फिसड्डी से नंबर वन
आजकल हम इलाहाबाद आये हुए है अपने मायके पापा के पास। और हां आप लोग बिल्कुल भी confuse मत होइये कि हम इलाहाबाद कैसे पहुंच गए दिल्ली से एक हफ्ते के लिए हम यहाँ पापा और भैया के पास आये हुए है और ये पोस्ट हम इलाहाबाद से ही लिख रहे है । हमारे पापा भी हमारी तरह ही बहुत ज्यादा कंप्यूटर सेवी नही है इसलिये उन्होने हमारे ब्लोग को पढा ही नही था तो कल सुबह हमने उन्हें अपना ब्लोग पढ़ाया और उन्हें पढ़कर अच्छा भी लगा और ये जो टाइटिल आप ने ऊपर पढा है वो उन्ही का दिया हुआ है। तो अब इस के पीछे की कहानी भी बता देते है। दरअसल हम जब स्कूल मे पढ़ते थे तो हम पढने के सिवा हर काम करते थे वो चाहे बाटिक पेंटिंग सीखना हो या चाहे badminton खेलना हो या कुछ और कहने का मतलब पढाई से तो कोसों दूर रहते थे जिसकी वजह से सभी को लगता था कि अबकी तो ममता गयी पर हम पर हर बार भगवान् कुछ कृपा कर देते थे और हम पास भी हो जाते थे। और जब हम दसवी मे थे उस समय हमारे सिवा घर मे सभी को टेंशन था की हम पास होंगे या नही और सबसे बड़ी गड़बड़ ये थी की उन्ही दिनों हमारे मामाजी के बेटे की शादी पड़...