तारे जमी पर ... मेरी नजर से
आख़िर कार हमने भी तारे जमीं पर कल देख ही ली।फिल्म की तारीफ तो हर देखने वाले ने की है और फिल्म है भी तारीफ के काबिल।सभी कलाकारों ने बहुत ही अच्छा अभिनय किया है खासकर दर्शील ने । हर एक किरदार को बहुत ही देख-परख कर सोच - समझ कर बनाया गया है ।टीचर और प्रिंसिपल तो ऐसे बहुत दिखते है।हर स्कूल मे ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे।माँ-बाप का बच्चों के लिए चिंतित होना भी लाजमी सी बात है। हालांकि फिल्म का अंत तो पहले ही समझ मे आ गया था पर फिर भी फिल्म देखने लायक है।
पूरी फिल्म को देखने के बाद हमे ये महसूस हुआ कि इस फिल्म को माँ-बाप से कहीं ज्यादा स्कूल के टीचरों और प्रिन्सिपलों को देखनी चाहिऐ क्यूंकि बच्चे को घर मे तो एक बार माँ-बाप भाई-बहन का साथ मिल भी जाता है पर स्कूल मे बच्चा बहुत ही अकेला हो जाता है।ऐसा सिर्फ दर्शील जैसे बच्चों के साथ ही नही जिसे फिल्म मे dyslexic जैसी बीमारी थी बल्कि वो सभी बच्चे जो पढ़ने-लिखने मे जरा कमजोर होते है।
तो चलिए हम इस पिक्चर से मिलते -जुलते अपने एक अनुभव को बताते है।जिन लोगों ने पिक्चर देखी है उन्हें वो सीन भी अच्छी तरह याद होगा (और जिन्होंने नही देखी है उनके लिए हम यहां थोडा सा बता देते है।) जहाँ स्कूल कि प्रिंसिपल और टीचर्स बच्चे के माता -पिता को उसके तीसरी क्लास मे फ़ेल होने पर उन्हें कहते है कि अगर उनका बच्चा इस साल इम्तिहान मे पास नही हुआ तो वो उसे स्कूल से निकाल देंगे।बिल्कुल ऐसा ही हमारे साथ हुआ है।हमारा बेटा बहुत अच्छे जाने-माने स्कूल मे पढ़ता था ।बेटा पढ़ाई मे बहुत तेज तो नही था पर ठीक था।
जब वो नवीं क्लास मे था उन दिनों वो कुछ बीमार सा रहता था इसलिए स्कूल भी रेगुलर नही जाता था पर स्कूल वालों को इससे कुछ खास फर्क नही पड़ता था कि बच्चा आया है या नही।और नवी के फाइनल इम्तिहान का रिजल्ट निकला तो जनाब मैथ्स और साइंस मे फ़ेल थे।अब जब बडे स्कूल मे बच्चे फ़ेल होते है तो माँ-बाप को प्रिंसिपल के सामने हाजिर होना पड़ता है। जब स्कूल से चिट्ठी आई तो हम लोग भी गए।
तो प्रिंसिपल ने बिल्कुल सीधे-सीधे शब्दों मे कहा कि चूँकि आपके बेटे ने इस बार स्कूल बहुत मिस किया है और आपका बेटा दो विषयों मे फ़ेल हुआ है इसलिए हम उसे दसवी क्लास मे नही भेज रहे है।क्यूंकि मैथ्स और साइंस दोनों मुख्य विषय है।
इस पर जो हालत उस पिक्चर मे माँ-बाप की थी कुछ वैसी ही हालत हम लोगों की भी थी।(बल्कि और खराब थी क्यूंकि हमने तो सच मे भोगा था ) और जब हमने कहा की इस बार बेटा बहुत बीमार रहा है इस वजह से नंबर खराब आये है।आप इसकी डायरी से चेक कर सकती है।
तो उन्होने कहा कि अगर बीमार है तो इलाज करवाइये। अगर आपका बच्चा इतना बर्डन नही ले सकता है तो उसे किसी दूसरे स्कूल मे जहाँ पढाई का बर्डन कम हों ऐसे किसे ऐसे स्कूल मे दाखिला दिलवा दीजिए। ।
इतना सुनकर गुस्सा तो बहुत आया पर बच्चे के साल न बर्बाद हो इसलिए उनसे री-टेस्ट के लिए कहा। खैर इसके लिए तो वो तैयार थी पर साथ मे धमकी भी दी कि अगर री-टेस्ट मे पास नही होगा तो हमे उसे स्कूल से निकालना होगा। क्यूंकि के स्कूल अच्छे सेंट-परसेंट रिजल्ट के लिए जाना जाता है।
ये सुनकर हमे अपने और बेटे के साथ-साथ उस प्रिंसिपल के ऊपर भी बहुत गुस्सा आया कि यूं तो अखबारों मे अपने interview मे वो हमेशा पढाई से ज्यादा बच्चों को अच्छा इंसान बनने को कहती थी।पर असलियत मे उन्हें अपने स्कूल के अच्छे रिजल्ट से ही मतलब था। उस समय उनका कुछ और ही रुप दिख रहा था।
हमे गुस्सा तो बहुत आ रहा था फिर भी कुछ साहस करके ( प्रिंसिपल के आगे तो हम लोग किसी अपराधी से कम नही थे)जब हमने उनकी कही हुई ये बात उन्हें याद दिलाई तो वो झट से बोली कि that is different.our school is known for its results।
जरुरी नही है की बच्चे को कोई बीमारी ही हो तभी उसे ऐसे हालत झेलने पड़ते है बल्कि हमारे ख्याल से जिस किसी के बच्चे पढ़ने मे कमजोर होते है उन्हें ऐसे हालातों से दो-चार होना ही पड़ता है । ऐसे समय मे स्कूल को सिर्फ अपनी रेपुटेशन की चिंता होती के बच्चे के भविष्य की नही। इसीलिए हमारा ये सोचना है कि ये पिक्चर हर स्कूल के टीचर्स और प्रिंसिपल को देखनी ही चाहिऐ। क्यूंकि आजकल टीचर्स बहुत असंवेदनशील होते जा रहे है।(पहले भी होते ही थे )
पूरी फिल्म को देखने के बाद हमे ये महसूस हुआ कि इस फिल्म को माँ-बाप से कहीं ज्यादा स्कूल के टीचरों और प्रिन्सिपलों को देखनी चाहिऐ क्यूंकि बच्चे को घर मे तो एक बार माँ-बाप भाई-बहन का साथ मिल भी जाता है पर स्कूल मे बच्चा बहुत ही अकेला हो जाता है।ऐसा सिर्फ दर्शील जैसे बच्चों के साथ ही नही जिसे फिल्म मे dyslexic जैसी बीमारी थी बल्कि वो सभी बच्चे जो पढ़ने-लिखने मे जरा कमजोर होते है।
तो चलिए हम इस पिक्चर से मिलते -जुलते अपने एक अनुभव को बताते है।जिन लोगों ने पिक्चर देखी है उन्हें वो सीन भी अच्छी तरह याद होगा (और जिन्होंने नही देखी है उनके लिए हम यहां थोडा सा बता देते है।) जहाँ स्कूल कि प्रिंसिपल और टीचर्स बच्चे के माता -पिता को उसके तीसरी क्लास मे फ़ेल होने पर उन्हें कहते है कि अगर उनका बच्चा इस साल इम्तिहान मे पास नही हुआ तो वो उसे स्कूल से निकाल देंगे।बिल्कुल ऐसा ही हमारे साथ हुआ है।हमारा बेटा बहुत अच्छे जाने-माने स्कूल मे पढ़ता था ।बेटा पढ़ाई मे बहुत तेज तो नही था पर ठीक था।
जब वो नवीं क्लास मे था उन दिनों वो कुछ बीमार सा रहता था इसलिए स्कूल भी रेगुलर नही जाता था पर स्कूल वालों को इससे कुछ खास फर्क नही पड़ता था कि बच्चा आया है या नही।और नवी के फाइनल इम्तिहान का रिजल्ट निकला तो जनाब मैथ्स और साइंस मे फ़ेल थे।अब जब बडे स्कूल मे बच्चे फ़ेल होते है तो माँ-बाप को प्रिंसिपल के सामने हाजिर होना पड़ता है। जब स्कूल से चिट्ठी आई तो हम लोग भी गए।
तो प्रिंसिपल ने बिल्कुल सीधे-सीधे शब्दों मे कहा कि चूँकि आपके बेटे ने इस बार स्कूल बहुत मिस किया है और आपका बेटा दो विषयों मे फ़ेल हुआ है इसलिए हम उसे दसवी क्लास मे नही भेज रहे है।क्यूंकि मैथ्स और साइंस दोनों मुख्य विषय है।
इस पर जो हालत उस पिक्चर मे माँ-बाप की थी कुछ वैसी ही हालत हम लोगों की भी थी।(बल्कि और खराब थी क्यूंकि हमने तो सच मे भोगा था ) और जब हमने कहा की इस बार बेटा बहुत बीमार रहा है इस वजह से नंबर खराब आये है।आप इसकी डायरी से चेक कर सकती है।
तो उन्होने कहा कि अगर बीमार है तो इलाज करवाइये। अगर आपका बच्चा इतना बर्डन नही ले सकता है तो उसे किसी दूसरे स्कूल मे जहाँ पढाई का बर्डन कम हों ऐसे किसे ऐसे स्कूल मे दाखिला दिलवा दीजिए। ।
इतना सुनकर गुस्सा तो बहुत आया पर बच्चे के साल न बर्बाद हो इसलिए उनसे री-टेस्ट के लिए कहा। खैर इसके लिए तो वो तैयार थी पर साथ मे धमकी भी दी कि अगर री-टेस्ट मे पास नही होगा तो हमे उसे स्कूल से निकालना होगा। क्यूंकि के स्कूल अच्छे सेंट-परसेंट रिजल्ट के लिए जाना जाता है।
ये सुनकर हमे अपने और बेटे के साथ-साथ उस प्रिंसिपल के ऊपर भी बहुत गुस्सा आया कि यूं तो अखबारों मे अपने interview मे वो हमेशा पढाई से ज्यादा बच्चों को अच्छा इंसान बनने को कहती थी।पर असलियत मे उन्हें अपने स्कूल के अच्छे रिजल्ट से ही मतलब था। उस समय उनका कुछ और ही रुप दिख रहा था।
हमे गुस्सा तो बहुत आ रहा था फिर भी कुछ साहस करके ( प्रिंसिपल के आगे तो हम लोग किसी अपराधी से कम नही थे)जब हमने उनकी कही हुई ये बात उन्हें याद दिलाई तो वो झट से बोली कि that is different.our school is known for its results।
जरुरी नही है की बच्चे को कोई बीमारी ही हो तभी उसे ऐसे हालत झेलने पड़ते है बल्कि हमारे ख्याल से जिस किसी के बच्चे पढ़ने मे कमजोर होते है उन्हें ऐसे हालातों से दो-चार होना ही पड़ता है । ऐसे समय मे स्कूल को सिर्फ अपनी रेपुटेशन की चिंता होती के बच्चे के भविष्य की नही। इसीलिए हमारा ये सोचना है कि ये पिक्चर हर स्कूल के टीचर्स और प्रिंसिपल को देखनी ही चाहिऐ। क्यूंकि आजकल टीचर्स बहुत असंवेदनशील होते जा रहे है।(पहले भी होते ही थे )
Comments
भारत की स्कूलों से यहाँ की स्कूलों में जो फर्क है उसे देखा और परखा है --
आपने अपना अनुभव शेयर किया उसके लिए शुक्रिया -- आशा है हमारे पुत्र का भविष्य उज्जवल हो ! मेरे आशीष ...आपको स्नेह,
लावण्या
SHUAIB
http://www.shuaib.in/chittha/archives/166