अंडमान मे रहते हुए जब मजबूरी का एहसास होता है.(१)
यूं तो अंडमान मे हमारा तीन साल का समय बहुत ही अच्छा बीता पर उन्ही तीन सालों मे हमारे मायके और ससुराल मे अच्छे काम भी हुए माने दीदी और ननद की लड़की की शादी हुई। और उन्ही तीन सालों मे हम लोगों के जीवन की सबसे बड़ी ट्रेजडी भी हुई ।
जून से नवम्बर का समय तो बस अंडमान घुमते हुए मजे मे निकल रहा था। नवम्बर मे दीदी बेटी की शादी मे दिल्ली आए और उसके बाद हम लोग करीब १० दिन दिल्ली रहकर वापिस अंडमान चले गए।अंडमान पहुँचने के एक हफ्ते बाद यानी २ दिसम्बर २००३ की शाम को दिल्ली से हमारी ननद का फ़ोन आया कि पापाजी (ससुरजी ) घर मे गिर गए है।और उनके पैर मे फ्रैक्चर हो गया है। वो लोग पापाजी की खूब देख भाल कर रहे थे।और चूँकि हमारी ननद और नन्दोई डॉक्टर है इसलिए हम लोगों को चिंता करने की कोई जरुरत नही थी। इसलिए हम लोग निश्चिंत थे ।
रोज हम लोग उनका हाल-चाल लेते थे और उनसे बात करते थे।पर अचानक १३ दिसम्बर को दिल्ली से फ़ोन आया कि पापाजी को हार्ट अटैक हुआ है । पापा की हालत काफ़ी ख़राब है और उन्हें हॉस्पिटल ले जा रहे है। उस समय पापाजी से बात की और ननद और नन्दोई से बात हुई ।और पतिदेव ने पापाजी से कहा कि वो कल दिल्ली पहुँच जायेंगे।पहले तय हुआ की हम सभी दिल्ली चले पर चूँकि बेटे का बोर्ड था इसलिए तय किया की पहले पतिदेव चले जाए बाद मे हम लोग जायेंगे।क्यूंकि उस समय हमे अंडमान गए हुए कुल छः महीने हुए थे और उस समय तक हम लोगों को घर नही मिला था इसलिए हम लोग सर्किट हाउस मे रह रहे थे।और बेटे के दसवीं के प्री -बोर्ड होने वाले थे।और ऐसे मे बेटे को बिल्कुल नई जगह पर अकेले छोड़ना ठीक नही लग रहा था।हालांकि बाद मे हमे उसे अकेले ही अंडमान छोड़कर दिल्ली आना पड़ा था।
इसी ऊहापोह मे टिकट लेने की सोची गई क्यूंकि १३ दिसम्बर को एक तो शनिवार था और दूसरे उस समय अंडमान मे सिर्फ़ सुबह ही फ्लाईट चलती थी और शाम को ट्रेवल एजेंट का ऑफिस जल्दी बंद हो जाता था।खैर ट्रेवल एजेंट को फ़ोन किया और पतिदेव के लिए टिकट बुक किया गया । नई जगह और इम्तिहान की सोच कर हम बेटे के साथ वहीं अंडमान मे रुक गए। और पतिदेव अगली सुबह यानी रविवार को दिल्ली चले गए।
और अंडमान मे रहते हुए भी मन नही लग रहा था और हम चाहकर भी दिल्ली नही जा पा रहे थे ।उसी मे बेटे ने प्री-बोर्ड के इम्तिहान दिए पर रिजल्ट स्कूल के मन मुताबिक नही था (५८ %) और इसलिए बेटे के स्कूल से भी बुलावा आ गया और वहां की प्रिंसिपल ने हमे बड़े प्यार से बहुत कुछ कहा और उसी प्यार भरे लहजे मे ये तक कह दिया कि आपके बेटे को जनवरी मे होने वाले प्री-बोर्ड मे कम से कम ६०-६५ % लाना है वरना उसे बोर्ड मे नही बैठने देंगे। (उस स्कूल मे दो प्री -बोर्ड होते थे) क्यूंकि उस स्कूल को उस साल ट्रोफी मिलने की उम्मीद थी (क्यूंकि पिछले दो सालों मे उनके दसवीं के सभी बच्चों का ६५ % से ऊपर रिजल्ट गया था । )और उन्हें ये डर था की कहीं हमारे बेटे की वजह से उन्हें ये ट्रॉफी ना खोनी पड़े।इसलिए हम माँ-बेटा जी-जान से पढ़ाई मे जुट गए थे।
