चेन्नई से पांडेचेरी ३ (गणेश मन्दिर )
पांडेचेरी में हमने ज्यादा कुछ नही घूमा था क्यूंकि पांडेचेरी शाम को पहुंचे थे और अगले दिन ११ बजे वापिस चेन्नई के लिए चल दिए थे । खैर महाबलिपुरम से चलकर जब हम लोग पांडेचेरी पहुंचे उस समय शाम हो रही थी ।पांडेचेरी मे जब प्रवेश करते है तो इस शहर की खूबसूरती देखते ही बनती है एक तरफ़ दूर-दूर तक फैला हुआ समुन्द्र और दूसरी तरफ़ खूबसूरत और बिल्कुल एक ही तरह और रंग की ज्यादातर तीन मंजिला बिल्डिंग और एक सा ही architecture दिखाई देता है ।
इन बिल्डिंग को देखते हुए मन प्रसन्न हो जाता है । सड़कें और शहर काफ़ी साफ़-सुथरा है । यहाँ पर आज भी लोगों को french govt. से पेंशन मिलती है । ज्यादातर मुख्य ऑफिस इसी main road पर है । सड़क के दूसरी ओर जो walking track बना है वहां बिल्कुल बीच मे महात्मा गाँधी जी की काले रंग की मूर्ति बनी हुई है । और गांधी जी के ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर जवाहर लाल नेहरू जी की सफ़ेद रंग की प्रतिमा बनी है । नेहरू जी की मूर्ति जहाँ है वहीं पर कार पार्किंग भी है । इस track पर सुबह और दोपहर को तो फ़िर भी कम भीड़ होती है पर जैसे- जैसे शाम होने लगती है लोगों की भीड़ बढती ही जाती है । और थोडी देर बाद तो बस हर तरफ़ सिर्फ़ लोग ही लोग दिखाई देते है ।
तो सबसे पहले हम लोग होटल गए और फ़िर नहा धोकर दोबारा पांडेचेरी घूमने के लिए निकले तो पहले तो हम लोग अरबिंदो आश्रम गए क्यूंकि उस दिन वो कुछ जल्दी बंद होने वाला था ।जैसे ही अन्दर दाखिल होते है तो एक बोर्ड पर लिखा दिखता है शांत रहिये . और चूँकि वहां कुछ रीपेयर का काम भी चल रहा था इसलिए बहुत जल्दी-जल्दी देखा । वहां श्री औरबिंदो और माँ की समाधि बनी है । समाधी के पास ज्यादा देर तक रुके नही थे बस प्रणाम करके हम लोग
बाहर आ गए थे और जहाँ संग्रहालय है उसे देखा । ।पर वैसे लोग समाधी के पास ध्यान लगा कर बैठे हुए थे । और वहां अन्दर समाधी के पास फोटो खींचना शायद मना था या नही ठीक से याद नही है पर हमने कोई फोटो नही खींची ।
अरबिंदो आश्रम के बिल्कुल पास ही ये गणेश मन्दिर है ।जैसे ही मन्दिर के पास पहुँचते है तो मन्दिर के द्वार के बिल्कुल पास ही एक सजे -धजे गजराज दिखाई दिए । और देखा कि जब मन्दिर मे दर्शन करने आए लोग गजराज के आगे अपना सिर झुकाते है तो गजराज अपनी सूँड उनके सिर पर रखकर आशीर्वाद देते और फ़िर उसी सीक्वेंस मे सूँड से घास ले कर खाते । ( मात्र १० रूपये की ) पर कई बार गजराज जैसे ही हाथ मे घास को देखते फट से अपनी लम्बी सी सूँड बढाकर घास ले लेते और खा जाते थे । :)
