likhti rahiye...
Regards
आप मन में कोई मलाल न लायें, लिखते रहें. शुभकामनाऐं.
इसलिए आप भी हर्ट न हों,अरविन्द जी ने अपना एंगल बताया आपने अपना।
बाकी फिल्म देख आऊँ फिर कहूंगी।
धन्यवाद
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि जब तक विचार और अभिव्यक्ति सीधे सीधे आक्षेप न बन जाए तब तक उन पर प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए !!!
विचारों को खुले रूप में लेना चाहिये। कम से कम अरविन्द जी आपके चिट्ठे पर आये और टिप्पणी तो की। मेरे विचार से इस टिप्पणी एक स्वस्थ चर्चा के रूप में लेना चाहिये।
आप यूँ ही लिखती रहें.....! दलगत राजनीतियों से दूर आपका लिखना हमें अच्छा लगता है।