दिल्ली मे पापाजी आई.सी.यू.मे भरती थे। दिल्ली से कभी ख़बर आती कि पापाजी की हालत सुधर रही है तो कभी फ़ोन पर बात करने पर पता चलता की उनकी तबियत पहले से ख़राब है।उन्हें वेंटिलेटर पर भी रक्खा गया जिससे उनकी हालत मे थोड़ा सुधार हुआ पर फ़िर धीरे-धीरे उनकी हालत बिगड़ती चली गई। और २८ दिसम्बर को दोपहर मे पतिदेव ने फ़ोन करके बताया कि पापाजी की तबियत और भी ज्यादा ख़राब हो गई है ।
इस २५-२६ दिनों मे अंडमान मे रहते हुए एक हम लोगों की मानसिक हालत भी डांवाडोल होती रहती थी।और इन २५ दिनों मे हमारा बेटा बहुत समझदार हो गया था।बजाय इसके की हम उसे हौसला दे वो ही हमे हौसला देता था। इसलिए २८ दिसम्बर को जब पापाजी की तबियत के बारे मे पता चला तो हमने बेटे को बताया की हमे दिल्ली जाना है और क्या तुम यहां अकेले रह लोगे तो उसके हाँ कहने पर हमने दिल्ली के लिए अपना टिकट २९ तारीख का बुक कराया ।जाड़े मे कई बार फ्लाईट लेट हो जाती थी और उस दिन भी ऐसा ही हुआ।२९ की सुबह अंडमान से तो हम चेन्नई समय पर पहुंचे पर चेन्नई से दिल्ली की फ्लाईट जिसे ११ बजे जाना था वो दोपहर २.३० बजे चेन्नई से रवाना हुई।चेन्नई एअरपोर्ट पर ही हमे ख़बर मिली की पापाजी हम सबको छोड़कर जा चुके है। और वो ४-५ घंटे चेन्नई मे काटना ऐसा लग रहा था मानो साल बीत गए हो।
ये कुछ ऐसी ट्रेजडी है जिसकी इस जीवन मे भरपाई हो पाना मुश्किल है। ऐसे ही समय मे मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता था कि शायद अंडमान को इसी लिए काला पानी कहा जाता था।क्यूंकि वहां से कभी भी इमरजेंसी मे निकल पाना बहुत मुश्किल होता था।
जून से नवम्बर का समय तो बस अंडमान घुमते हुए मजे मे निकल रहा था। नवम्बर मे दीदी बेटी की शादी मे दिल्ली आए और उसके बाद हम लोग करीब १० दिन दिल्ली रहकर वापिस अंडमान चले गए।अंडमान पहुँचने के एक हफ्ते बाद यानी २ दिसम्बर २००३ की शाम को दिल्ली से हमारी ननद का फ़ोन आया कि पापाजी (ससुरजी ) घर मे गिर गए है।और उनके पैर मे फ्रैक्चर हो गया है। वो लोग पापाजी की खूब देख भाल कर रहे थे।और चूँकि हमारी ननद और नन्दोई डॉक्टर है इसलिए हम लोगों को चिंता करने की कोई जरुरत नही थी। इसलिए हम लोग निश्चिंत थे ।
रोज हम लोग उनका हाल-चाल लेते थे और उनसे बात करते थे।पर अचानक १३ दिसम्बर को दिल्ली से फ़ोन आया कि पापाजी को हार्ट अटैक हुआ है । पापा की हालत काफ़ी ख़राब है और उन्हें हॉस्पिटल ले जा रहे है। उस समय पापाजी से बात की और ननद और नन्दोई से बात हुई ।और पतिदेव ने पापाजी से कहा कि वो कल दिल्ली पहुँच जायेंगे।पहले तय हुआ की हम सभी दिल्ली चले पर चूँकि बेटे का बोर्ड था इसलिए तय किया की पहले पतिदेव चले जाए बाद मे हम लोग जायेंगे।क्यूंकि उस समय हमे अंडमान गए हुए कुल छः महीने हुए थे और उस समय तक हम लोगों को घर नही मिला था इसलिए हम लोग सर्किट हाउस मे रह रहे थे।और बेटे के दसवीं के प्री -बोर्ड होने वाले थे।और ऐसे मे बेटे को बिल्कुल नई जगह पर अकेले छोड़ना ठीक नही लग रहा था।हालांकि बाद मे हमे उसे अकेले ही अंडमान छोड़कर दिल्ली आना पड़ा था।
