दिल्ली से गोवा वापसी का सफर jetlite से
करीब ढाई महीने दिल्ली रहकर पिछले शनिवार वापिस गोवा आ गए । वैसे इस बार दिल्ली से गोवा का हवाई सफर भी जरा सफ्फरी मामला रहा । :) कैसे ? अरे बताते है ना ।
हर बार की तरह इस बार भी हमने jetlite की फ्लाईट बुक की थी पर इस बार का jetlite का अनुभव हर बार की तरह का नही था । एयर पोर्ट पर पहुँच कर जब चेक इन करने के लिए गए तो काउन्टर पर बैठी लड़की ने हमसे पूछा कि कौन सी सीट लेना पसंद करेंगे तो हमने विण्डो सीट कहा । और जब प्लेन मे पहुंचे तो विण्डो सीट को देख कर समझ नही आया कि आख़िर उसने प्लेन मे सीट का ऑप्शन पूछा ही क्यूँ था। असल मे हुआ ये थे कि हमे A 10 सीट मिली थी जहाँ पर खिड़की थी ही नही। वैसे वहां इमरजेंसी एग्जिट भी नही लिखा था । तो सबसे पहले तो एयर होस्टेस को बुलाकर सीट बदलने के लिए कहा तो उसने कहा कि जब फ्लाईट टेक ऑफ़ करने लगेगी माने जब बोर्डिंग बंद हो जायेगी तब वो हमारी सीट change कर देगी । और जैसे ही प्लेन का दरवाजा बंद हुआ तो उसने हमें आगे की लाइन जो की पूरी खाली थी उस सीट पर शिफ्ट होने को कहा । तो इस तरह सीट का मसला तो हल हो गया ।
अब जब जून मे हम गोवा से दिल्ली गए थे तब तो jetlite मे बैठते ही वेट टॉवेल दिया गया था फ़िर टॉफी फ़िर पानी,और खाना वगैरा सर्व किया गया था पर दिल्ली से वापसी मे jetlite मे फ्लाईट जब उड़ गई तब भी न तो टॉफी और न ही पानी वगैरा सर्व किया गया ।बल्कि एक अनौन्समेंट किया गया की कैफे काफ़ी डे की तरफ़ से खाने-पीने की चीजें उपलब्ध है आप उन्हें खरीद कर खा सकते है । और साथ ही एक scratch and win के बारे मे भी बताया । १५ मिनट बाद एयर होस्टेस ने scratch and win वाला card सभी यात्रियों को दिया । और हमने scratch किया तो उसमे लुईस क्वार्टज की एक घड़ी निकली जिसका दाम तो ३९९० लिखा था और जिसे एयर पोर्ट पर ५०० रूपये देकर लिया जा सकता था। (एक यही मन को सांत्वना देने के लिए था की चलो कम से कम ५०० रूपये मे घड़ी तो मिली । अब घड़ी कैसी है ये तो समय ही बतायेगा । ) :)
खैर जब एयर होस्टेस आई और हमसे ऑर्डर करने को कहा । तो ऑर्डर करने से पहले हमने उससे पूछा कि क्या अब इस फ्लाईट मे भी खाना वगैरा सर्व करना बंद कर दिया गया है। तो उसने हाँ कहा।
और जब हमने उससे पूछा कि ऐसा कब से हुआ तो उसने बताया कि ८ अगस्त से।
खैर हमने उससे सैंडविच और काफ़ी ली और काफ़ी पीते हुए सोचते रहे कि jetlite भी अब बाकी एयर लाईन्स (लो फेयर एयर लाईन्स ) की तरह ही हो गई है । हालाँकि अब तो कोई भी एयर लाईन्स लो फेयर की नही रह गई है । (वैसे अब कुछ लो फेयर एयर लाईन्स मे पानी फ्री मे देते है )
