इलाहाबाद यात्रा की यादें (३)आनंद भवन की सैर
आनंद भवन के बारे मे तो हर कोई जानता है।आख़िर कार ये हमारे देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू जी का घर था। इलाहाबाद मे आनंद भवन और स्वराज भवन बहुत मशहूर है।तो इस बार हमने आनंद भवन और स्वराज भवन देखने का मन भी मनाया। करीब २५-३० साल बाद हम ने आनंद भवन देखा है क्यूंकि जब पढ़ते थे तब ही देखा था।असल मे पापा सुबह १० बजे नाश्ता करके सो जाते थे और इलाहाबाद मे सुबह १० बजे से एक बजे तक लाईट नही रहती है ( अभी से नही पिछले ५-६ सालों से बिजली का यही हाल है ) तो अबकी बार इस तीन घंटे का समय हमने इलाहाबाद घूमकर बिताया।
आनंद भवन की सैर के पहले क्यूँ न थोड़ा सा इसके बारे मे बता दे । आनंद भवन १९२७ मे बना था और १९३१ मे मोती लाल नेहरू और उनका परिवार स्वराज भवन छोड़कर आनंद भवन मे रहने आए थे। १९७० मे इंदिरा गाँधी ने इसे भारत सरकार को दे दिया था और बाद मे इस आनंद भवन को एक museum मे तब्दील कर दिया गया ।
तो चलिए अब आनंद भवन की सैर हो जाए।आनंद भवन १९२७ मे बनवाया गया था । जैसे ही आप गेट से अन्दर प्रवेश करते है तो एक लम्बी सी गोलाकार सड़क मुख्य भवन की ओर जाती दिखाई देती है जिसके एक तरफ़ इस भवन को देखने का समय ,टिकट वगैरा के बारे मे बोर्ड लगा रहता है और दूसरी तरफ़ एक शिला पर इसका छोटा सा इतिहास लिखा है। और बीच मे खूब बड़ा सा गार्डन है।वैसे इस समय तो वहां फूल कुछ ख़ास नही खिले थे पर जाड़े मे जरुर बहुत सुंदर लगता होगा ।चारों ओर गार्डन है और बीच मे दोमंजिला भवन बना हुआ है
। वैसे इस दोमंजिला भवन को घूमने के लिए सिर्फ़ ५ रूपये का टिकट है। और ये टिकट भी सिर्फ़ तब जब आप ऊपर की मंजिल को देखना चाहे वरना अगर आप सिर्फ़ निचली मंजिल पर घूमना चाहते है तो कोई टिकट नही लेना पड़ता है मतलब मुफ्त मे घूमिये और आनंद भवन का आनंद उठाइए। :) टिकट लेने जब जाते है तो टिकट खिड़की से जरा पहले जवाहर लाल नेहरू की वसीयत लिखी हुई है जिसे आप पढ़ सकते है।या यही वसीयत आगे फोटो गैलरी के पास भी लगी है।इसे आप वहाँ भी पढ़ सकते है। (ये दोनोंफोटो गैलरी से लिए गए है। )तो सबसे पहले दाहिने हाथ पर बने कमरे मे गए जहाँ जवाहर लाल नेहरू जी का सामान अलग-अलग शीशे के बक्सों मे रक्खा हुआ दिखाई देता है। जैसे एक बॉक्स मे नेहरू जी ने इंदिरा गाँधी को जो चिट्ठियां लिखी थी वो है तो एक बॉक्स मे उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया ब्लॉटिंग पेपर (जिसमे हैंडल की जगह एक चील जैसा पक्षी बना है ) तो एक अलमारी मे नेहरू जी के कपड़े और जैकेट वगैरा टंगी है। और एक बॉक्स मे चरखा भी रक्खा है।
उसके बाद दूसरे कमरे मे गए जिसके बाहर लिखा है यहाँ नेहरू जी रहते थे।यहाँ नेहरू जी और कमला नेहरू की फोटो टंगी है। इसी कमरे मे एक bed, study table , वगैरा देखी जा सकती है। इस कमरे मे जाते हुए अचानक हमारी नजर वहां के बगीचे मे लगे एक पेड़ पर पड़ी और जब वहां मौजूद गार्ड से पेड़ का नाम पूछा तो उसने सागौन बताया । और इस कमरे से एक दरवाजा दूसरे कमरे मे जाता है और उस दूसरे कमरे मे रक्खी ड्रेसिंग टेबल यहाँ से देखी जा सकती है । (इसका राज बाद मे खुलेगा ) :)
वहां से वापिस आकर बायीं ओर चले तो एक बड़ा कमरा पड़ा जहाँ जमीन पर गद्दे और मसनद रक्खे है और सफ़ेद खादी की चादर बिछी है ये वो कमरा था जहाँ उस समय कांग्रेस की मीटिंग होती थी जहाँ महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे। उससे आगे बढ़ने पर महात्मा गाँधी जी का कमरा आता है दीवार पर गाँधी जी की फोटो टंगी है कमरे मे एक bed है जिसपर खादी की चादर बिछी है और चरखा भी रक्खा है।गाँधी जी जब भी आते थे तो इसी कमरे मे ठहरते थे। इस कमरे से आगे बढ़ने पर इंदिरा गाँधी का कमरा आता है। जहाँ उनकी किताबें फोटो और यहाँ से वही ड्रेसिंग टेबल दिखती है जो नेहरू जी के कमरे से दिखाई पड़ी थी। यहाँ ऊपर से आनंद भवन मे बना planetarium भी देखा जा सकता है। जिसे देखने के लिए २० रूपये का टिकट है।
ऊपर की मंजिल घूमने के बाद निचली मंजिल पर घूमना शुरू किया तो पहले बैठक यानी ड्राइंग रूम ,dinning रूम पड़ा जहाँ उस जमाने का फर्निचर देखा जा सकता है । आगे बढ़ने पर किचन दिखता है जहाँ गुलाबी और हरे रंग के छोटे-छोटे कप -प्लेट और अन्य दूसरे बर्तन देखे जा सकते है।
और ये जो चबूतरा है यहीं पर इंदिरा गाँधी और फिरोज गाँधी की शादी हुई थी । इनकी शादी की फोटो भी आप देख सकते है।
निचली मंजिल घूमने के बाद आगे जाने पर फोटो गैलरी भी देखी जा सकती है।गैलरी के शुरू मे जवाहर लाल नेहरू के बाबा गंगाधर नेहरू और उनके चाचा लोगों की फोटो लगी है। मोती लाल नेहरू कमला नेहरू और जवाहर लाल नेहरू की बचपन की फोटो देखी जा सकती है। साथ-साथ स्वतंत्रता आन्दोलन और उस समय के अन्य महान नेताओं की फोटो भी देखी जा सकती है। यहां पर आनंद भवन का एक मॉडल भी रक्खा हुआ है। गैलरी के अन्दर भी फोटो नही खींची जा सकती है पर बाहर खींच सकते है ।
चलिए आज बहुत घुमाई हो गई अब आराम कीजिये , स्वराज भवन कल घूमेंगे।
Comments
बिजली 10 बजे जाने की समस्या सन 2000 से है, जाने का समय तो तय है किन्तु आने का समय निश्चित नही है। आपके ब्लाग पर तिसरी कड़ी पर कमेंन्ट कर रहा हूँ। दो कडि़यों को फिर देखूँगा।