इसी ऊहापोह मे टिकट लेने की सोची गई क्यूंकि १३ दिसम्बर को एक तो शनिवार था और दूसरे उस समय अंडमान मे सिर्फ़ सुबह ही फ्लाईट चलती थी और शाम को ट्रेवल एजेंट का ऑफिस जल्दी बंद हो जाता था।खैर ट्रेवल एजेंट को फ़ोन किया और पतिदेव के लिए टिकट बुक किया गया । नई जगह और इम्तिहान की सोच कर हम बेटे के साथ वहीं अंडमान मे रुक गए। और पतिदेव अगली सुबह यानी रविवार को दिल्ली चले गए।
और अंडमान मे रहते हुए भी मन नही लग रहा था और हम चाहकर भी दिल्ली नही जा पा रहे थे ।उसी मे बेटे ने प्री-बोर्ड के इम्तिहान दिए पर रिजल्ट स्कूल के मन मुताबिक नही था (५८ %) और इसलिए बेटे के स्कूल से भी बुलावा आ गया और वहां की प्रिंसिपल ने हमे बड़े प्यार से बहुत कुछ कहा और उसी प्यार भरे लहजे मे ये तक कह दिया कि आपके बेटे को जनवरी मे होने वाले प्री-बोर्ड मे कम से कम ६०-६५ % लाना है वरना उसे बोर्ड मे नही बैठने देंगे। (उस स्कूल मे दो प्री -बोर्ड होते थे) क्यूंकि उस स्कूल को उस साल ट्रोफी मिलने की उम्मीद थी (क्यूंकि पिछले दो सालों मे उनके दसवीं के सभी बच्चों का ६५ % से ऊपर रिजल्ट गया था । )और उन्हें ये डर था की कहीं हमारे बेटे की वजह से उन्हें ये ट्रॉफी ना खोनी पड़े।इसलिए हम माँ-बेटा जी-जान से पढ़ाई मे जुट गए थे।
दिल्ली मे पापाजी आई.सी.यू.मे भरती थे। दिल्ली से कभी ख़बर आती कि पापाजी की हालत सुधर रही है तो कभी फ़ोन पर बात करने पर पता चलता की उनकी तबियत पहले से ख़राब है।उन्हें वेंटिलेटर पर भी रक्खा गया जिससे उनकी हालत मे थोड़ा सुधार हुआ पर फ़िर धीरे-धीरे उनकी हालत बिगड़ती चली गई। और २८ दिसम्बर को दोपहर मे पतिदेव ने फ़ोन करके बताया कि पापाजी की तबियत और भी ज्यादा ख़राब हो गई है ।
इस २५-२६ दिनों मे अंडमान मे रहते हुए एक हम लोगों की मानसिक हालत भी डांवाडोल होती रहती थी।और इन २५ दिनों मे हमारा बेटा बहुत समझदार हो गया था।बजाय इसके की हम उसे हौसला दे वो ही हमे हौसला देता था। इसलिए २८ दिसम्बर को जब पापाजी की तबियत के बारे मे पता चला तो हमने बेटे को बताया की हमे दिल्ली जाना है और क्या तुम यहां अकेले रह लोगे तो उसके हाँ कहने पर हमने दिल्ली के लिए अपना टिकट २९ तारीख का बुक कराया ।जाड़े मे कई बार फ्लाईट लेट हो जाती थी और उस दिन भी ऐसा ही हुआ।२९ की सुबह अंडमान से तो हम चेन्नई समय पर पहुंचे पर चेन्नई से दिल्ली की फ्लाईट जिसे ११ बजे जाना था वो दोपहर २.३० बजे चेन्नई से रवाना हुई।चेन्नई एअरपोर्ट पर ही हमे ख़बर मिली की पापाजी हम सबको छोड़कर जा चुके है। और वो ४-५ घंटे चेन्नई मे काटना ऐसा लग रहा था मानो साल बीत गए हो।
ये कुछ ऐसी ट्रेजडी है जिसकी इस जीवन मे भरपाई हो पाना मुश्किल है। ऐसे ही समय मे मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता था कि शायद अंडमान को इसी लिए काला पानी कहा जाता था।क्यूंकि वहां से कभी भी इमरजेंसी मे निकल पाना बहुत मुश्किल होता था।
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आपके पिता जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजली.