नेताओं की भी रिटायरमेंट एज होनी चाहिए .....
पिछले कुछ दिनों से देश मे लोक सभा चुनावों को लेकर सभी राजनैतिक पार्टियाँ सक्रिय हो गई है क्यूंकि ऐसी उम्मीद लग रही है कि चुनाव अप्रैल-मई तक हो जायेंगे । चुनाव मे टिकट के लिए हर नेता पूरी जद्दोजहद से जुट जाते है । चुनाव के लिए अगर टिकट न मिले तो या तो किसी दूसरी राजनैतिक पार्टी मे जा मिलते है या फ़िर अपनी ही नई पार्टी बना लेते है ।
हर कोई वो चाहे नेता हो या फ़िर जनता हो ,कहती है कि युवा पीढी को आगे आना चाहिए पर जब चुनाव मे टिकट देने की बात आती है तो वही सारे पुराने लोगों को टिकट दिया जाता है जो पिछले बीसियों साल से चुनाव लड़ते आ रहे है । वो चाहे भैरों सिंह शेखावत हो या चाहे प्रणब मुखर्जी हो या चाहे सोमनाथ चटर्जी हो या फ़िर अडवाणी जी या मन मोहन सिंह जी ही क्यों न हो । अर्जुन सिंह हो या करूणानिधि हो या बंसी लाल या फ़िर मोती लाल वोरा या मुरली मनोहर जोशी या अशोक सिंघल ही क्यूँ न हो ।ऐसे नेताओं की लिस्ट बहुत लम्बी है । लिखने लगे तो अंत नही होगा । अभी हाल ही मे हम एक मैगजीन मे पढ़ रहे थे की भैरों सिंह शेखावत जो उप राष्ट्रपति रह चुके है वो एक बार फ़िर चुनाव लड़ने जा रहे है ।और जो ८० साल के ऊपर है । आख़िर क्यों ?
आख़िर जब हर नौकरी मे रिटायरमेंट की एक एज होती है तो फ़िर क्या इन नेताओं को रिटायर नही होना चाहिए ?
जब हर जगह काम करने वाले को ६०-६५ साल बाद आराम करने को कहा जाता है यानी रिटायर कर दिया जाता है तो भला इन नेताओं को भी ६०-६५ साल बाद रिटायर कर देना चाहिए ।
और तो और अगर ये लोक सभा का चुनाव नही जीत पाते है तो राज्य सभा मे नोमिनेट होकर आ जाते है । नेताओं का भी अपने cricketers (सचिन वगैरा ) जैसा ही हाल है कि अपने आप तो राजनीति से अलग होते नही है और अगर कोई उन्हें अलग करना चाहे तो एक नया गठबंधन करके वापिस राजनीति मे आ जाते है क्योंकि राजसी ठाठ-बाट और सत्ता का मोह इनसे छूटता नही है ।
घूम-घूम कर यही नेता चुनाव लड़ते है जीतते है और मंत्री बनते है । कम से कम पिछले ५० साल से तो ऐसा ही होता आ रहा दीखता है । अब ये मत कह दीजियेगा old is gold . :)
हर कोई वो चाहे नेता हो या फ़िर जनता हो ,कहती है कि युवा पीढी को आगे आना चाहिए पर जब चुनाव मे टिकट देने की बात आती है तो वही सारे पुराने लोगों को टिकट दिया जाता है जो पिछले बीसियों साल से चुनाव लड़ते आ रहे है । वो चाहे भैरों सिंह शेखावत हो या चाहे प्रणब मुखर्जी हो या चाहे सोमनाथ चटर्जी हो या फ़िर अडवाणी जी या मन मोहन सिंह जी ही क्यों न हो । अर्जुन सिंह हो या करूणानिधि हो या बंसी लाल या फ़िर मोती लाल वोरा या मुरली मनोहर जोशी या अशोक सिंघल ही क्यूँ न हो ।ऐसे नेताओं की लिस्ट बहुत लम्बी है । लिखने लगे तो अंत नही होगा । अभी हाल ही मे हम एक मैगजीन मे पढ़ रहे थे की भैरों सिंह शेखावत जो उप राष्ट्रपति रह चुके है वो एक बार फ़िर चुनाव लड़ने जा रहे है ।और जो ८० साल के ऊपर है । आख़िर क्यों ?
आख़िर जब हर नौकरी मे रिटायरमेंट की एक एज होती है तो फ़िर क्या इन नेताओं को रिटायर नही होना चाहिए ?
जब हर जगह काम करने वाले को ६०-६५ साल बाद आराम करने को कहा जाता है यानी रिटायर कर दिया जाता है तो भला इन नेताओं को भी ६०-६५ साल बाद रिटायर कर देना चाहिए ।
और तो और अगर ये लोक सभा का चुनाव नही जीत पाते है तो राज्य सभा मे नोमिनेट होकर आ जाते है । नेताओं का भी अपने cricketers (सचिन वगैरा ) जैसा ही हाल है कि अपने आप तो राजनीति से अलग होते नही है और अगर कोई उन्हें अलग करना चाहे तो एक नया गठबंधन करके वापिस राजनीति मे आ जाते है क्योंकि राजसी ठाठ-बाट और सत्ता का मोह इनसे छूटता नही है ।
घूम-घूम कर यही नेता चुनाव लड़ते है जीतते है और मंत्री बनते है । कम से कम पिछले ५० साल से तो ऐसा ही होता आ रहा दीखता है । अब ये मत कह दीजियेगा old is gold . :)
Comments
यदि 55 से 65 के बीच नैकरी से रिटायर होना पडता है तो इसी उमर में चुनाव से भी निवृत्त हो जाना जरूरी है.
सस्नेह -- शास्त्री