इस घास लेने ,खाने और खिलाने वाले के सिर पर सूँड रखने मे समय का कैलकुलेशन बहुत सही होना चाहिए वरना कई बार गजराज घास खा लेते है पर खिलाने वाले के सिर पर आशीर्वाद के लिए सूँड नही रखते थे । ये हम इस लिए कह रहे है क्योंकि हमें गजराज को २ बार घास खिलानी पड़ी क्योंकि पहली बार तो गजराज ने हमारे हाथ मे घास देखते ही एक तरह से लपक ली और दूसरी बार भी घास ले ली थी । पर दूसरी बार घास खाने के बाद गजराज ने अपनी सूँड से हमें भी आशीर्वाद दे ही दिया था।और जब गजराज अपनी सूँड सिर पर रखते है तो बड़ा भारी सा महसूस होता है ।फोटो नही आ पायी क्योंकि वही timing का चक्कर जब तक कैमरा क्लिक करें तब तक तो घास खाने और सूँड से आशीर्वाद देने का पूरा कार्यक्रम हो चुका होता था । :)
इस मन्दिर मे जैसे ही प्रवेश करते है तो यहाँ भी सामने लिखा दिखता है की मन्दिर मे फोटो खींचना मना है । वैसे ये फोटो हमने मन्दिर के बाहर से खींची है और वो भी पुजारी की इजाजत लेकर ।मन्दिर के बीचों बीच बने इस सोने के स्तम्भ की लोग परिक्रमा करते है । इस मन्दिर मे जब हम लोग पहुंचे तो वहां आरती हो रही थी तो हमने शाम की आरती देखी और चूँकि इस मन्दिर के अन्दर भी फोटो खींचना मना था इसलिए यहाँ पर भी फोटो नही खींची । आरती के बाद मन्दिर के अन्दर थोड़ा सा घूमने पर वहां सोने और चाँदी के रथ दिखे जिन्हें वहां यात्रा के दौरान निकाला जाता है ।
मन्दिर की आरती देखने के बाद वहां का मार्केट घूमा और वहां के काफ़ी हाउस मे काफ़ी पी ।काफ़ी हाउस कहीं का भी हो कॉफी का स्वाद बिल्कुल वही रहता है । पांडेचेरी टेक्सटाइल के लिए बहुत मशहूर है इस लिए वहां से हमने थोडी शॉपिंग भी की । :) मार्केट घूम कर हम लोग थक गए थे सो हम लोग वापिस होटल लौट गए और फ़िर रात मे एक फ्रेंच रेस्तौरेंट मे बहुत ही बढ़िया खाना खाया और होटल जाकर सो गए । (नाम मत पूछिए क्यूंकि याद नही है )
अगले दिन सुबह-सुबह हम लोग morning walk के लिए गए और पांडेचेरी की मुख्य सड़क के साथ ही जो walking track बना है वहां walk किया और कुछ फोटो भी खींची क्यूंकि शाम को इसी track पर इतनी भीड़ थी कि सिर्फ़ लोग ही लोग दिखाई दे रहे थे ।यहाँ walk करते हुए सड़क के दूसरी ओर बना हुआ लाईट हाउस भी दिखा ।इस track से बस दो सीढ़ी उतरकर बालू मे चलकर किनारे लगे पत्थरों के पास खड़े होकर आप समुन्द्र की लहरों का आन्नद ले सकते है । सुबह के समय जहाँ वहां शान्ति थी वहीं शाम को वहां पर उमड़ी भीड़ को देख कर लगता था मानो पूरा शहर ही उमड़ आया हो ।
और इस तरह एक दिन पांडेचेरी मे बिताकर हम लोग वापिस चेन्नई लौट आए ।
Comments
- लावण्या
वैसे अभी तक मैं भी कभी वहां गया नहीं... शायद आप सही हो.
बहुत रोचक वर्णन किया है आपने ममता जी...बधाई.
नीरज
आप का धन्यवाद
दरअसल मे हम लोगों को वहां के लोगों ने यही बताया की वहां श्री औरबिन्दो और माँ दोनों की समाधी है ।