दूरदर्शन और हम लोग

अब कल दूरदर्शन के समाचार की बात करी तो भला उस पर आने वाले कार्यक्रमों को कैसे ना याद करें । जब सत्तर के दशक मे टेलिविज़न आया था तो दिल्ली ,मुम्बई जैसे शहरों और पूरे उत्तर प्रदेश मे सिर्फ़ लखनऊ और बाद मे कानपुर मे दूरदर्शन के कार्यक्रम आते थे । और बाद मे धीरे धीरे बाक़ी शहरों मे भी इसके कार्यक्रम दिखाये जाने लगे थे । शुरू मे तो सिर्फ़ शाम को ही प्रोग्राम आते थे ,वो चाहे न्यूज़ हो या चित्रहार हो या रविवार की पिकचर । पर धीरे धीरे सुबह दो घंटे का प्रसारण शुरू हुआ फिर दोपहर मे भी प्रोग्राम आने लगे थे ।

चित्रहार का समय रात आठ बजे का होता था और जब चित्रहार आता था तो हम सब काम काज छोड़कर टी.वी के सामने बैठ जाते थे । आधे घंटे मे सात या आठ गाने दिखाये जाते थे तब विज्ञापन बहुत नहीं दिखाते थे । रविवार को पुरानी ब्लैक और व्हाइट फ़िल्म शायद पाँच बजे या छ: बजे से दिखाते थे। भले पिकचर देखी हुई हो पर फिर भी देखते थे ।

तबससुम का फूल खिले है गुलशन गुलशन प्रोग्राम भी बहुत रोचक होता था जिसमें वो किसी फ़िल्मी कलाकार से बातचीत करती और गाने सुनवाती थी । और बाद मे शाम को छ: बजे कृषि दर्शन का कार्यक्रम आता था जिसमें चौपाल लगाकर किसान लोग अपनी खेती बाड़ी से जुड़ी समस्या बताते थे और विशेषज्ञ लोग उसका समाधान बताते थे और इस कार्यक्रम के अन्त मे किसी एक प्रदेश का लोकनृत्य प्रस्तुत किया जाता था । अब भी ऐसे प्रोग्राम दूरदर्शन पर ज़रूर आते होगे ।धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और डॉली जी का योग पर आधारित कार्यक्रम भी बड़ा रोचक होता था ।

समय बदला और अस्सी के दशक मे धीरे धीरे रविवार की सुबह भी कुछ देर का प्रोग्राम आना शुरू हुआ । रविवार की सुबह योग का कार्यक्रम फिर नरोत्तम पुरी का दस क़दम जो कि सेहतमंद रहने के लिये बहुत ही आसान सी कसरत करवाते थे । पौने दस बजे से विनोद दुआ आपके लिये नाम का प्रोग्राम प्रस्तुत करने लगे जिसे देखना का अपना ही मज़ा था जिसमें कुछ बातें और शायद गाने भी होते थे । उसी समय के दौरान रविवार की सुबह कुछ सीरियल जैसे तृप्ति शुरू हुआ जोकि काफ़ी अच्छा था। दोपहर मे तीन बजे रीजिनल मूवी दिखाई जाती थी और इसके बाद हिन्दी फ़िल्म दिखाई जाती थी ।

इस समय तक चित्रहार हफ़्ते मे दो दिन यानि बुधवार और शुक्रवार को आना शुरू हो गया था । और दूरदर्शन मे बहुत से नये ,अच्छे और मनोरंजक कार्यक्रम शुरू किये गये जिसमें कुछ बहुत ही अच्छे धारावाहिक थे ,जी हाँ बिलकुल सही हम उन्हीं की बात कर रहे है । 😋

हम लोग और बुनियाद तो याद ही होगा ।हम लोग तो नौ या साढ़े नौ बजे आता था जिसमें दादा,दादी,बसेसर राम, भागवंती, बडकी,मझली,छुटकी ,नन्हें, लल्लू सब एक से बढ़ कर एक । आधे घंटे का शो होता था और हर कोई तब तक टी.वी देखता बैठा रहता था जब तक कि अशोक कुमार शो को ख़त्म ना कर दे क्योंकि वो धारावाहिक के आख़िर मे अपने ही अन्दाज़ मे कहते थे कि कि बड़की के साथ क्या हुआ कल देखेंगे हम लोग ।

बुनियाद के हवेली राम ,लाजो जी और गैंडाराम को कैसे भुलाया जा सकता है। आलोक नाथ,अनीता कँवर ,सुधीर पांडे, सोनी राज़दान ने कितना जीवन्त अभिनय किया था । मास्टरजी का लाजवंती को लाजो जी कहना और लाजोजी का मास्टरजी कहना ।
इसके बाद तो बहुत सारे धारावाहिक शुरू हो गये थे जैसे करमचंद उनका गाजर खाना और उनकी सहयोगी मिस किटटी भी ज़रूर याद होगी । उड़ान,मालगुडी डेज़ ,ये जो है ज़िन्दगी ,देख भाई देख,मुंगेरी लाल के हसीन सपने ,श्याम बेनेगल का भारत एक खोज ।

शाह रूख खान का फ़ौजी ,सरकस ,दिल दरिया,नुक्कड़ ,कश्मीर पर आधारित गुल गुलशन गुलफाम,प्रिया तेन्दुलकर का रजनी , मन्दिरा बेदी का धारावाहिक शान्ती जो दोपहर मे आया करता था । और हाँ शेखर सुमन और किरन जुनेजा का वाह जनाब और विक्रम बेताल ,आ बैल मुझे मार ,गोविन्द निहलानी का तमस जिसके कुछ सीन आज भी याद है , और भी बहुत सारे धारावाहिक आते थे। हेमा मालिनी का भी कोई धारावाहिक आता था,नाम नहीं याद है।


और इसके बाद रविवार की सुबह जब धारावाहिक रामायण आना शुरू हुआ तो हर घर मे लोग सुबह नहा धोकर रामायण देखने बैठते थे । हम भी ऐसा ही करते थे और हर कोई पूरे भक्ति भाव से इसे देखता था । चूंकि इस समय तक वीडियो रिकार्डर आ गया था तो इसे रिकार्ड भी करने लगे थे । फिर महाभारत ,श्री कृष्ण, जैसे धारावाहिक भी आये थे । पर सबसे अच्छी बात यह थी कि तय समय सीमा मे सभी धारावाहिक ख़त्म हो जाते थे ।

पर बाद मे दूरदर्शन के धारावाहिक मे वो बात नहीं रही और शायद इसीलिये देखना छोड़ दिया । 😒

आज तो पोस्ट कुछ लम्बी हो गई । 😁



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