इलाहाबाद यात्रा की यादें (६ )प्रयाग राज एक्सप्रेस से वापिस दिल्ली का सफर
एक हफ्ते इलाहाबाद मे रहकर २९ अगस्त को हम इलाहाबाद से वापिस दिल्ली के लिए प्रयाग राज एक्सप्रेस जो रात ९.३० बजे चल कर सुबह ६.५० पर दिल्ली पहुँचती है उस से चले पर इस बार भी रास्ते मे कुछ न कुछ तो होना ही था । :) जब हम ट्रेन मे अपने कोच A-3 मे अपनी सीट पर पहुंचे तो देखा कि हमारी आधी से ज्यादा सीट पर खूब सारा सामान रखा है बैग और सूट केस वगैरा और नीचे जहाँ सामान रखते है वहां भी जगह खाली नही थी। गनीमत है कि हमारे पास एक छोटी सी अटैची और एक बैग ही था।तो सामने वाली बर्थ पर बैठी हुई महिला से पूछा कि क्या ये आपका सामान है तो उसने इनकार किया तभी एक और सज्जन ने लपक कर बताया कि ये उनका सामान है और चूँकि वो ५-६ लोग एक साथ है और सबकी सीट अलग-अलग है इसलिए यहाँ पर सबका सामान एक साथ रख दिया है । ये सुनकर खीज तो बहुत हुई पर फ़िर कुली से कहा कि इसे किसी तरह नीचे रख दो।
जैसे ही ट्रेन चलने को हुई कि उस ग्रुप मे से एक सज्जन खाने का एक पैकेट लेकर आए और उसे भी उसी सामान पर रख कर चला गए । ट्रेन ठीक समय ९.३० पर चल दी और ट्रेन चलने के १० मिनट बाद उस ग्रुप मे से एक सज्जन आए और खाने का पैकेट ले जाते हुए अपने ग्रुप के बाकी लोगों से बोले कि मैं खाना ला रहा हूँ। ये सुनकर तो हमे और भी खीज हुई कि खाना तो ले जा रहे है पर सामान हटाने की कोई जल्दी नही । तो हमने उन्हें रोक कर कहा कि जब आप खाना ले ही जा रहे है तो सामान भी लेते जाइए। तो बेचारे अचकचा कर बोले कि मैम अभी थोडी देर मे ले जाते है।तो हमने कहा कि ठीक है पर आप सामान को खिड़की से हटाकर रख दे क्यूंकि हम उधर बैठना चाहते है। खैर उन्होंने सामान शिफ्ट किया और खाना खाने चले गए।
पर जब १० बज गया और टी.टी. आकर टिकट चेक कर रहा था तब उनमे से एक सज्जन टी.टी.से कहने लगे कि सबकी सीट एक ही कोच मे कर दे।हम मन ही मन खुश हो रहे थे कि चलो अब तो ये सामान हटा लेंगे पर कहाँ ऐसी हमारी किस्मत। टी.टी. ये कह कर कि अभी थोडी देर बाद देखेंगे चला गया। सवा दस बजे फ़िर उनमे से एक को हमने बुलाया और उन्हें अपना सामान ले जाने को कहा तो उन्होंने बमुश्किल सामान तो हटाया पर एक बड़ा बैग और एक छोटा प्लास्टिक का पैकट हमारी सीट पर ये कहकर छोड़ दिया कि अभी १० मिनट मे ले जाते है।
इसी बीच मे ऊपर की बर्थ जिन सज्जन की थी उनकी जान-पहचान के लोग मिल गए और वो लोग हमारी और सामने वाली महिला की सीट पर बैठ कर गप्पे मारने लगे। और फ़िर हमारी और उस महिला की भी बात शुरू हुई आख़िर समय तो काटना ही था क्यूंकि एक तो सामान रक्खा था और उसपर से वो लोग सोने के मूड मे ही नही थे क्यूंकि सरकार और कोर्ट सबकी बातें जो उन्हें करनी थी। :)
१०.३० बजे हम दोनों महिलाओं के सब्र का बाँध टूट गया और चूँकि हम दोनों महिलाओं की नीचे की बर्थ थी इसलिए हम लोगों ने सीट पर चादर वगैरा बिछाना शुरू किया जिससे वो लोग गप्पें मारना बंद करके सोने जाएँ ।खैर एक बार फ़िर उन सज्जन को बैग ले जाने के लिए भी कहना पड़ा।और तब कहीं जाकर हम लोग सो पाये।
