मुम्बई शहर हादसों का शहर है ....

मुम्बई जहाँ नए साल का जश्न मना कर लौट रही लड़कियों के साथ जो कुछ भी हुआ वो तो हर कोई जान गया है।कि किस तरह से उन दो लड़कियों को ७०-८० लोगों की भीड़ ने परेशान किया।और मुम्बई पुलिस कितने हलके ढंग से इस मामले को ले रही है।हालांकि पिछले साल भी मुम्बई मे ऐसा ही हादसा हुआ था।कल ही कोची मे भी एक विदेशी पर्यटक (swedish) की बच्ची के साथ भी लोगों ने छेड़-छाड़ की थी।

मुम्बई मे नए साल के आगमन पर लोग बिल्कुल दीवानों के तरह घूमते है। शायद ऐसी घटनाएं पहली भी होती रही होंगी पर तब चूँकि मीडिया इतना ज्यादा नही था इसलिए किसी को पता नही चलता रहा होगा।

पर सबसे आश्चर्य जनक बात तो पुलिस चीफ ने कही है कि अगर आप अपनी बीबियों की सुरक्षा चाहते है तो उन्हें घर मे रखिये।अब अगर पुलिस ही ऐसा कहती है तो फिर जनता किससे शिक़ायत करेगी।

१९८६ दिसम्बर की बात है हम लोग मुम्बई तब की बम्बई घूमने गए थे।हम लोग और हम लोगों के एक दोस्त की फैमिली थी , बच्चे छोटे थे। और हम लोग जुहू पर ठहरे थे।गाड़ी और ड्राईवर था इसलिए घूमने मे कोई मुश्किल नही हो रही थी।३१ दिसम्बर की सुबह हम लोग एलिफ़नता केव्स देखने गए थे।हम लोगों की कार के ड्राईवर ने बोट पर हम लोगों को छोड़ते हुए कहा कि उसे शाम को छुट्टी चाहिऐ औए कल यानी पहली जनवरी को वो फिर आ जाएगा।तो बिना कुछ सोचे समझे हम लोगों ने उसे छुट्टी दे दी । चूँकि उस समय हम लोगों को जरा भी अंदाजा नही था कि शाम होते-होते बम्बई बिल्कुल बदल जायेगी यानी चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ भीड़ ही नजर आएगी और कोई भी टैक्सी गेट वे ऑफ़ इंडिया से जुहू जाने को तैयार ही नही होगी।

खैर किसी तरह घूमते-घूमते जब कोई टैक्सी जुहू जाने को नही मिली तो हम लोगों ने बस से ही जुहू जाने की सोची और एक डबल -डेकर बस मे चढ़ भी गए और फिर जो नजारा बम्बई का देखा की बस ये ही लगता रहा कि किसी तरह होटल पहुंच जाये।चारों और लड़के-आदमी और हर एक के हाथ मे बियर की बोतल। बस मे एक अच्छी बात ये थी की बस कंडक्टर फैमिली वालों को नीचे और जितने भी लड़के वगैरा चढ़ते थे उन्हें ऊपर भेज देता था। अब चूँकि बस का कोई आईडिया नही था इसलिए एक बार तो हम लोग जुहू के सामने से ही निकल गए क्यूंकि जब तक हम लोग उतरते उससे पहले ही बस मे भीड़ चढ़ने लगी और बस आगे चल दी। और हम लोगों ने फिर से दोबारा बम्बई का चक्कर लगाया।

इस घटना का यहां जिक्र सिर्फ इसलिए किया है क्यूंकि मुम्बई मे हमेशा से ही नए साल को पूरे जोश से मनाने का चलन रहा है।इसलिए नए साल मे भीड़ भाड़ होना, लोगों का सड़कों पर घूमना कोई नयी बात नही है।पर शायद अब पुलिस का इस सब को देखने का रवैया कुछ बदल सा गया है।

Comments

ममता जी, आप ने एक बिल्कुल सुलगता मुद्दा उठाया है,और निःसंदेह यह हम सब के लिए एक चिंता का विषय है। मेरी भी , ममता जी, बम्बई में 10 साल तक पोस्टिंग रही है। इसलिए हम सब को यह लगता रहा है कि सारे हिंदोस्तान में अगर कोई जगह महिलाओं के लिए सुरक्षित है तो बंबई ही है। लेकिन अब कभी कभी इस विश्वास को ठेस सी लगने लगी है। वैसे भी लोग इस हुल्लड़बाजी में यह क्यों भूल जात हैं कि ......your freedom ends where my nose starts !! ऐसी घटनाओं की जितनी निंदा हो उतनी कम है। और इस तरह की वारदातें करने वालों को कठोर से कठोर सजा मिलनी चाहिए।
Pankaj Oudhia said…
इस भीड तंत्र मे ऐसे अवसरो पर घर पर ही रहना ठीक है। मैने हर बार की तरह नये वर्ष का स्वागत लेखन करते-करते किया। बाहर शोर सुनता रहा जो कि हर साल तेज हो रहा है। कभी-कभी लगता है कि क्या हम इतने नीरस है जो सब खुशियाँ मना रहे है और हम अपने काम मे लगे है पर दूसरे ही पल सडको पर गालिया देते तेज मोटर साइकल मे सवार नवजवानो को देखता हूँ तो अपने निर्णय पर खुश हो जाता हूँ।
आधी मुम्बई महिलाओं की है। अब तक उन में उबाल क्यों नहीं है यह समझ नहीं आया। आज इस दुर्घटना का तीसरा दिन है मुम्बई के लोगों का तापमान क्या रहता है? यही देखना है, यही यह भी तय करेगा कि मुम्बई भविष्य में किस ओर जाएगी।
उस दुखदायी घटना के बाद से एक बार फिर हमने साबित कर दिया है कि अभी हमें सभ्‍य होने पर थोड़ा वक्‍त लगेगा

just see ashishmaharishi.blogspot.com
"पर सबसे आश्चर्य जनक बात तो पुलिस चीफ ने कही है कि अगर आप अपनी बीबियों की सुरक्षा चाहते है तो उन्हें घर मे रखिये।अब अगर पुलिस ही ऐसा कहती है तो फिर जनता किससे शिक़ायत करेगी।"

गलती पूरी तरह पुलीस की नहीं है. सामाजिक माहौल इतनी तेजी से बिगड रहा है, पुलीस के ऊपर राजनैतिक दबाव इतना अधिक है, कि स्थिति काबू के बाहर है. फिलहाल नागरिकों की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है.

जब नागरिकों के बीच चेतना जागेगी तभी पुलीस कुछ कर पायगी. सारी जिम्मेदारी उनकी नहीं है.
ghughutibasuti said…
हमें, चाहे हम स्त्री हों या पुरुष, अपने आप पर लज्जित होना चाहिये। इन लड़कों/ पुरुषों को ऐसे संस्कार हम माता पिता व समाज ने ही दिये हैं ।
घुघूती बासूती

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