इलाहाबाद यात्रा की यादें (५) बाजार और सिनेमा हॉल
अब आपको जब इलाहाबाद घुमा ही रहे है तो क्यूँ न इलाहाबाद के बाजार और सिनेमा हॉल के बारे मे भी कुछ बता दें। जिससे अगर कभी आप वहां जाए तो इसी बहाने हमें याद करेंगे. :)तो तैयार है न अपना पर्स लेकर बाजार घुमने के लिए। अब इलाहाबाद मे ३ बाजार ज्यादा मशहूर है कटरा ,चौक और सिविल लाईन्स ।
३०-४० साल पहले तो सिर्फ़ कटरा और चौक मे ही खूब भीड़ होती थी पर अब तो सिविल लाईन्स मे भी भीड़ बहुत होने लगी है। इस बार तो सिविल लाईन्स मे बहुत कुछ नया देखने को मिला जैसे अब सिविल लाईन्स मे भी बहुत सारे शो रूम खुल रहे है जैसे levis ,reebok ,koutons, t.n.g.बिग बाजार ,सालासार , ऐसे ही कुछ और शो रूम ।पर कुछ चीजें सिविल लाईन्स मे बिल्कुल नही बदली है जैसे सांवल दास खन्ना की दुकान या बॉम्बे डाईंग की शॉप और न ही सिविल लाईन्स का सोफ्टी कार्नर बिल्कुल भी बदला है।और न ही वहां खड़ा होने वाला पुड़िया वाला (अरे वही मुरमुरे वाला ) :) हालांकि हमने वहां न तो सोफ्टी खाई और न ही पुडिया खाई। :(
कटरा और चौक तो जैसे ४० साल पहले थे वैसे ही अब भी है बस फर्क इतना लगा की कटरा की सभी दुकाने एक मंजिल की बजाय ३ मंजिला हो गई है। भीड़ और गाय-भैंसों का हाल भी वही है। जरा भी नही बदला है। हाँ कुछ दुकाने अब air conditioned जरुर हो गई है।क्या आपको राम जी लाल रतन प्रकाश की दुकान याद है बाप रे पहले जब कभी मम्मी के साथ वहां जाना पड़ जाता था तो हम सब कतराते थे वहां उस दुकान पर जाने से क्यूंकि एक तो गर्मी दूसरे बहुत देर लग जाती थी उनकी दुकान मे । पर इस बार देखा तो उनकी दुकान भी air conditioned हो गई है। और नेतराम की दुकान तो आप इस फोटो मे देख ही सकते है।इस दूकान की इमरती बहुत ही स्वादिष्ट होती है। पर हाँ इस बार कटरा मे नए तरह का रिक्शा भी देखा । इसमे अच्छी बात ये है की रिक्शे मे बैठी सवारी के साथ-साथ रिक्शे वाला भी धूप और बारिश से बच सकता है।है ना stylo रिक्शा।
चौक के बारे मे क्या कहा जाए इसके बारे मे तो हर कोई जानता ही है। चौक का मतलब ही भीड़-भाड़ वाला बाजार होता है। वो चाहे किसी भी शहर का चौक का इलाका क्यूँ न हो। iskcon जाते हुए हम चौक से गुजरे थे बिल्कुल पहले की तरह ही आज भी कहीं भी ट्रैफिक जैम हो जाता है । और कोई भी रुकने को तैयार नहीं होता है फ़िर वो चाहे कार वाला हो या साइकिल या फ़िर रिक्शे वाला ही क्यूँ न हो। अब जैसे हम लोग मानसरोवर पिक्चर हॉल के सामने ट्रैफिक जैम मे फंस गए थे।ये फोटो उसी ट्रैफिक की है।
अब इलाहाबाद घूमियेगा तो एक आध पिक्चर भी तो देखियेगा तो चलिए लगे हाथ कुछ पिक्चर हॉल के बारे मे भी बता दे।वैसे तो इलाहाबाद मे काफ़ी पिक्चर हॉल है और तकरीबन हर एरिया मे एक दो सिनेमा हॉल तो है सोफे। वैसे अब तो इलाहाबाद मे भी सिने प्लेक्स का चलन शुरू हो गया है और इसका टिकट भी दिल्ली की तरह बहुत महंगा नहीं है बस ५० रूपये का है. पर फ़िर भी कुछ सिनेमा हॉल है जो आज भी जैसे के तैसे है जिसे देख कर अच्छा भी लगा और ये सोचने पर मजबूर भी हुए कि अभी भी यहाँ बहुत कुछ बदला नहीं है।
iskcon जाते हुए रास्ते मे विशम्भर पिक्चर हॉल पड़ा तो ये देख कर आश्चर्य हुआ की अब वहां पिक्चर हॉल नही रह गया है बल्कि बैंक और कुछ अन्य दुकाने और ऑफिस खुल गए है। और फ़िर पड़ा मानसरोवर सिनेमा हॉल जस का तस । आज भी वहां जनता स्टाल का टिकट ११ रूपये का है। लक्ष्मी टॉकीज को भला कैसे भूल सकते है कटरे का इकलौता सिनेमा हॉल जो था क्या आज भी है। न तो इसका रंग बदला और न ही रूप।कुछ ग़लत तो नही कहा न। :)
सिविल लाईन्स के दो पिक्चर हॉल प्लाजा और पैलेस है।ये दोनों सिविल लाईन्स मे होने के कारण सबसे ज्यादा फिल्म इसी मे देखी है. और पैलेस पिक्चर हॉल की खासियत इस की बालकनी की बड़ी-बड़ी लाल सोफे नुमा सीट थी। प्लाजा तो खैर renovate होकर चल रहा है पर इस बार पता चला कि पैलेस बंद हो गया हैक्यूंकि एक दिन एक पिक्चर के शो के दौरान उसकी छत गिर गई थी और अब सुना है कि सिनेमा हॉल को थियेटर मे बदलने जा रहे है जिससे वहां नाटक वगैरा का मंचन हो सके।
अभी हाल ही मे नैनी मे भी एक नया सिने प्लेक्स खुला है जो सुना है अच्छा है।पहले तो नैनी जाना बहुत मुश्किल माना जाता था पर अब लगता है की नैनी उतना दूर नहीं है। खैर अब जब अगली बार इलाहाबाद जायेंगे तो पिक्चर देखेंगे। :)
Comments
ऐसे लग रहा है जैसे सिविल लाइन्स पाश एरिया है और कटरा शायद पुराना शहर, थोड़ा स्पष्ट कर दीजिए।
रह गये इन्ट्रोवर्ट के इन्ट्रोवर्ट। :-(
धन्यवाद
ये तो हमारा इलाहबाद है
अच्छा है अच्छा है
खूब आनँद लिया हमने भी
ममता जी !:)
-लावण्या
ऎसा लगा अपने गाव की सैर कर के आया हूं।