करैला खाओ और .....?
सत्तर के दशक मे गर्मी के के समय मे सिर्फ लौकी,परवल,टिंडा, करैला,नेनुआ,(तोरी)जैसी हरी सब्जियां ही मिला करती थी । आज के समय की तरह नही कि बारह मास गोभी,गाजर जैसी सब्जियां मिलती रही हों । और ये बात वैसी ही गर्मी के दिनों की है। हमारे घर मे सभी को करैला पसंद था सिवा हमारे और भईया के।और घर मे हर दूसरे - तीसरे रोज बाक़ी दाल,सब्जी के साथ करैला भी बनता था। और जहाँ करैला देखा कि मुँह बन जाता था हमारा और भईया का।
ऐसी ही एक गर्मी के दिनों का ये किस्सा है। उन दिनों आई.ए.एस के इम्तिहान का बहुत चलन था (वो तो आज भी है)पर क्यूंकि तब ज्यादातर लोग सिविल सर्विस मे जाना पसंद करते थे या इंजीनियर या डाक्टर बनते थे। खैर तो चलन के मुताबिक ही भईया और उनके एक दोस्त मिलकर आई.ए.एस.के इम्तिहान की तैयारी कर रहे थे। और भईया का दोस्त हम लोगों के घर मे ही रहता था। तो जाहिर सी बात है कि जब दोनो लोग साथ-साथ पढ़ते थे तो खाना भी घर मे ही खाते थे।भईया के उस दोस्त को करैला पसंद था या नही ये कोई भी नही जानता था क्यूंकि जब भी मम्मी पूछती कि तुम करैला खाते हो या नही ,तो वो फौरन जवाब देते थे कि आंटी आपके हाथ का बना करैला खाने मे बहुत स्वादिष्ट होता है।
भईया उससे कहते कि अगर तुम्हे पसंद नही है तो मत खाया खाओ। तुम करैला थाली मे छोड़ दिया करो।
पर वो जब भी करैला बनता तो खा लेते थे और बहुत तारीफ करते करैले की।और हमारे भईया तो करैला खाना तो क्या उसके नाम से भी भागते थे।
खैर दोनों ने इम्तिहान दिया और भईया के वो दोस्त आई.ऍफ़.एस.(फॉरेन )मे सेलेक्ट हुए तो वो घर आये मम्मी-पापा का पैर छूने ।
जब मम्मी-पापा ने उन्हें बधाई दी और कहा कि तुमने बहुत मेहनत की थी।
तो इसपर वो बोले की आंटी ये सब तो आपके करैले का कमाल है।
और तब उन्होने बताया की उन्हें करैला खाना पसंद नही था पर हमारी मम्मी के हाथ का बना करैला खाने मे उन्हें बहुत अच्छा लगता था और उसके बाद से उन्होंने करैला खाना शुरू कर दिया था।
ऐसी ही एक गर्मी के दिनों का ये किस्सा है। उन दिनों आई.ए.एस के इम्तिहान का बहुत चलन था (वो तो आज भी है)पर क्यूंकि तब ज्यादातर लोग सिविल सर्विस मे जाना पसंद करते थे या इंजीनियर या डाक्टर बनते थे। खैर तो चलन के मुताबिक ही भईया और उनके एक दोस्त मिलकर आई.ए.एस.के इम्तिहान की तैयारी कर रहे थे। और भईया का दोस्त हम लोगों के घर मे ही रहता था। तो जाहिर सी बात है कि जब दोनो लोग साथ-साथ पढ़ते थे तो खाना भी घर मे ही खाते थे।भईया के उस दोस्त को करैला पसंद था या नही ये कोई भी नही जानता था क्यूंकि जब भी मम्मी पूछती कि तुम करैला खाते हो या नही ,तो वो फौरन जवाब देते थे कि आंटी आपके हाथ का बना करैला खाने मे बहुत स्वादिष्ट होता है।
भईया उससे कहते कि अगर तुम्हे पसंद नही है तो मत खाया खाओ। तुम करैला थाली मे छोड़ दिया करो।
पर वो जब भी करैला बनता तो खा लेते थे और बहुत तारीफ करते करैले की।और हमारे भईया तो करैला खाना तो क्या उसके नाम से भी भागते थे।
खैर दोनों ने इम्तिहान दिया और भईया के वो दोस्त आई.ऍफ़.एस.(फॉरेन )मे सेलेक्ट हुए तो वो घर आये मम्मी-पापा का पैर छूने ।
जब मम्मी-पापा ने उन्हें बधाई दी और कहा कि तुमने बहुत मेहनत की थी।
तो इसपर वो बोले की आंटी ये सब तो आपके करैले का कमाल है।
और तब उन्होने बताया की उन्हें करैला खाना पसंद नही था पर हमारी मम्मी के हाथ का बना करैला खाने मे उन्हें बहुत अच्छा लगता था और उसके बाद से उन्होंने करैला खाना शुरू कर दिया था।
Comments
काय कू नाक भौं सिकोड़ते! आज भी नई खाते!!