साढ़े पाँच हजार का टिकट है (जो अभी तक तो लो फेयर मे नही माना जाता था ) और एक छोटी बोतल पानी और चार टॉफी देने मे इनका भला कितना खरचा हो जायेगा । और हमने बैठे-बैठे एक मोटा सा हिसाब लगाया तो लगा की अधिक से अधिक २५-५० हजार का खरचा होगा अगर एक एयर लाईन्स की ५० फ्लाईट चल रही हो तो ।
पता नही हमारा हिसाब कितना ठीक है पर jetlite से यात्रा करने के बाद हम ये सोचने पर मजबूर हो गए कि जब हम दिल्ली से इलाहाबाद राजधानी से गए थे तो रेलवे ने १३०० रु के किराये मे पानी की बड़ी बोतल ,लंच(जिसमे सूप और ice-cream ),शाम की चाय -नाश्ता और डिनर भी सर्व किया था ।
तो ये तो था हमारी वापसी के सफर का वर्णन और वापसी मे प्लेन से ही २-४ फोटो खींची है जिन्हें यहाँ लगा रहे है . शुरू मे लौटकर २-४ दिन तो फुर्सत ही नही मिली कि ब्लॉग जगत खोला जाए और जब फुर्सत हुई तो कम्प्यूटर ने चलने से इनकार कर दिया । खैर अब आज से हमारे कम्पूटर जी का दिमाग भी ठीक हो गया है । :)
नोट -- हमारी इलाहाबाद यात्रा (६)वाली पोस्ट पर ज्ञान जी ने पूछा था की हमने दो हफ्ते लिखने मे क्यूँ लगाए थे तो वो इसलिए क्यूंकि हम उस समय अपनी इलाहाबाद यात्रा का पूरा वृत्तांत जो लिख रहे थे । :)
और इसीलिए इस बार एक हफ्ते मे ही लिख दिया । :)
हर बार की तरह इस बार भी हमने jetlite की फ्लाईट बुक की थी पर इस बार का jetlite का अनुभव हर बार की तरह का नही था । एयर पोर्ट पर पहुँच कर जब चेक इन करने के लिए गए तो काउन्टर पर बैठी लड़की ने हमसे पूछा कि कौन सी सीट लेना पसंद करेंगे तो हमने विण्डो सीट कहा । और जब प्लेन मे पहुंचे तो विण्डो सीट को देख कर समझ नही आया कि आख़िर उसने प्लेन मे सीट का ऑप्शन पूछा ही क्यूँ था। असल मे हुआ ये थे कि हमे A 10 सीट मिली थी जहाँ पर खिड़की थी ही नही। वैसे वहां इमरजेंसी एग्जिट भी नही लिखा था । तो सबसे पहले तो एयर होस्टेस को बुलाकर सीट बदलने के लिए कहा तो उसने कहा कि जब फ्लाईट टेक ऑफ़ करने लगेगी माने जब बोर्डिंग बंद हो जायेगी तब वो हमारी सीट change कर देगी । और जैसे ही प्लेन का दरवाजा बंद हुआ तो उसने हमें आगे की लाइन जो की पूरी खाली थी उस सीट पर शिफ्ट होने को कहा । तो इस तरह सीट का मसला तो हल हो गया ।
अब जब जून मे हम गोवा से दिल्ली गए थे तब तो jetlite मे बैठते ही वेट टॉवेल दिया गया था फ़िर टॉफी फ़िर पानी,और खाना वगैरा सर्व किया गया था पर दिल्ली से वापसी मे jetlite मे फ्लाईट जब उड़ गई तब भी न तो टॉफी और न ही पानी वगैरा सर्व किया गया ।बल्कि एक अनौन्समेंट किया गया की कैफे काफ़ी डे की तरफ़ से खाने-पीने की चीजें उपलब्ध है आप उन्हें खरीद कर खा सकते है । और साथ ही एक scratch and win के बारे मे भी बताया । १५ मिनट बाद एयर होस्टेस ने scratch and win वाला card सभी यात्रियों को दिया । और हमने scratch किया तो उसमे लुईस क्वार्टज की एक घड़ी निकली जिसका दाम तो ३९९० लिखा था और जिसे एयर पोर्ट पर ५०० रूपये देकर लिया जा सकता था। (एक यही मन को सांत्वना देने के लिए था की चलो कम से कम ५०० रूपये मे घड़ी तो मिली । अब घड़ी कैसी है ये तो समय ही बतायेगा । ) :)