पर इस बार भगवान और रेलवे को हमारी यात्रा मे कुछ न कुछ गड़बड़ तो करनी ही थी। रात भर ट्रेन ठीक से चलती रही और गाजियाबाद जब क्रॉस किया तो लगा कि कहीं ट्रेन दिल्ली before time ना पहुँच जाए । पर ऐसे नसीब कहाँ थे गाजियाबाद से चली तो जैसे ही यमुना क्रॉस किया कि ट्रेन रुक ही गई ऐसा लग रहा था मानो दिल्ली कहीं दूर चली गई है। और ट्रेन मे बैठे-बैठे इतना कुढे कि बस पूछिए मत। खैर फ़िर २० मिनट का सफर ४० मिनट मे पूरा हुआ। माने झूलते-झूलते दिल्ली पहुंचे।
और इस तरह हमारी इलाहाबाद यात्रा पूरी हुई। :)
जैसे ही ट्रेन चलने को हुई कि उस ग्रुप मे से एक सज्जन खाने का एक पैकेट लेकर आए और उसे भी उसी सामान पर रख कर चला गए । ट्रेन ठीक समय ९.३० पर चल दी और ट्रेन चलने के १० मिनट बाद उस ग्रुप मे से एक सज्जन आए और खाने का पैकेट ले जाते हुए अपने ग्रुप के बाकी लोगों से बोले कि मैं खाना ला रहा हूँ। ये सुनकर तो हमे और भी खीज हुई कि खाना तो ले जा रहे है पर सामान हटाने की कोई जल्दी नही । तो हमने उन्हें रोक कर कहा कि जब आप खाना ले ही जा रहे है तो सामान भी लेते जाइए। तो बेचारे अचकचा कर बोले कि मैम अभी थोडी देर मे ले जाते है।तो हमने कहा कि ठीक है पर आप सामान को खिड़की से हटाकर रख दे क्यूंकि हम उधर बैठना चाहते है। खैर उन्होंने सामान शिफ्ट किया और खाना खाने चले गए।
पर जब १० बज गया और टी.टी. आकर टिकट चेक कर रहा था तब उनमे से एक सज्जन टी.टी.से कहने लगे कि सबकी सीट एक ही कोच मे कर दे।हम मन ही मन खुश हो रहे थे कि चलो अब तो ये सामान हटा लेंगे पर कहाँ ऐसी हमारी किस्मत। टी.टी. ये कह कर कि अभी थोडी देर बाद देखेंगे चला गया। सवा दस बजे फ़िर उनमे से एक को हमने बुलाया और उन्हें अपना सामान ले जाने को कहा तो उन्होंने बमुश्किल सामान तो हटाया पर एक बड़ा बैग और एक छोटा प्लास्टिक का पैकट हमारी सीट पर ये कहकर छोड़ दिया कि अभी १० मिनट मे ले जाते है।
इसी बीच मे ऊपर की बर्थ जिन सज्जन की थी उनकी जान-पहचान के लोग मिल गए और वो लोग हमारी और सामने वाली महिला की सीट पर बैठ कर गप्पे मारने लगे। और फ़िर हमारी और उस महिला की भी बात शुरू हुई आख़िर समय तो काटना ही था क्यूंकि एक तो सामान रक्खा था और उसपर से वो लोग सोने के मूड मे ही नही थे क्यूंकि सरकार और कोर्ट सबकी बातें जो उन्हें करनी थी। :)
१०.३० बजे हम दोनों महिलाओं के सब्र का बाँध टूट गया और चूँकि हम दोनों महिलाओं की नीचे की बर्थ थी इसलिए हम लोगों ने सीट पर चादर वगैरा बिछाना शुरू किया जिससे वो लोग गप्पें मारना बंद करके सोने जाएँ ।खैर एक बार फ़िर उन सज्जन को बैग ले जाने के लिए भी कहना पड़ा।और तब कहीं जाकर हम लोग सो पाये।
पर इस बार भगवान और रेलवे को हमारी यात्रा मे कुछ न कुछ गड़बड़ तो करनी ही थी। रात भर ट्रेन ठीक से चलती रही और गाजियाबाद जब क्रॉस किया तो लगा कि कहीं ट्रेन दिल्ली before time ना पहुँच जाए । पर ऐसे नसीब कहाँ थे गाजियाबाद से चली तो जैसे ही यमुना क्रॉस किया कि ट्रेन रुक ही गई ऐसा लग रहा था मानो दिल्ली कहीं दूर चली गई है। और ट्रेन मे बैठे-बैठे इतना कुढे कि बस पूछिए मत। खैर फ़िर २० मिनट का सफर ४० मिनट मे पूरा हुआ। माने झूलते-झूलते दिल्ली पहुंचे।
और इस तरह हमारी इलाहाबाद यात्रा पूरी हुई। :)
Comments
आपके लेखन में आज भी वही ताजगी है जो हमेशा होती थी!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
ऐसी यात्रा करवाती रहीये ममता जी ...
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I don’t want to love you… but I do....