खैर जब एयर होस्टेस आई और हमसे ऑर्डर करने को कहा । तो ऑर्डर करने से पहले हमने उससे पूछा कि क्या अब इस फ्लाईट मे भी खाना वगैरा सर्व करना बंद कर दिया गया है। तो उसने हाँ कहा।
और जब हमने उससे पूछा कि ऐसा कब से हुआ तो उसने बताया कि ८ अगस्त से।
खैर हमने उससे सैंडविच और काफ़ी ली और काफ़ी पीते हुए सोचते रहे कि jetlite भी अब बाकी एयर लाईन्स (लो फेयर एयर लाईन्स ) की तरह ही हो गई है । हालाँकि अब तो कोई भी एयर लाईन्स लो फेयर की नही रह गई है । (वैसे अब कुछ लो फेयर एयर लाईन्स मे पानी फ्री मे देते है )
साढ़े पाँच हजार का टिकट है (जो अभी तक तो लो फेयर मे नही माना जाता था ) और एक छोटी बोतल पानी और चार टॉफी देने मे इनका भला कितना खरचा हो जायेगा । और हमने बैठे-बैठे एक मोटा सा हिसाब लगाया तो लगा की अधिक से अधिक २५-५० हजार का खरचा होगा अगर एक एयर लाईन्स की ५० फ्लाईट चल रही हो तो ।
पता नही हमारा हिसाब कितना ठीक है पर jetlite से यात्रा करने के बाद हम ये सोचने पर मजबूर हो गए कि जब हम दिल्ली से इलाहाबाद राजधानी से गए थे तो रेलवे ने १३०० रु के किराये मे पानी की बड़ी बोतल ,लंच(जिसमे सूप और ice-cream ),शाम की चाय -नाश्ता और डिनर भी सर्व किया था ।
तो ये तो था हमारी वापसी के सफर का वर्णन और वापसी मे प्लेन से ही २-४ फोटो खींची है जिन्हें यहाँ लगा रहे है . शुरू मे लौटकर २-४ दिन तो फुर्सत ही नही मिली कि ब्लॉग जगत खोला जाए और जब फुर्सत हुई तो कम्प्यूटर ने चलने से इनकार कर दिया । खैर अब आज से हमारे कम्पूटर जी का दिमाग भी ठीक हो गया है । :)
नोट -- हमारी इलाहाबाद यात्रा (६)वाली पोस्ट पर ज्ञान जी ने पूछा था की हमने दो हफ्ते लिखने मे क्यूँ लगाए थे तो वो इसलिए क्यूंकि हम उस समय अपनी इलाहाबाद यात्रा का पूरा वृत्तांत जो लिख रहे थे । :)
और इसीलिए इस बार एक हफ्ते मे ही लिख दिया । :)
Comments
वैसे फोटो अच्छी है
regards
Anurag bhai, Mamta ji ne to teen char kheenche main to 40 kheench chuka hoon. Are janab Sirf take off aur land karne ke waqt photo kheechne ya koyi bhi electronic equipment use karne ki manahi hoti hai.
ओर फ़ोटो बहुत ही सुन्द आय़ॆ,लगता हे आप की सीट पंखो के थो॑डी पिछे ही थी.
अनुराग जी ओर अभिषेक जी, आप फ़ोटो खींच सकते हे, जब किसी को ऎतराज ना हो तो, मेने तो प्लेन मे विडियो भी खींचा हे ३ साल पहले, लेकिन आप पहले पुछ ले
ये कैमरा कब से मना हो गया भई फ्लाइट में..हम तो अभी अभी खीचें हैं १० दिन पहले..वो भी इन्टरनेशनल फ्लाइट में..
Photos shandaar hain, Allahabad ki bhi aur flights se kheenchi hui bhi
स्नेह,
- लावण्या
खट्टा-मीठा...